पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३०

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exi रम्भा - यहा आती समय पहरे वालों ने तो जरूर टोका होगा और जाती समय भी टोकेंगे। अर्जुन-क्या पहरे वालों की इतनी मजाल हो गई कि मुझे आते जाते रोक टोक करे ? हो जाने के बाद जिसकाजी चाहे शिकायत करे। अच्छा अब देर मत करा जल्दी चलो। रम्भा और तारा दोनों को साथ लेकर अर्जुनसिह घर से बाहर निकले और पैदल ही मैदान की तरफ चले। थोडी दूर जा कर इन लोगों को एक पुराना बड का पड मिला जिसके नीचे तीन साईस कसे कसाये घोडे लिये अर्जुनसिह के आन की राह देख रहे थे। तीनों आदमी घोडे पर सवार हुए। अर्जुनसिह ने तीनों साईसा से कहा अब तुम लाग अपने अपने घर जाओ,जर हम आगे तब युला लेंगे। घर बैठे तुम लोगों के खाने को पहुंचा करेगा। तीनों साईस सलाम कर विदा हुए और इन लोगों ने पश्चिम का रास्ता पकड़ा। जब तक रात रही तीर्ना घोडा फेंके चल गये। जव आस्मान पर सफेदी दिखाई दने लगी तब अर्जुनसिह न पाडे की बाग रोकी और रम्भा की तरफ देख कर कहा, 'बहिन, अब हम लोगों को यहाँ कुछ देर के लिए रुक जाना चहिए। अदाज से मालूम होता है कि मुसाफिरों के टिकने का स्थान अर्थात् चट्टी (पडाव) अव बहुत करीब है, मगर हम लोग आगे चल कर किसी दूसरी चट्टी में डेरा डालेंगे यहा न ठहरेंगे, इसलिए इसी जगह रुक कर घोडों को ठण्डा कर लेना राहिए। तुम दोनों के वदन के लायक मर्दानी पोशाक भी में लेता आया हूँ जो तुम लोगों के घाडों की जीन के साथ असबाब में पीछे की तरफ बँधी हुई है मुनासिब है कि तुम दोनों भी अपनी मर्दानी सूरत बना लो।' अर्जुनसिह की बात तारा और रम्भा न भी पसन्द की और घोडे स उतर पड़ी। जीन खोल घोडों का ठण्डा होन के लिये छोडा और खुद भी जनानी पोशाक उतार मर्दाने कपड़े पहिर कर तैयार हो गई। तीनों आदमी चारजामर विछा कर पेड के नीचे बैठ गये। कुछ देर बाद रम्मा का इशारा या तारा न अर्जुनसिंह से कहा आपने वादा किया था कि नरेन्द्रसिह की तस्वीर मुझे दिखावेंगे? अर्जुनसिह ने कहा, हाँ हाँ में नरेन्द्रसिह की तस्वीर लेता आया हूँ, लो देखो। यह कह अपने जेब स तस्वीर निकाल तारा के हाथ में दे दी और आप घोड़ों को कसने लगे। तारा ने रम्भा के हाथ में तस्वीर देकर कहा 'देखा वहिन एसे खूबसूरत और दिलावर नरेन्द्रमिह के बारे में लोगों ने कैसी कैसी गप्पें उड़ाई है ।। तस्वीर देखते ही रम्भा की आखें डबडबा आई और जी बेचैन हो गया। अपने को बड़ी मुश्किल से सम्हाला और तस्वीर तारा के हाथ में देकर बोली देखना चाहिए इनकी बदौलत मेरी क्या गति होती है। अर्जुनसिह दो घाडों पर जीन कस चुके जव अपनी सवारी का घोडा कसने लगे तो यकायक कुछ देख कर घोडा भडका और अर्जुनसिह के हाथ से छूट मैदान की तरफ भागा वे भी उसके पीछे दौडे। रम्भा और तारा यह देख उठ खडी हुई और उस तरफ देखने लगी जिधर घोडे के पीछे पीछे अर्जुनसिह दौड गये थे। घोडा चक्कर लगा लगा कर दौडता और कभी खड़ा होकर पीछे की तरफ देखता, जब अर्जुनसिह उसके पास पहुँचते तो फिर तेजी के साथ भागता था ! दिन बहुत चढ आया मगर वह घोडा अर्जुनसिह के हाथ न लगा यहा तक कि देखत देखते वे इन दोनों की नजरों से गायब हो गये। आखिर घबडा कर रम्भा और तारा दोनों घोड़ों पर सवार हुई और उसी तरफ चली जिधर घोडे के पीछे अर्जुनसिह गये थे, मगर इनका मतलब सिद्ध न हुआ दिन भर भूखे प्यासे दौड़ने पर भी अर्जुनसिह से मुलाकात न हुई और दोनों एक बडे भयानक मैदान में पहाडी के नीचे पहुँच कर रुक गई। लाचार दोनों औरतें घोडों से नीचे उतरी। घोडों की पीठ खाली कर लम्बी बागडोर लगा पत्थर से अटका चरने के लिये छोड दिया । और खुद एक चिकने पत्थर पर बैठ रोने और अफसोस करने लगी। रम्भा -देखो बहिन, बुरी किस्मत इसे कहते है। तारा - परमेश्वर की मरजी न मालूम कैसी है । इस वक्त हमलोग कैसी विवश हो रही है ! रम्भा - अर्जुनसिह के हाथ अगर घोड़ा लग भी गया होगा तो वह उस ठिकाने जाकर हम लोगों को न देख कितना 5 घबडाये होंगे। तारा - लेकिन अब हम लोगों का वहा तक पहुंचना मुश्किल है। रम्भा - मालूम ही नहीं कि घूमते फिरते कहा आ गये । अब भूख के मारे जी बेचैन हो रहा है। तारा - मुझे विश्वास है कि जीन की खुर्जी में थोडा बहुत मेवा अर्जुनसिह ने जरूर रखवा दिया होगा। रम्भा - देखो तो कुछ है कि नहीं? तारा ने उठ कर दोनों घोडों की जीन की तलाशी ली, लगभग दो सेर के मेवा दोनों में पाया जिससे वह बहुत खुश हुई और पुकार कर रम्भा से बोली- "हम दोनों दुखियों के खाने लायक बल्कि चार पाच दिन तक जान बचाने लायक मेवा इसमें हैं।' देवकीनन्दन खत्री समग्र ११३२