जब से तिलोत्तमा आसमानी के सङ्ग आयेशा से बिदा हुई तब से किसी को उसका पता नहीं मिला। तिलोत्तमा, विमला, आसमानी और अभिराम स्वामी किसी का कहीं पता नहीं मिलता था।
जब मोगल पठानों में सन्धि हो गयी, बीरेन्द्रसिंह और उसके परिजनों का दुःख समझ दोनों दल वालों ने यह स्थिर किया कि बीरेन्द्रसिंह की स्त्री और कन्या को ढूंढ कर मान्दारणगढ़ में स्थापन करें अतएव उसमान, इसाखां और मानसिंह आदि ने बहुत ढूंढा पर उनका कहीं पता न मिला। अन्त को मानसिंह ने निराश होकर एक अपने अनुचर को वहां नियत किया और उससे कह दिया कि 'जब वीरेन्द्रसिंह की स्त्री और कन्या का पता मिले तुम उनको बुला कर यहां स्थापन करके हमारे पास चले आना हम तुमको पुरस्कार देंगे और तुमको दूसरी जागीर देंगे।
यह प्रबंध कर मानसिंह पटने को चले।
मरने के समय कतलूखां ने जगतसिंह से जो कुछ कहा था वह सब राजकुमार को स्मरण था और उन्होंने तन मन धन से उन सवों के ढूंढने में यत्न किया पर व्यर्थ उनका कोई विवरण नहीं मिला।
जब मानसिंह का डेरा गिरने लगा जगतसिंह को वह पत्र स्मरण हुआ जो जङ्गल में मिला था। उसे खोल कर जो देखा तो उसमें केवल इतना लिखा था।
यदि धर्म का भय हो यदि का मय हो तो इस