समय यह इमली बनी हुई है या कि छाल डाल समेत नर्त्तकियां उसे हजम कर गईं।
ग्वालियर में सबसे अधिक दर्शनीय इमारत वहांका पुराना क़िला है। वह इतना मज़बूत है कि कोई कोई उसे हिन्दुस्तान का जिबराल्टर कहते हैं। जिबराल्टर का वर्णन ठाकुर गदाधर सिंह ने अपनी "यडवर्ड-तिलक-यात्रा" में खूब किया है। यह किला एक पहाड़ी पर बना हुआ है। दूर से देखने में वह पहाड़ का एक छोटा सा टुकड़ा मालूम होता है; क़िला नहीं मालूम होता। जिस पहाड़ी पर वह बना हुआ है वह शहर से ३०० फुट ऊँची है। वह उत्तर-दक्षिण पौने दो मील लम्बी है। चौड़ाई उसकी ६०० फुट से २८०० फुट तक है। उसकी दीवारें ३० से ३५ फुट तक ऊँची हैं। इस क़िले के भीतर कई चीजें दर्शनीय हैं। उनमें से मान-मन्दिर, कर्ण-मन्दिर, विक्रम-मन्दिर इत्यादि पुरातन राजप्रासाद और सास-बहू का मन्दिर, तेली का मन्दिर और कई एक जैन मन्दिर और मूर्तियां मुख्य हैं। क़िले के ऊपर चढ़कर चारों तरफ़ देखने से ग्वालियर की अपूर्व शोभा एक ही साथ आँखों के सामने आ जाती है। सब ओर पर्वत ही पर्वत देख पड़ते हैं! यहां तक कि धवलपुर तक की पहाड़ियां दिखलाई देती हैं। ग्वालियर के पास गेरू की अनेक पहाड़ियां हैं; उनकी शोभा विलक्षण ही जान पड़ती है। वर्षा ऋतु में, जब सब पर्वतमालायें हरी भरी हो जाती हैं तब, क़िले के ऊपर चढ़कर उसके चारों तरफ़ देखने से नेत्र निर्निमेष होकर उस प्राकृतिक दृश्य में ऐसे अटक जाते हैं मानों वे वहां पर जड़ दिये गये हों।