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ग्वालियर


क़दर अवश्य ही कम हो जाया करती है। फिर भी ग्वालियर में कई ऐसी चीजें विद्यमान हैं जिनकी अब तक क़दर होती है।

ग्वालियर में एक बहुत ही सुन्दर पुरानी जुमा-मसजिद है। गिलट किये हुए उसके गगनभेदी मीनार और गुम्बज़ अभी तक देखने लायक हैं। उसकी मिहराबों पर क़ुरान की आयतें बड़ी सुघराई से खुदी हुई हैं। स्लीमन साहब ने अपनी रैम्बल्स (Rambles) नामक किताब में उसकी ख़ूब तारीफ की है। शहर के बाहर महम्मद ग़ौस नामक एक महात्मा की क़ब्र है। बाबर और अकबर के समय में महम्मद ग़ौस की बड़ी महिमा थी। यह इमारत बिलकुल पत्थर की है और मुसल्मानी ज़माने की पहली इमारतों में यह बहुत अच्छी समझी जाती है। यह क़ब्र अकबर के समय में बनी थी। इसका क्षेत्रफल १०० वर्गफुट है। इसके चारों तरफ चार मीनार हैं। इसका पत्थर कुछ कुछ पीलापन लिये हुए है। इसका प्राङ्गण ४३ वर्गफुट है और दीवारें साढ़े ५ फुट ऊँची हैं। इसका मण्डप भी खूब ऊँचा है। इसमें जाली का जो काम है वह कहीं कहीं पर बहुत ही खूबसूरत है।

पुराने ग्वालियर में विख्यात गायक तानसेन की समाधि है। वह बिलकुल खुली हुई है और छोटी है। उसका क्षेत्रफल सिर्फ २२ वर्गफुट है। इस समाधि के पास इमली का एक पेड़ है। गायक लोग उसका बड़ा मान करते हैं; उसकी पूजा तक करते हैं। उसकी पत्तियों को वेश्यायें बड़े आदर से चाबती हैं। पत्तियां न मिलने पर वे उसकी छाल तक खा जाती हैं। उनका ख़याल है कि ऐसा करने से उनकी आवाज़ बहुत ही मीठी और सुरीली हो जायगी। मालूम नहीं, इस