महाराजा साहब को देशाटन और तीर्थयात्रा का भी शौक है। जब आपकी उम्र केवल १४ वर्ष की थी तभी एक दफे आप कलकत्ते गये थे। राह में आपने वैद्यनाथ,गया,काशी,विन्ध्याचल और प्रयाग की यात्रा की। उस साल लार्ड कर्जन के देहली-दरबार में भी आप पधारे थे। और भी आपने कई बार देशाटन और यात्रायें की हैं ।
धार्मिक विषयों में भी महाराजा की बड़ी रुचि है। आप नित्य सायङ्काल विहारीजी के मन्दिर में देव-दर्शन करने जाते हैं। इसमें कभी त्रुटि नहीं होती। मन्दिर में आप बड़े ही भक्ति भाव से देव- दर्शन करते हैं। कुछ समय हुआ, हम अपने एक मित्र से मिलने चरखारी गये। उस समय वहाँ विधिपूर्वक रामलीला हो रही थी। महाराजा साहब खुद ही लीला-प्रबन्ध कराते हैं और बड़े प्रेम से उसमें योग देते हैं। आपको कविता से भी शौक है। आपने अनेक पद लिखे हैं और यदा कदा लिखा ही करते हैं। आपके कितने ही पद लीलाओं और कीर्तनों में गाये जाते हैं।
१८८३ ईसवी से चरखारी में, दिवाली के दिनों में गोवर्द्धनधारी श्रीकृष्णजी के उपलक्ष्य में गोवर्द्धन-मेला होता है। यह मेला बहुत प्रसिद्ध है। दूर दूर से लोग यहां आते हैं। सैकड़ों कोस से बड़े बड़े दुकानदार यहां अपनी दूकानें लाते हैं। हजारों साधु और महात्मा भी आते हैं। कितने ही देवताओं को विमानों में सज्जित करके लाते हैं;महाराजा साहब का गोवर्द्धन-मन्दिर बड़ी ही मनोहरता से सजाया जाता है। मेले का प्रबन्ध बहुत उत्तम होता है। साग शहर