पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३१

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ayt रम्भा - कहीं पानी मिले ता पहिले मुंह धो लना चाहिए ! तारा - इस पहाड की सब्जी की तरफ देख कर मैं समझती हूँ कि इसके ऊपर पानी का चश्मा जरूर होगा। रम्भा - अनी ता दिन भी बहुत है चला पहाडी क ऊपर चलें। रम्भा और तारा दानों न मदा साथ लिया और पहाडी क ऊपर चठन लगी ! थाडी दूर ऊपर जाकर पानी के कई सोते इनका मिले। एक झान के पास बैठ कर इन लागों न मुँह धाण और किफायत के साथ थाडा सा मेवा खा कर जी ठण्डा किया निस्क बाद फिर पहाड के ज्पर चढन ल्गी वहा तक कि शाम होत हात चाटी पर जा पहुंची। पहाड क ऊपर एक खूबसूग्न इन्गरत ओर उसके पास ही दाहिनी तरफ हट कर कास भर की दूरी पर एक छाटा सा शहर भी दिखाई पड़ा। रम्भा न कहा तारा हन ला। इन शहर में चल करन्द्रसिह को जरूर टूटेंगे दिखा लागों ने उनके चार में क्या क्या गध्ये उडाइ थीं कि लॅगड़ लूल कान और बडे ही पदसूरत है। लकिन अगर वैसे भी हात तो क्या था? मरा सम्बन्ध ता उनर हो चुका था मर पति कहला चुक थ अस्तु पर लिए परमश्वर वही है चाह जैसे हों। तारा- उन लोगों की जुबान में सॉप इस जिन्हान नरन्दसिह के यार में एसा कहा था। मेता कह सकती हूँ कि एसा घूबसूरन और बहादुर दुनिया भर में न होगा। तुम बडी किस्मतवर हा रम्मा - आज की रात इस पहाड पर काट कर रल उस शहर में जरूर चलना चाहिय ! तार - एसा ही करेंग। रम्भा - मैं समझती हूँ कि इस मदानी सूरत के बदल हम लोग फकीरी हालत में रह कर अपने का इसस ज्याद छिपा सकेंगे। तारा- इसमें तो कोई शक नहीं कल उस शहर में चल कर बाजार से कपडे खरीद फकीरी ढग की पोशाक दुरुस्त करा लूंगी। यदानों पेढी बातें कर ही रही थीं कि आस्मान में काली काली घटा घिर आइ । चारों तरफ अधेरा छा गया पानी यरतन लगा बिजली चम्कने और गरजन लगी जिसफी डरावनी आवाज पहाडों से टक्कर खा कर दसगुती हो इन दोन दचारियों के जी का दहलान लगी। दानों उठ कर उस दालान न चली गई जिसका हाल ऊपर लिख चुके हैं। रात भर पानी बरसता रहा और ब दानों उसी दालान में घेढी अपनी अपनी किस्मत की शिकायत करती रहीं। जब सवेरा हुआ पानी यरसना बन्द हुआ और धूप निकल आई। व दानों भी उठी और सवरे के जरूरी कामों से छुट्टी पा एक घश्म में हाथ मुँह धा कुछ मेवा खा कर शहर की तरफ चलन की तैयारी कर दी। तारा ने कहा कुछ मालूम नहीं हमारे दोनों घाडों पर क्या गुजरी रात भर पानी में दुख उठा कर मर गय या जीते हैं। रम्मा-व घोडे अव वहाँन हाग किसी पड़ सतावे बघेनहीं थ जब बदन पर पानी पड़ा हागा किसी तरफ भाग गये होंगफिर हम लोगों को भी ता अब घाडो की जरूरत नहीं है पैदल चलना ठीक होगा जहॉ मन में आया गए जहाँ चाहा पड रह मगर हा पहाडी के नीचे चल कर उन घाडों का एक बार देखना जरूर चाहिए। अगर अनी भी बैंधे हों ता खाल दना ही उचित होगा। तारा- मेरी भी यही राय है। वेदानों पहाडी के नीचे उतरी मगर घाडों का वहाँ न पाया। रम्भा ने कहा सखी मै कहती थी कि दोनों घोडे भाग गये होंगे। चला अच्छा ही हुआ बखडा छूटा अब यहा ठहरने की कोई जरूरत नहीं। इसके बाद वे दोनों शहर की तरफ रवाना हुई। हाय आज तक जो बडे लाड और प्यार स पली थी उसका धर्म के कठिन रास्त का दुख भागना पड़ा। अभी तक जिसको जमाने की गर्म सर्द हवा छू नहीं गई थी उसको आँधी और लू के झपेटे बर्दास्त करने पडे । चन्द्रमा को कडी चाँदनी स जिसके सर में दद होता था उस कडी धूप में मक्खन से भी कोमल अपने बदन को पिघलाना पडा। जा कभी दस कदम मी जबर्दस्ती से नहीं चलाई गई थी आज वह कोसों मिट्टी फॉकन के लिए मजबूर की गई। जो भोजन करने के लिए दिन भर में दस दफे पूछी जाती थी उसे काई मुट्ठी भर अन्न देने वाला भी न रहा जिसकी आख डयडबाई हुई देख लोगों का जी वेचैन हो जाता था उसके आसू पोंछने वाला आज कोई नहीं | जो हा नरेन्द्रसिह की बदौलत रम्भा को आज यह सब दुःख भोगने पडे। मगर धन्य है बेचारी तारा का जा ऐस समय में भी अपनी प्यारी सखी का साथ नहीं छोडती । यह सब प्रम की बात है नहीं तो कौन किसे पूछता है। थोडी थोडी दूर पर धूप से घबडा कर किसी पेड़ के नीचे ठहरती दमल कर चलती आसुओं स अपने चेहर को तर करती दम दम मर पर 'हाय कह के जी के बुखार को निकालती हुई दिन ढलत ढलते सखी तारा को साथ लिए रम्भा उस शहर के पास जा पहुंची जिसे पहाबके ऊपर से देखा था। शहर की बाहरी हद्द पर एक सुन्दर पहाडी थी जिसके नीचे हाथों में लट्ठ लिय चदभाशी ठाट क कई आदमी दिखाई पड।तारा ने चाहा कि किसी से इस शहर का नाम पूछे मगर वे सब के सब विना कहे इन दानों के पास पहुंचे और इन 33 नरेन्द्र मोहिनी ११३३