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द्वितीयखण्ड।


इसमें बादशाह की कुछ हानि नहीं होती पर पठानों की होती है। हमलोगों ने क्लेश भोग कर जो पाया है उसे छोड़ देते है और अकबर को वह छोड़ना पड़ता है जो उन्होंने नहीं पाया है।

राजकुमार ने सुनकर कहा 'अच्छी बात है। कि तुम यह बातें हमसे क्यों कहते हो? मेल और बिगाड़ करनेवाले महाराज मानसिंह हैं उनके पास दूत भेजो'।

उसमान ने कहा 'उनके पास दूत भेजा गया था पर किसी ने महाराज से कह दिया कि पठानों ने आप को मारडाला। महाराज मारे क्रोध के सन्धि के नाम से घृणा करते हैं और दूत की बातों का विश्वास नहीं करते, यदि आप स्वयं जाकर सन्धि का प्रस्ताव करें तो वे मानेंगे।'

राजपुत्र ने फिर उसमान की ओर देख कर कहा 'इसका क्या अर्थ जो आप हमको जाने कहते हैं। हमारा हस्ताक्षर भेजने से महाराज को विश्वास हो सकता है।'

उ॰। उसका यह कारण है कि महाराज मानसिंह हमलोगों के समाचार को नहीं जानते। आपके द्वारा उनको हमलोगों का वास्तविक बल समझ पड़ेगा, और विशेष करके आपकी बातों को पतिआयंगे भी। लिखने से यह बात नहीं हो सकती संधि का तुरन्त एक फल तो यह होगा कि आप कारागार से छूट जायेंगे। नवाब कतलूखां को विश्वास है कि आप सन्धि का प्रबन्ध अवश्य करेंगे।

ज॰। मैं पिता के पास जाने से मुँह नहीं मोड़ता।

उ॰। यह बात सुनकर मुझको बड़ा अन्नन्द हुआ परंतु एक निवेदन और है। यदि आप इस प्रकार सन्धि का प्रबन्धन कर सके तो फिर आपको इस दुर्ग में पलट आना पड़ेगा।