थीं। जब नेपाल के साथ अँगरेजों की लड़ाई हुई तब नेपालियों को अँगरेजों का बल विक्रम अच्छी तरह मालूम हो गया। तब, १८१६ ईसवी में,चौथी बार सन्धि हुई। इस सन्धि का नाम सिगौली की सन्धि है । तब से अँगरेजी गवर्नमेन्ट की तरफ से एक रेजिडेण्ट मुस्तकिल तौर पर काठमाण्डू में रहने लगा। उस समय नेपाल-नरेश के मन्त्री जेनरल भीमसेन थापा थे। उन्होंने २५ वर्ष तक काम किया। १८३७ ईसवी में उन पर यह अपराध लगाया गया कि उन्होंने राजा के एक छोटे बच्चे को विष दिया। इसलिए वे कैद किये गये और कैद ही में उन्होंने अपना आत्मघात किया। सुनते हैं,उनके मृतक शरीर की बड़ी दुर्दशा की गई थी।
भीमसेन थापा के बाद कालापांडे को नेपाल नरेश का मन्त्रित्व मिला। उनका राज्य-प्रबन्ध अच्छा न था। १८४३ ईसवी में उनको मातबरसिंह नामक एक योद्धा ने मार डाला और आप मन्त्री हो गया। परन्तु दो ही वर्ष में उसका भी काम तमाम कर दिया गया। वह राजा से मिलने गया था। वहीं उस पर किसी ने गोली चलाई। कोई कहता है,खुद राजा ने चलाई ; कोई कहता है जङ्गबहादुर ने।
जङ्गबहादुर एक बहुत ही होनहार और साहसी युवा थे ; उस समय वे फ़ौज में कर्नल पद पर थे। मातबरसिंह के मारे जाने पर उन्होंने राज्य कार्य देखना शुरू किया ! पर मन्त्रित्व उनको न मिला । वह गगनसिंह नामक एक पुरुष को मिला। परन्तु एक ही वर्ष बाद उनके जीवन की भी समाप्ति हो गई। १४ सितम्बर १८४६ की शाम को यह घटना हुई । उन पर नेपाल की महारानी की कृपा थी। इसलिए