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दृश्य-दर्शन

अत्याचार से तङ्ग आकर उदयपुर के राजघराने के कुछ क्षत्रिय कमाऊं की तरफ़ चले गये। उनके साथ और भी कितने ही क्षत्रिय ,सेवक और सहचर की भाँति,गये। कोई तीन सौ वर्ष तक उन लोगों की सन्तति वहाँ रहती रही और धीरे-धीरे नेपाल की तरफ़ बढ़ती रही। सोलहवीं सदी में द्रव्यशाह नामक एक पुरुष विशेष प्रतापी हुआ। उसने गोर्खानगर को उसके राजा से छीन लिया और आप वहाँ का राजा हो गया। तभी से गोर्खा-राजों के राज्य का सूत्रपात हुआ। अठारवीं सदी के उतरार्द्ध में पृथ्वी नारायण सिंह को गोर्खा की गद्दी मिली। कुछ दिन बाद पाटन,काठमण्डू और भटगाँव के नेवार-राजों में परस्पर विरोध पैदा हुआ। इससे भटगाँव के राजा रजीतमल ने पृथ्वीनारायण शाह से मदद मांगी! इस मदद का फल यह हुआ कि तीन चार वर्ष में पृथ्वीनारायण सिंह ने युद्ध करके, कुटिल नीति से काम लेकर और शत्रुओं में परस्पर द्वेष भाव्य उत्पन्न करा के नेपाल के चारों राज्यों को उद्ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार निष्कण्टक होकर आपने नेपाल का प्रभुत्व अपने ऊपर लिया और गोर्खा छोड़ कर काठमाण्डू को अपनी राजधानी बनाया। तब से नेवार-जाति की प्रभुता की समाप्ति हो गई और गोर्खा लोग नेपाल के राजा हुए। इन्हीं गोर्खाओं के वंशज अब तक वहाँ राज कर रहे हैं। १७६८ ईसवी में पृथ्वीनारायण सिंह को नेपाल की गद्दी मिली। उनसे लेकर १८४७ ईसवी तक इतने राजे नेपाल में हुए—पृथ्वीनारायण शाह,प्रतापसिंह शाह,रणबहादुर शाह, गीर्वाण युद्ध विक्रम शाह, राजेन्द्र विक्रम शाह और सुरेन्द्र विक्रम शाह।

पृथ्वीनारायण शाह ने धीरे-धीरे किराती और लिम्बू लोगों का