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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/६९

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दुर्गेशनन्दिनी।



ढाल और ढाल, बस्त्र के भीतर छरी तो है न? हां है क्यों नहीं। तो इतना हंसती कैसे है ? कललूखां तो तेरीही ओर देख रहा है। हैं यह क्या ? कटाक्ष ! और फिर यह क्या ? देखो सुरा से उसने यवन को विक्षिप्त कर दिया । इसी कारण जान पड़ता है। सबको हटा कर आप कतलूखां के पास बैठी है।क्यों न हो?यह हंसी।यह भाव?यह मधुर भाषण यह कटाक्ष फिर मद्य।कतलूखां तो चैतन्य है पर क्या हुआ।बिमला तो अभी पिला रही है।यह क्या शब्द है?क्या कोई गाता हैं?किसी मनुष्य के गाने का शब्द है?विमला गाती है।क्या सुर है।क्या ध्वनि।क्या लय देखो उसके झुमके कैसे हिलते हैं?देखो माथा कैसा हिलाती है । और सुरादे, ढाल ढाल।यह क्या?देखो बिमला नावती है।क्या छवि है?क्या भाव बताती है?और मुरा दे।शरीर देखो कैसा सुन्दर।गदन देखो।कतलुखां सम्भलो। सम्मलो कामाग्नि बढ़ चली!जह!अब बदन से चिनगारियां निकलने लगी ला प्याला। आहा!ला प्याला।मेरी प्यारी और हंसी।और कटाक्ष। फिर शराब श!फिर शराब!'हह हह हमको मद्य दे मम मम मत कर देर। वव वव वहु विनती करत कक कक करू न अबेर।जोड़त जोड़त हाथ हम प्यालो प्यालो लाओ। तरसत तरसत हाय मोहि जल्दी जल्दी प्याओ॥आं आं. प्यालो दे हमें प्यालो देदै प्याल!आंदै दें दे मत देर कर मत कर प्यारी बाल।।'

कतलूखां उन्मत्त होगया।बिमला को पुकार कर बोला 'प्यारी तू कहां गई?'

बिमला ने उनके कन्धे पर एक हाथ देकर कहा'मैं तो आपके चरणों के समीप हूं।"और दूसरे हाथ से कचसे।

कतलूखां ने चिल्लाकर बिमला को ढकेल दिया मौर निर्मूल