फिर राजपुत्र बोले 'तुम कौन हो?'
'मेरा नाम आयेशा है।'
'आयेशा कौन?'
'कतलू खां की बेटी।'
राजपुत्र फिर चुप रह गए क्योंकि अभी उनको इतनी शक्ति तो थी ही नहीं स्वासा चलने लगी। जब फिर कुछ स्थिरता आई तो बोले 'हमको इस स्थान पर कै दिन हुए?'
'चार दिन।'
'मन्दारणगढ़ अभी तुम्हारे अधिकार में है?'
'हां है।'
फिर जगतसिंह का दम फुलने लगा और कुछ थम कर बोले-'बीरेन्द्रसिंह की क्या दशा हुई?'
'बीरेन्द्रसिंह कारागार में हैं आज उनका विचार होगा।'
जगतसिंह के मुंह पर और भी उदासी छा गई पूछा 'और २ परिजनों की क्या गति हुई?'
आयेशा उकता कर कहने लगी 'मैं सम्पूर्ण समाचार नहीं जानती।'
राजपुत्र अपने मन में सोचने लगे और उनके मुंह से एक नाम निकला आयेशा ने उसको सुन लिया-'तिलोत्तमा।'
आयेशा उठकर औषध लेने गई उस समय की शोभा युवराज के मन में बस गयी और वे उसी की ओर देखने लगे। उसने औषध लाकर दिया और राजपुत्र ने पान करके कहा—
'मैंने स्वप्न में देखा है कि स्वर्गीय देवकन्या मेरे सिरहाने बैठी शुश्रूषा कर रही है वह तुम्ही हो न तिलोत्तमा?'
आयेशा ने कहा 'आपने तिलोत्तमा को स्वप्न में देखा होगा।'