पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

R बदनामी नहीं हो सकती। सिवाय इसके वह दिलेर और वहादुर भी है दस बीस दुश्मनों का मुकाबिला करना उसके लिए अदनी बात है, और वह साथ चलने पर राजी मी हो जायेगा क्योंकि तुम्हें बहुत मानता है और तुम्हारी इस दूसरी शादी की बातचीत स उसे भी रज है, क्योंकि वह नहीं चाहता कि तुम्हें किसी तरह से दुख हो। रम्भा - बात तो बहुत ठीक कही मुझे आशा है कि अर्जुनसिह अवश्य मेरा साथ देगा अच्छा कल सर्वर जब वह मामूली समय पर मुझसे मिलने आवेगा तब मैं उससे यातें करूँगी, वह नरेन्द्रसिह को पहिचानता भी है, मगर तुम वह तस्वीर लने से न चूकना और जिस तरह वने कल दिन भर में उसका बन्दोबस्त जरूर करना । तारा - ऐसा ही होगा। इसके बाद वे दोनों उसी कमरे में अपनी अपनी चारपाई पर सो रहीं। तारा को तो नींद आ गई मगर रम्भा की आख बिलकुल न लगी। रात भर घडियाल की आवाज गिना की और अपने जाने की तैयारी तथा दूसरी बातें सोचती रही। सवेरा हाते ही वह चारपाई स उठी तारा को भी जगाया, हाथ मुँह धो कर बैठी और अपन भाई अर्जुनसिह के आने की राह देखने लगी। थोड़ी ही देर बाद अर्जुनसिह भी आ पहुँचे। रम्भा को रोज से ज्यादे उदास देख बोले- 'वहिन आज तुम बहुत ज्यादा उदास मालूम होती हो ! इसका सबब तो मै जानता ही हूँ क्यों पूडूं तो भी कहता हूँ कि सब करों और घबडाओ मत, देखो ईश्वर क्या करता है। रम्भा -क्या करु मैया, अब तो मैं अपनी जान देने को तैयार हो चुकी। पिता मानते नहीं मा कुछ सुनती नहीं तुम कुछ मदद करत ही नहीं जी ही के क्या (आसू अर्जुन-(अपने रूमाल स रम्भा के आसू पोंछ कर) वहिन मै तो कई दफे मना कर चुका हूँ मगर लोभी पण्डितों के फेर में पड़ के कोई सुनता ही नहीं तो क्या करूँ? अब जो तुम कहो मैं करने को तैयार हूँ। अपने जीते जी किसी तरह की तकलीफ तुमको न होने दूंगा? रम्भा - क्या मेरा कहना तुम मानोगे ? अर्जुन 1- जरूर मानूंगा। रम्भा - अच्छा मुझे इन सभोंसे चुपचाप काशी पहुंचा दो मैं वहा विश्वनाथ के चरणों में अपना पतिव्रत निबाहूँगी और देखूगी कि माई अन्नपूर्णा-मेरी कुछ सुनती है या नहीं। अर्जुन - क्या हर्ज है चलो तुमको आज ही यहा से ले चलता हूँ, कहो तो किसी और को भी साथ लेता चलूँ ? रम्भा - तारा मेरे दुख सुख की साथी होकर चलेगी और किसी को साथ लेना मुनासिव न होगा। [-- (तारा की तरफ देख कर ) क्यों क्या तुम चलोगी? तारा - जरूर चलूँगी। अर्जुन – अच्छा ता फिर सवारी का वन्दोवस्त किया जाय? रम्मा-तुम जानते ही हो कि हम लोगों को घाडे पर चढने का खूब मोहावरा है फिर भागने के लिए इससे बढ़कर और कौन सवारी होगी? अर्जुन- अच्छा तो फिर घोडे का ही बन्दोवस्त हो जायगा। अब मैं जाता हूँ क्योंकि इसी वक्त से फिक्र करनी होगी तारा - तुम्हारे पास नरेन्द्रसिह की तस्वीर भी तो होगी? अर्जुन- हाँ है तो। तारा – मुझे दा। अर्जुन 1-- अच्छा मेरे साथ आओ मैं तुम्हें दूं। तारा -- ( मौहें मडाड कर) वाह ! तुम्हारे साथ वहाँ मर्दो में चलूँ ॥ अर्जुन – (हॅस कर ) अच्छा मै अपने साथ लेता चलूंगा रास्ते में ले लेना । तारा-सो हो सकता है। अर्जुन -अच्छा तो मैं जाता अब आधी रात को मुलाकात होगी। अर्जुनसिह वहा से रवाना हुए और अपने घर जाकर छिपे छिपे सफर की तैयारी करने लगे। आठवां बयान शाम होते ही रम्भा और तारा ने भी अपनी तैयारी इस तरह पर कर डाली कि किसी लौडी तक को मालूम न -हुआ। इसके बाद कुछ खा पीकर सोने के कमरे में जा अपने अपने पलग पर सो रहीं। पर नींद काहे को आती थी यही सोच रही थीं कि अर्जुनसिह आवें और हम लोग यहाँ स चलते बनें। आधी रात के याद बाहर से किसी के पैर की चाप मालूम हुई। दोनों उसी तरफ देखने लगी। अर्जुनसिह सामने आ खडे हुए जिनको देखते ही दोनों उठ बैठी और तारा ने पूछा, 'क्या आप तैयार हो आये? इसके जवाब में अर्जुनसिह ने कहा हाँ सब दुरुस्त है अब देर मत करो। नरेन्द्र मोहिनी ११३१ अर्जुन