सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०५
मुरशिदाबाद


विहार और उड़ीसा का स्वतन्त्र नबाब नाज़िम हो गया। उसके बाद उसके दामाद शुजा खां को निज़ामत मिली।

शुजा खां के वक्त में अलीवर्दी खां नामक एक पुरुष मुरशिदाबाद आया। वह शुज़ाखां के मामू के रिश्तेदारों में से था। शुजा ने उसे पटना का गवर्नर नियत किया।

शुजाखां के लड़के सरफराजखां की अनबन दीवान हाजी अहमद से हो गई। हाजी अहमद अलीवर्दीखां का भाई था। इस कारण इन दोनों भाइयों ने मिल कर सरफ़राज़खां से बगावत की। लड़ाई हुई। लड़ाई में सरफ़राजखां मारा गया। अलीवर्दी को मुरशिदाबाद की मसनद मिली। उस समय, मुरशिदावाद के खज़ाने में ७० लाख रुपया नकद और ५० करोड़ रुपये का जेबर अलीवी के हाथ लगा।

अलीवर्दीखां ने १६ वर्ष राज्य किया और ५७५६ ईसवी में, ८० वर्ष की उम्र में, वह मरा। उसने अपने बहनोई मीरजाफ़र को अपना सिपहसलार नियत किया । उसके वक्त में मरहठों ने बड़ा उपद्रव मचाया। कई दफ़े उनसे अलीवर्दीखां को लड़ना पड़ा। एक दफे अलीवर्दीखां ने बर्दमान के पास ४५ हजार मरहठों को परास्त किया। पर परास्त हुई फ़ौज ने जगत सेठ के मकान का रास्ता लिया और वहां पहुंच कर दो करोड़ रुपया लूटा । बरार का सूबा, और १२ लाख रुपया सालाना चौथ देना कबूल करके अलोवर्दी ने मराठों से अपना पिण्ड छुड़ाया। उस वक्त जगतसेठ का प्रभुत्व अपार था। टकसाल उसी के यहां थी। जितने राजे, महाराजे और जमींदार थे सब उसीकी मुट्ठी में थे। अलवर्दीखां के १६ वर्ष प्रायः लड़ाई-भिड़ाई ही