पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११२

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. - रनबीर की सूरत बदलकर डाकुओं की तरफ रवाना किया था यह गुरु महाराज ही थे जिनका हाल छब्बीसवे क्यान में लिखा जा चुका है। ऊपर लिखा हुआ हाल कहकर साधु वाया दम लेने के लिये कुछ रुक गए और फिर इस तरह कहने लगे- ‘जय रनबीरसिह की आँख खुली तो मेरा लिखा हुआ एक पुर्जा पढ़ कर जिसे मैंने उसके पास वाले एक पेड़ के साथ चपका दिया था पश्चिम की तरफ चल निकले और थोड़ी ही देर बाद इनकी मुझसे मुलाकात हुई।मने गुरू महागज की आज्ञा से इन्द्रनाथ का कुछ हाल कागज पर पहिले ही से लिख के इसलिये रख छोड़ा था कि इन्दनाथ का पता न लगेगा नो यह कागज कुसुमकुमारी के पास भेज देंगे। वही कागज मेंने रनबीर के आगे रख दिया जिसके पढ़ने सइहे सब हाल मालूम हो गया। इसके बाद मैं रनवीर को गुरु महाराज के पास ले गया और सब हाल कहा। गुरु महाराज ने इन्हें डाकुओं का सब भेद बताया जहाँ वे रहते थे वहा का पता दिया और यह भी कहा कि ये अकू लाग सतगुरु देवदत्त की गद्दी तथा उनके चेलों ओर नाम को हद से ज्यादे मानते है, तुम सत्तगुरु देवदत्तक नकली चेल धन के यहां जाओ और अपने पिता को छुडाने का उद्योग करो। वहाँ अकुओं के मकान में माई अन्नपूर्णा का एक स्थान है जिसकी पूजा एक औरत करती है, वह और उसका लडका राम सिह तुम्हारी मदद करेगा, हम युढिया के नाम की एक चीठी लिख देत ई, इस बात की खबर राजा नारायणदत्त के पास भेज दी गई है तीन चार दिन के अदर तुम्हारे पास मदद भी पहुंच जायगी मगर तुम अपना काम बडी होशियारी से करना जिसमें डाकू सर्दार को तुम पर शक न होने पाये नही तो सब काम चौपट हो जायगा, इस भरोस पर मत रहना कि डाकू सर्दार की जिन्दगी में उसके मकार की हद के अन्दर फौजी मदद (जो तुम्हारे पास भेजी जायगी) कुछ काम कर सकेगी। तुम्हे मदद पहुंचन के पहिले ही डाकू सर्दार पर अपना कब्जा कर लेना चाहिए। इत्यादि बातें समझा बुझा कर एक दूटी का रस लगा कर इनका रंग काला कर दिया और उस तरफ रवाना किया। इतना कह कर साधु महाशय दम लेने के लिय फिर रुके और उस समय वीरसेन न पूछा 'जय डाकू लोग सतगुरु देवदत्त को मानते हैं तो माई अन्नपूर्णा की पूजा क्यों करत है ? साधु-माई अन्नपूर्णा का वह स्थान जिसका मेन जिक्र किया है डाकुओं का बनाया हुआ न था बल्कि रामसिह की माँ ने बनवाया था क्योंकि वह माई अन्नपूर्णा की उपासना और भक्ति बहुत दिनों से करती है। बीरसेन-ठीक है, अच्छा तब क्या हुआ? साधु-इसके आगे का हाल यदि ररवीरसिह बयान करें तो अच्छा होगा। कुबेरसिह-में भी यही अच्छा समझता हू और रनवीर की जवानी सविस्तार हाल सुनने की इच्छा रखता है। रनवीर-जेसी आज्ञा रनवीरसिह ने डाकुओं के घर जाकर कारवाई करने का हाल जैसा कि हम ऊपर लिख आये है बयान किया इसके बाद अपना बाकी का हाल जिसे हम छोड आये हैं यों कहना शुरू किया- 'जैसाकि अभी कह चुका हू उस दग से जब मै रामसिह उसकी मा और अपन पिता को साथ लेकर पैदल ही वहाँ से रवाना हुआ तो मैंने रामसिह से पूछा कि वे पाँचों औरतें कौन थीं जिन्हें तुम मेरे देखते देखते इस मकान में ले आये थे? इसके जवाब में रामसिह ने कहा वे पाँचों औरतें राजा कुबेरसिह के रिश्तेदार मन्मथसिह के घर की है जो डाकू सर्दार की आज्ञानुसार इसलिये गिरफ्तार की गई है कि उनके बदले में बहुत सा रुपया लेकर तब छोडी जायें क्योंकि डाकू सर्दार को आज कल रुपये की बहुत जरूरत थी, और इसीलिये उसी दिन डाकू सर्दार ने कुसुमकुमारी को भी गिरफ्तार करने की आज्ञा दी थी। इतना सुनते ही राजा कुबेरसिह चौक पड़े और बोले, हैं। मन्मथसिह के घर की औरतें ! रनवीर-जी हों। कुबेर-अब वे औरतें कहाँ है? रनबीर-(उस गडहे की तरफ इशारा कर के) नीचे बैठी हुई है, यदि इच्छा हो तो बुला ली जायें। कुबेर-(गुरु महाराज की तरफ देख के) यदि आज्ञा हो तो वे ऊपर बुला ली जारों ? गुरू-जल्दी न करो, वे आराम से नीचे बैठी हुई है, जहाँ तक हम समझते है सिवाय इन लोगों के जो यहाँ मौजूद है और किसी को भी तुमलोगों का हाल मालूम न होना चाहिए। कुबेर-सो तो ठीक है। इन्द्रनाथ-वेशक हमलोगों का हाल किसी को मालूम न होना चाहिये। मन्मथसिह के घर की ओरतों का नाम सुनकर कुसुमकुमारी के दिल की अजय हालत हुई अगर बडे लोग वहाँ देवकीनन्दन खत्री समग्र १११४