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दृश्य-दर्शन

धर्म-सम्बन्धी। पिछले लामा का नाम दलाय लामा है। इस लामा का दर्शन अन्य देशवालों के लिए बहुत ही दुर्लभ है। तिबत में जितने महन्त, पुरोहित या धर्माध्यक्ष हैं सब लामा कहलाते हैं।

तिबत जाने में अनेक कष्ट,कठिनाइयां और बाधायें हैं। एक तो पथरीला और जङ्गली देश,दूसरे चोर और लुटेरों की अधिकता; तीसरे वहाँ न जाने की प्रतिबन्धकता;चौथे जाड़े का प्राचुर्य,तथापि आज तक बहुतरे योरप-निवासी और दो तीन हिन्दुस्तानी लासा तक हो आये हैं और अनेक पुस्तकें तिबत-सम्बन्धी लिखी जा चुकी हैं। पहले योरोपियन प्रवासी ने तिबत में,१३२५ ईसवोमें, सफर किया। उसके बाद,और लोग वहां गये और वहां की अनेक बातों में विज्ञता प्राप्त की। कुछ दिन हुए लैंडर नामक एक साहब तिबत पधारे थे। आप पर जो जो आपत्तियां आई उनका वर्णन सुनने से पत्थर भी पिघल जाय। उनकी वहां बड़ी ही दुर्दशा हुई ;उनका शरीर तक छिन्न भिन्न कर डाला गया। तथापि वे जीते जागते वापस आये। उन्होंने अपने प्रवास का जो वृत्तान्त लिखा है वह पढ़ने लायक है। हयू,नाइट गार्डन और मारखम वगैरह ने भी तिबत पर किताबें लिखी हैं; परन्तु लैंडर और कप्तान व्यल्वी की किताबें बहुत मनोरञ्जक हैं। कप्तान व्यरूबी ने १८१६ ईसवी में लछाख से चल कर,उत्तरी तिबत होते हुए,पेकिन तक सफ़र किया। मई में वे लछाख से रवाना हुए और दिसम्बर में हांगकांग के रास्ते कलकत्ते वापस आये। छः महीने तिबत पार करने में उनको लगे। उनकी यात्रा-सम्बन्धी कठिनाइयों का वर्णन पढ़ते वक्त रोमाञ्च हो आता है और उनके