पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११३

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2 उपस्थित न होते या रनवीरसिह के बदले में कोई दूसरा आदमी इस किस्से को सुनाता होता तो कुसुमकुमारी अपने दिल को न रोक सकती कुछ न कुछ जरूर पूछती और उन लोगों का देखने की इच्छा प्रकट करती मगर इस समय लज्जा ने उसे रोका और वह ज्यों की त्यों चुपचाप बैठी रही। कुवेर-(गुरू जी से) क्या उन औरतों को इन्द्रनाथ का हाल मालूम नहीं है। गुरु-अगर मालूम भी है तो केवल इतना ही कि यह कैदी वास्तव में राजा इन्द्रनाथ है जिन्हें छुड़ाने के लिय रनबीरसिह आये थे। कुवेर-(रनवीर से) अच्छा तब क्या हुआ और उन औरतों का तुमने किस तरह छुडाया रनवीर-कुवर से) जैसे ही हमलोग डाकुओं की सरहद के बाहर हुए वैसे ही आपके पॉचसौ फौजी सिपाही जिन्हें गुरु महाराज की आज्ञानुसार आपने भेजा था मिले, उस समय मैन रामसिहं से पूछा कि अब क्या करना चाहिये ? यदि कहा तो इस छोटी सी फौज को लेकर मैं पीछे की तरफ लौटू और जितने डाकू वहॉ है सभों को मार कर बाकी कैदियों को भी छुड़ाऊँ, रामसिह ने जवाब दिया कि येशक ऐसा ही करना चाहिये, डाकू सर्दार मारा ही गया और जो सभों का अफसर था आपके साथ हू अस्तु अब वे लोग कुछ भी नहीं कर सकत आपकी राय अगर ढीली भी हो ता मे जोर देकर कहता है कि लौटिये और उन कम्बख्तों को मारिये जिसमें भविष्य के लिये मुझे किसी तरह का डर न रहे । आखिर ऐसा ही हुआ. बस हम लोग उस छोटी सी फौज को साथ लकर लौट पड़े और डाकुओं के उस मकान को घेर लिया जिसमें पिताजी कैद थे। रामसिह की बहादुरी की मै जहाँ तक तारीफ करूँ उचित है, उसन कोठरियों और तहखानों में घुस घुस कर के डाकुओं को खोज निकाला और मारा ! मेरी इच्छा तो बालेसिह को वहाँ से ले आने की थी मगर उस मार काट में रामसिह की तलवार ने उसका सर भी अलग कर दिया और उसके साथियों में से भी किसी को न छोडा जो उसकी खबर उसके घर पहुचाता। दीवान-अच्छा हुआ जो वह कम्बख्त मारा गया। उसने हमलोगों को बडा ही तग किया था, परसाल उसने कुसुम से अपनी शादी के लिये कितना जोर मारा और दिक किया कि मैं कह नहीं सकता। जब उसे रनबीरसिह का हाल मालूम हुआ तो उसने अपन इलार्क में रनवीरसिह को फंसान के लिये पहाड पर कुसुम तथा रनवीर की मूरतें बनाई क्योंकि उसे यह खबर लग चुकी थी आज कल शिकार खेलते हुए रनवीरसिह वहाँ तक आया करते है। यद्यपि हम लोगों को उसकी खबर हो गई थी मगर सिवाय निगरानी के हम लोग और कुछ भी नहीं कर सकते थे, अगर साल भर पहिले ही हम रनवीरसिह और जसवन्तसिह के हाल से कुसुम को होशियार न कर दिये होते और दोनों की तस्वीरें कुसुम को न दिखा दिये होते तो बडा ही गडबड मचता । अच्छा हुआ जो उस कम्बख्त को रामसिह ने जहन्नुम में पहुचाया । इन्द्रनाथ-कुसुम को अपनी शादी का पूरा पूरा हाल कब मालूम हुआ? दीवान-दो साल से ऊपर हुआ,जय कुसुमकुमारी एक दिन ताला तोडकर इस कमरे में चली आई थी क्योंकि वह बरावर सभों से इस कमरे का हाल पूछती थी मगर कोई कुछ बताता न था आखिर एक दिन क्रोध में आकर उसने ताला तोड ही डाला, और जब इन तस्वीरों का देखा तो मुझ बुलवा मेजा और इन तस्वीरों का हाल पूछा लाचार होकर मुझे कुछ थाडा सा हाल कहना ही पड़ा। मैंने केवल उसकी शादी के विषय में थोड़ा सा हाल कहा और रनवीर तथा जसवन्त की तस्वीर का परिचय देकर बताया कि वह रनवीरसिह राजा नारायणदत्त का लड़का है। बस इससे ज्यादे कुछ हाल कुसुमकुमारी को मालूम न हुआ । कुवेर--मुझे याद है आपने एक दिन मुझसे मिलकर यह बात कही भी थी। (रनबीर से) अच्छा तब क्या हुआ? रनबीर-डाकुआं के मारने बाद उनका माल असबाब सब लूट लिया और उन लोगों को भी र्जा उनके यहाँ कैद थे छुडा गुरु महाराज के स्थान पर आये। गुरु महाराज की आज्ञानुसार कई फौजी आदमियों को साथ करके और खर्च इत्यादि दकर सब कैदियों को उनके घर मेजवा दिया । इसके बाद गुरुमहाराज ने (कुबेरसिह की तरफ दखकर)लालसिह को जो उन फौजी सिपाहियों का अफसर था और जिसे आपने गुरु महाराज की आज्ञानुसार काम करने की आज्ञा दी थी बाकी फौजी आदमियों के सहित आपके पास लौट जाने की आज्ञा दी और उसी के हाथ एक पत्र भी आपका भेजा जिससे आपको हम लोगों का सब हाल मालूम हुआ होगा। इतना कहकर रनवीरसिह चुप हो गये। कुसुमकुमारी उठकर पुन अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी और बोली 'पिता! अब तो तुम मुझसे जुदा न होओगे? और रोने लगी। कुसुमकुमारी के रोनने सभी का कलेजा पानी कर दिया कुबेरसिह इन्द्रनाथ और गुरु महाराज ने समझा बुझा कर उसे शान्त किया। इसके बाद कुसुम और टीन ने उस रास्ते को बड़े गौर से देखा जिधर से इन्द्रनाथ वगैरह इस कमरे १११५