पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्दनाथ का ठीक ठीक पता लग गया और इन्द्रनाथ डाकुओं के फदेस निकल गाटा तुझे अमीर कर दन का जिम्मा हम लेत है । रामसिह ने बड उत्साह से गुरु महाराज की आज्ञा स्वीकार कर ली क्योंकि वह जानता था कि कई गला लोग गुरु महाराज के चले हैं अगर ये चाहेंगे और मुझसे प्रसन्न होंग तानि सन्दह मुझ अमोर कर दंग। गुरु महाराज को इस बात का पूर्ण विश्वास था कि बालत्तिह को या किसी डाफू का यह नही मालूम है कि इदनार और कुर्यरसिह हमार चल है या उनसे और हमस कुछ सम्बन्ध है इसीलिये फिक्री के साथ रानमिह को मदद द सकत थे और रामसिह को अपना भद खुल जाने का नय न था। फिर ताराममिह को यह धुन हा गइ कि किसी तरह डाकुओं का सदार मुझस प्रसन्न हो जाय और बालोले समाग ल तो मेरा काम बन जाय अस्तु उसन वर्षों की काशिश में बालसिह का अपने ऊपर प्रसन्न कर लिया और एसएस बहादुरी के काम कर दिखाय कि बालसिह उसे जीजान से मानो लग गया जब जन आकुओं का सर्दार मिलने के लि. बालेसिह के पास जाता तब तब वह उस नौजवान की तारीफ उसस करता। एक दिन डाफू सदार ने रामतिहस कहा कि मैं यालसिह की जुबानी तेरी बडी तारीफ.सुना करता है परन्तु में अपनी आँखो से तरी बहादुरी देखा चाहता हू कल हनलाग एक मुहिम पर जाने वाले है. तू हमारे साथ चल और अपनी बहादुरी का नमूना मुझ दिपला । रामसिह ने मन में प्रसन्न होकर कहा कि मैं आपके साथ चलन के लिये जी जान से तैयार हू परन्तु मालिक की आज्ञा हानी चाहिये। मुख्तसर यह है कि डाकू सरिन रामसिह को आठ दस दिन के लिय मॉग लिया और अपने साथ एक मुहिम पर ले गया ! डाकू नदार को खुश करने का यह बहुत अच्छा मोका रामसिह के हाथ लगा और उसने मुहिम पर जाकर एसी वहादुरी दिखलाई कि डाकू सर्दार मोहित हो गया और मुहिम पर से लौटने याद बडी जिद करक उत्तने वालसिहत रामसिह का माँग लिया। जब रामसिह डाकू सर्दार के साथ जाने लगा तब उमने कह मुन कर अपनी माँ को भी साथ लिया जा उसका दिल का हाल अच्छी तरह जानती थी। गिरनार पहाड के पास ही कहीं पर सत्तगुरु दवदत्त' का काई स्थान है । हम यह नहीं जानते कि ये सत्तगुरु देवदत्त' कौन थ और उनकी गद्दी का क्या हाल है मगर इतना रामसिह की जुबानी मगलून हा गया था कि आज कल के डाकू लाग ‘सतगुरु देवदत्त" की गद्दी के चेले है और उनक नाम की बडी इज्जत करत है। डाजू सर्दार क पास जाने के बाद भी महीने में दो तीन दफे रामसिह गुरु महाराज के पास आया करता था। इसी महीन में जब डाकू सर्दार ने खुश हाकर रामसिह को अपन सिपाहियों का सर्दार बना दिया तब उसे मालूम हुआ कि इन्द्रनाथ इसी डाकू सर्दार के कर्ज में पडे हुए हैं इसके पहिले उसे इस बात का केवल शक था पर विश्वास न था। जिस दिन इस किले के सामने मैदान में बालेसिह से और रनवीरसिह स लडाई हुई थी उसी दिन रामसिह ने गुरु महाराज के पास आ कर यह खुशखबरी सुनाई थी कि इन्दनाथ का पता लग गया वह उसी डआफू सर्दार में फजे में है जिसके यहाँ में रहता हू, आप जो कुछ उचित समझे करें और मुझे जो कुछ आज्ञा हो करने के लिय में तैयार हु यह खुशखबरी सुन कर गुरु महाराज बहुत प्रसन्न हुए, रामसिह को ता कई बातें समझा बुझाकर विदा किया और मुझे यह आज्ञा दी कि रनवीरसिह का इस ढव समर पास ले आओ जिसमें किसी का कानों कान खबर नहा। हम सदार चेतसिह के नाम पत्र लिख दते है वह इस काम में तुम्हारी सहायता करेगा बल्फि एक पत्र और लिय जान यह भी सदार चेतसिह का देना और कह दना कि अपने किसी विश्वासपात्र के हाथ राजा नारायणदत्त के पास भेजवा दें। गुरु महाराज की आज्ञा पाकर में यहाँ आया और सर्दार चतनिह से मिल कर तथा सब हाल कह कर गुरु महाराज की चीठी दी। सदार चनसिह न उसी समय अपने भतीज को राजा नारायणदत क पास रवाना किया और रनौरसिह को यहाँ स लाने में मुझे सहायता दी। (उस गडह की तरफ इरारा करक जिस राह से वे लोग इस कार में अय २५) इसी राह से मै इस कमरे में आया था. उस समय रनवीरसिह और बीरसेन दोनों आदमी इस कमरे में साय हुए थे और दोनों के सिहनि पानी का भरा हुआ एक चाँदी का बतन रक्खा हुआ था मैदानों के सिहनि जाफर पानी के बतनों में एक प्रकार को दवा डाल दी जोजों को फायदा पहुचाने के साथ ही साथ गहरी नीद में बहोश कर दन की शक्ति रखती थी और उलटे पैर यहाँस लौट गया तथा यह रान्तायन्द करता गया। दो घण्टे के बाद जब मै फिर इस कमर में आया तापानीका दर्तन दखने से मालूम हो गया कि दोनों ने इसमें से थोड़ा थाना जल पीया है बस में बाफिकी क साथ सर चतसिह की सहायता से रनवीरसिह का यहाँ से उठा ले गया और जब अपने स्थान के पास पहुंचा हा एक पेड़ कनीये इन्ह रस तथा इनके जख्मों पर अनूठी बूटी का रस लगाकर अलग हा गया । पाठक महाशय, अयता आपको मालूम ही हो गया हागाकि यह साधावा बही जिनका हाल हम ऊपर पचीत ययान में लिख आए है और यह साधु महाशय अपने साथ स्नपीर को लकर जिस पापा के पास गए थे या जिसने कुतुम कुमारी १११३