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दुखी भारत


तरफ़ इस तरह पहुँचा देता है मानों वह सम्पूर्ण महाद्वीप की सभ्यता से उत्पन्न हुए विचार या आविष्कार हों। जब पूर्व को भी समाचार-पत्रों और रेलों की सुविधा प्राप्त हो जायगी तब वह यदि अपने सुधारों में पश्चिम का अनावश्यक अनुकरण न करेगा तो अपनी जातियों की प्रतिभा के कारण अपने प्राचीन पद को प्राप्त कर लेगा।"

इस प्रकार के सैकड़ों प्रमाण दिये जा सकते हैं। पर जो ऊपर दिये गये हैं वे पर्य्याप्त हैं। यदि मिस मेयो इन ब्रिटिश लेखकों, शासकों और जान कम्पनी के डाइरेक्टरों को भी हिन्दुओं का पक्षपाती समझे तो इसमें सन्देह नहीं कि उसमें राजा से भी अधिक राज्यवाद होगा। अस्तु, पाठको की विशेष जानकारी के लिए हम यहाँ डाक्टर लीटनर की वह गणना दिये देते हैं जो उन्होंने ब्रिटिश-शासन से कुछ ही समय पूर्व पञ्जाब की साक्षरता के सम्बन्ध में की थी। डाक्टर लीटनर ने पञ्जाब में अपने समय की और ब्रिटिश-शासन से पूर्व की साक्षरता में अत्यन्त शोचनीय अन्तर पाया था। उनकी रिपोर्ट के तीसरे पृष्ठ पर लिखा है:—

"१८५२ के बन्दोबस्त को रिपोर्ट से पता चलता है कि होशियारपुर जैसे पिछड़े ज़िलों में भी प्रति १९.६५ पुरुष-संख्या पर (बालक और युवा सब मिलाकर) एक स्कूल था। यदि इसकी तुलना प्रति २८१८७ जनसंख्या पर एक सरकारी या इमदादी स्कूल से की जाय तो महान् अन्तर प्रतीत होगा।"

सम्पूर्ण प्रान्त के सम्बन्ध में लीटनर साहब लिखते हैं।[१]

१८५४ की मनुष्य-गणना के अनुसार जिसमें बहुत सी त्रुटियां भी रह गई थीं, सारे प्रान्त में दिल्ली और हिसार की कमिश्नरियों को लेकर जिनमें अब ४,४७८ गाँव और क़स्बे हैं, कुल ३३,३५५ गाँव और कस्बे थे। सम्भवतः यही संख्या १८४९ में भी थी। यदि हम कम से कम ३३,३५५ ऐसी मसजिदों, मन्दिरों, धर्मशालाओं और पवित्र स्थानों के होने की बात मान ले जहाँ कुछ न कुछ शिक्षा दी जाती थी (१८५४ की जांच-पड़ताल के अनुसार जो ३,३७२ पाठशालाओं का पता चला था वे तथा अध्यापकों के


  1. वही पुस्तक, पृष्ट १४५