उनके वधिक का पता लगाने के लिए सब सरदार राजमहल में बुलाये गये। वहां जंगबहादुर भी उपस्थित थे। बातों बातों में झगड़ा हुआ और गोलियां चलने लगीं। ज़रा देर में नेपाल के ३१ सरदार और कोई सौ आदमी राजमहल के भीतर ही मारे गये। खून की नदी बह निकली। राजा और रानी भयभीत होकर बनारस भाग आये। जङ्गबहादुर के लिए रास्ता साफ हो गया। इसलिए आप निष्कण्टक होकर मन्त्रित्व के आसन पर आसीन हुए। आपने सुरेन्द्रविक्रम शाह को राजा बनाया।
जङ्गबहादुर के पूर्वजों ने नेपाल में अच्छे-अच्छे काम किये थे। वे एक मशहूर घराने के थे। उन्होंने राज्य का अच्छा प्रबन्ध किया। उनके कोई सौ लड़के लड़कियां थीं। उनका सम्बन्ध राज्य के प्रधान प्रधान सरदारों और स्वयं महाराजाधिराज के यहाँ करके, जङ्गबहादुर ने सारे राज-चक्र और सरदार-चक्र को अपने हाथ में कर लिया। उन्होंने अपनी एक कन्या का विवाह नेपाल के युवराज से भी कर दिया। १८५० ईसवी में जङ्गबहादुर इंगलैण्ड गये। वहाँ उनकी बहुत खातिरदारी हुई। इंगलैण्ड में उन्होंने अँगरेजी सभ्यता को ध्यान से देखा और अँगरेज़ों के प्रचण्ड प्रताप का भी अच्छी तरह अनुभव किया। फल यह हुआ कि नेपाल लौट कर उन्होंने अपने देश के कानन में उचित फेरफार किये उन्होंने अङ्ग-भङ्ग करने का दण्ड उठा दिया। सती की प्रथा में भी कुछ रुकावट कर दी गई। सेना में भी सुधार किया गया। सारांश यह कि जङ्गबहादुर ने जिसमें प्रजा और देश का कल्याण समझा उसे करने में सङ्कोच नहीं किया।
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