पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

में श्रृंगार और वीर भाव का गहरा संयोग है। किंतु दोनों से ऊपर है अद्भुत । इससे अनेक भाव स्थान-स्थान पर अपने उत्कर्ष पर पहुंचे हैं । चन्द्रकान्ता और संतति का कथा क्षेत्र मुख्यतः चुनार, नौगढ़, विजयगढ़ और रोहतासगढ़ हैं। किन्तु राजगृह, गया और हाजीपुर भी केन्द्र बनते हैं। काजर की कोठरी' का पूरा क्षेत्र ही दरभंगा और पटना है। किन्तु लेखक काशी और भाँग को भी साथ लिये चलता है। इस प्रकार देखा जा सकता है कि देवकीनंदन खत्री की कथा का क्षेत्र व्यापक है। ऐतिहासिक उपन्यास का क्षेत्र तो और भी दूर-दूर तक जाता है । सारा खेल प्रकृति की गोद में होता है। प्रसिद्ध नाटक 'मुद्राराक्षस' में भी कूटनीतिक दाँव-पेंच हैं । श्री खत्री अपनी ऐयारी का वहीं से समर्थन लेते हैं। कौटिल्य अथवा चाणक्य अपनी कूटनीति के लिए प्रसिद्ध हैं । और विना युद्ध किये केवल कृट वल से नंड और उसके राक्षम मंत्री को पराजित कर सत्ता पर कब्जा कर लेता है। किन्तु चाणक्य का खेन नीरस है। सूखा है। इसके मुकाबले खत्री जी के कथानक के क्षेत्र प्रकृति गोद में हैं । स्त्री-पुरुष का प्रेमविराट प्रकृति की गोद में विकसित होता है। सारे दाँव-पेंच का स्थान जंगलों और पहाड़ों के रमणीय स्थल हैं । लेखक स्थान-स्थान पर इनका वर्णन करते चलता है। 'चन्द्रकान्ता' ऐयार देवीसिंह ने देखा कि खूब खुलासी जगह बल्कि कोम भर का माफ मैदान चारों तरफ ऊंची-ऊंची पहाड़ियाँ जिन पर किसी तरफ आदमी चढ़ नहीं सकता, वीच में एक छोटा सा झरना पानी का बह रहा है और बहुत से जंगली मेवों के दरहनों से अजव सोहावनी जगह मालूम होती है। चारों तरफ की पहाड़ियाँ नीचे से ऊपर नर छोटे छोटे करजनी घुमची बैर मकोइचे चिरौंजी वगैरह के घने दरख्तों और लताओं में एरी हुई हैं, बड़े-बड़े पत्थर के ढोंके मस्त हाथी की तरह दिखाई देते हैं । ..हवा चलने से पेड़ों की घनघनाहट और पानी की आवाज तथा बीच में मोरों का शोर और भी दिल का सींच लेना है...दोनों तरफंजामुन के पेड़ लगे हुए हैं। पके जामुन उस चश्मे के पानी में गिर रहे हैं। ...पहाड़ों में कुदरती खोह वने हैं...।' प्रेम, प्रकृति, ऐयारी के तालतिकड़म एवं तिलिस्म के आश्चयों के बीच पाठक बढ़ता चलता है । प्रकृति की गोद में प्रेम, सौंदर्य, उदारता और क्रूरता का खेल चला है । स्त्रियों के प्रति लेखक को सहानुभूति है । स्त्रियां कुछ ही हैं जो बुरी हैं। वे भी प्रायः मनिया डाह के कारण । किन्तु वे बुराई पर उनर कर कुछ भी करने को तैयार हो जाती है। फिर भी लेखक मकन यौनाचार में बचा है । दो-एक औन्त ही मक्न यौन वाली है। प्रेम का मूलाधार रूपाकर्षण है। कोई भी विष कन्या नहीं है । वेश्याओ का क्षेत्र भी अत्यन्त सीमित है । प्रेम का क्षेत्र विशाल है । किन्तु अनुलोम-तिलोम प्रेम के स्थान पर नमान म्नग प्रेम की प्रधानता है। प्रेम विवाह का पूर्वाधार है । जिसमें विवाह नहीं हो सकता उसमें प्रम नहीं होता । यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पूरी कथा गजाआ आंग मामलों की है । ये प्रायः एक ही विरादरी के हैं। वे हैं. आंत्रय । लेखक को न केवल वणं व्यवस्था में विश्वास है बल्कि उसके कर्मकाण्ड में भी । विवाह जाति में ही होना है । छुआछूत भी है। गजकुमार मुसलमान का भोजन नहीं करतं । पानी नहीं पीते । बिना म्नान, ध्यान और सध्योपासना के कोई भी व्यक्ति भोजन नहीं करते । हमी दिल्लगी और टटोली के लिए स्थान विल्कुल नहीं है । श्रृंगार के दोनों पक्षों में पूर्व गग और वियोग मुख्य है । क्योंकि मयोग होते ही कथा समाप्त हो जाती है । पूर्व राग का वर्णन विस्तार पाता है। किन्तु प्रेम दोनों ओर पलता है जिसे अभिभावकों की भी स्वीकृति रहती है। अभिभावक विरोधी प्रेम को प्रम नहीं कहा जा सकता । वे प्रायःकटिला के प्रेम हैं। प्रेम और पीड़ा दोनों सहचर हैं। यह (xii) 1 --