ब्राह्मण पोथी खोल सुरसे पढ़ने लगा।
थोड़े देर के अनन्तर राजकुमार ने फिर पूछा 'आप ब्राह्मण होकर माणिकपीर की पोथी को पढ़ते थे?'
उन्ने सुर रोक कर कहा, मैं मुसलमान हो गया।
राजपुत्र ने कहा 'यह था?' गजपति ने कहा जब मुसलमान लोग गढ़ में आए मुझसे बोले 'अरे बम्हन तेरी जाति का नाश करूँगा' और हमको पकड़कर ले गए और बांध कर मुर्गी का पोलाव खिला दिया।
'पोलाव क्या?'
दिग्गज ने कहा 'गरम चावल घी में पका हुआ'
राजपुत्र समझ गए और बोले 'हाँ फिर?'
दिग्गज ने कहा फिर हमको कलमा पढ़ाया—
'कलमा'
फिर हमसे बोले 'अब तू मुसलमान हो गया' तबले मैं मुसलमान हूँ।
राजाकुमार ने अवसर पाय पूछा 'औरों की क्या दशा हुई?' और और सब ब्राह्मण ऐसेही मुसलमान होगए?'
राजपुत्र ने उसमान का मुँह देखा उन्ने उनके तिरस्कार को समझ कर कहा 'इसमे दोष क्या! मुसलमानों के लेखे उन्हीं का धर्म्म सच है। बल हो अथवा छल से हो सत्य धर्म्म के प्रचार में पाप नहीं, पुण्य होता है'।
राजपुत्र ने उत्तर नहीं दिया और विद्यादिग्गज से पूछने लगे 'विद्यादिग्गज महाशय!'
'जी अब शेख दिग्गज कहिये।'
अच्छा शेख़जी गढ़ के और किसी का समाचार आप नहीं जानते?