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दृश्य-दर्शन

पहली महारानी नहीं रहीं। इससे आप को दुषारा दारपरिग्रह करना पड़ा। दोनों रानियों से आपको चार सन्तानों का लाभ हुआ। पर दुःख की बात है,उनमें से एक भी जीवित नहीं। वर्तमान महारानी के राजकुमार ४ वर्ष के हो कर जाते रहे । अब-

आशास्यमन्यत्पुनरुक्तभूतं शेयांसि सर्वाण्यधिजग्मुऽषस्ते ।
पुत्रं लभस्वात्मगुणा नुरूपं भवन्तमीड्य भवतः पितेव ।।

कवि कुल चक्रवर्ती कालिदास के शब्दों में हमारी परमेश्वर से यही प्रार्थना है।

महाराजा साहब अपनी प्रजा को शिक्षा दान देने के बड़े ही पक्षपाती हैं। चरखारी में एक हाईस्कूल है, जिसके कारण आपकी राजधानी में शिक्षा खूब सुलभ हो रही है। स्त्री-शिक्षा की तरफ़ भी आपका पूरा ध्यान है। उसका भी आपने अच्छा प्रबन्ध कर दिया है। चरखारी में इतनी लड़कियां पढ़ती हैं जितनी शायद ही बुंदेलखण्ड की अन्यान्य रियासतों में कहीं पढ़ती हों। चरखारी की एक स्त्री ने तो स्त्री-धर्म विषयक एक पुस्तक तक लिख डाली है। वह प्रकाशित भी हो गई है। महाराजा बहादुर ने अपनी राजधानी में कलाकौशल सिखलाने के लिए एक "स्कूल आव आर्ट्स” भी खोल रक्खा है । यह स्कूल बहुत अच्छी दशा में है। यहाँ अनेक प्रकार के सूती, रेशमी और ऊनी कपड़े तैयार होते हैं। यहां के कालीन बहुत अच्छे होते हैं। महाराजा साहब ने देहात में भी शिक्षा-प्रचार का अच्छा प्रबन्ध किया है। इससे सिद्ध है कि आप शिक्षा और कलाकौशल की उन्नति और प्रचार के कितने पक्षपाती हैं।