थी कि नगर में आज कितने आदमी मरे और कितने उत्पन्न हुए, जिससे कर वसूल करने में सुभीता रहे। चौथी नगर के व्यवसा- यियों से कर वसूल करती थी। पांचवी और छठी उपसभाओं का सम्बन्ध भी नगर के वाणिज्य-व्यवसाय ही से था। ये सभायें नगर के बाजारों, मन्दिरों और अन्य संस्थाओं का भी काम देखती थीं। उस समय भा भारत में कई अच्छी अच्छो सड़कें थीं। राजधानी पाटलीपुत्र से एक सड़क आरम्भ होती थी, जो एक हज़ार मील से अधिक लम्बी थी और भारत की पश्चिमोतर सीमा तक जाती थी।
चन्द्रगुप्त के पात्र सम्राट अशोक के समय में भी पाटलीपुत्र की बड़ी उन्नति हुई। मौर्य-वंश का अन्तिम राजा बृहद्रथ था। उसका सेनापति पुष्यमित्र उसे मार कर स्वयं राजा बन बैठा। पाटलीपुत्र पुष्यमित्र और उसके स्थापित किये हुए सुङ्ग नाम के राजवंश के दस राजों की राजधानी रहा । इस वंश का उत्तराधिकारी कण्व-वंश हुआ। उसकी भी राजधानी पाटलीपुत्र ही रहा। सन् ईसवी से कुछ वर्ष पूर्व ही कण्व-वंश का अन्त हो गया और साथ ही पाटलीपुत्र का वैभव भी क्षीणप्राय हो गया।
कण्व-वंश के पश्चात् दक्षिण के आन्ध्र-वंश ने उन्नति पाई;परन्तु उसकी सत्ता कुछ ही समयके उपरान्त नष्ट हो गई। सन्ई सवी की पहली शताब्दी के बीच से लेकर चौथी शताब्दी के आरम्भ तक भारत में अराजकता-सी फैली रही। उस समय देशभर में कई छोटे छोटे राज्यों का उदय हुआ। उनमें सदा परस्पर लड़ाई-झगड़ा होता रहा। विदेश से शक,हूण आदि कितनी ही यवन-