बनारस में कमिश्नर और जिले के मामूली हाकिम रहते हैं। अवध-रुहेलखण्ड और बंगाल-नार्थ-वेस्टर्न रेलवे के कई स्टेशन हैं। पिछली रेलवे ने सारनाथ के पास भी एक स्टेशन खोला है। अवध-रुहेलखण्ड रेलवे का राजघाट में, गंगा पर, पुल है। इस रेलवे की गाड़ियां मुगलसराय से, बनारस और लखनऊ होकर, बराबर सहरानपुर तक चली जाती हैं।
बनारस में जलकल है, पानी गंगा से आता है। गन्दगी निकालने के लिए मोरियां भी हैं।
व्यापार
किसी ज़माने में बनारस रेशमी और ज़री के कपड़े के काम में अपना सानी नहीं रखता था। पर विलायती व्यवसायियों ने इस रोजगार को बरबाद कर दिया। अब भी बनारस में इसका व्यवसाय होता है। कुछ दिन से "काशी सिल्क" नामक रेशमी कपड़े का प्रचार हुआ है। उसपर लोगों की प्रीति होने लगी है। देहली-दर्बार के समय जो प्रदर्शनी हुई थी उसमें बनारस के बहुमूल्य वस्त्रों की बड़ी तारीफ़ हुई थी। तिलकोत्सव के समय महारानी अलेग्ज़ांडरा के पहनने के लिए जो पोशाक बनी थी वह बनारस ही के कपड़े की थी।
बनारस में शकर का रोज़गार पहले बहुत होता था। अब भी कुछ कुछ है।
पीतल और जर्मन-सिल्वर के नक़्काशीदार और सादे बर्तन, सोने-चांदी के जेवर, देवताओं की मूर्त्तियाँ, लकड़ी के खिलौने और तम्बाकू के लिए भी बनारस मशहूर है।