पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३९

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दि - नरेन्द-वह कौन सी बात है कहा। श्यामा- इस तरह मैं नहीं कहने की हॉ आप इस बात की कसम खायें कि किसी दूसर स न कहेंग तो मैं जो कुछ गुप्त भेद है उस कह डाले। गुप्त मद का नाम सुनते ही नरेन्द्रसिह चौक पडे। वह वात कोन सी है जिसके लिय श्यामा कसम खिलाया चाहती है, यह जानने के लिए जी बेचैन हो गया। कुछ गौर करने के बाद नरन्द्रसिंह ने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली और श्याना से कहा 'दया मैं क्षत्री हूँ, मर लिए इससे बढ के कोई कसम नहीं है इसे हाथ में ल में कसम खाता हूँ कि तुम्हारी बात कभी किसी से नहीं कहूँगा । श्यामा - बस बस मरा जी भर गया पर फिर भी मैं आपम एक वादा और कराया चाहती हूँ। नरन्द्र - वह भी कहो श्यामा- अगर मरों वात सुन कर आप यहाँ स भागा चाहे ता हम दानों को भी यहाँ से निकालन की फिक्र कर नहीं तो आपके जान के बाद हम लाग किसी तरह बच नहीं सकेंगी। नरन्द - (ताज्जुब से ) एसी कौन सी बात है जिस सुन ने यहॉ स भाग जाऊँगा? श्यामा ... वह एसी ही बात है। नरेन्द्र -खेर मै इस बात की कसम खाता हूँ कि अपन साथ तुम दानों का भी यहाँ से बाहर करूँगा। हाँ पहिले यह कह दा कि क्या मरे लिए तुम अपन मालिक का साथ छाडोगी? श्यामा - ईश्वर न कर ऐसी बदकार औरत की नौकरी कभी करनी पड़ न मालूम मैन कौन स ऐस पाप किय हैं जिनक बदल कई दिन इसक पास रहन का दुख परमेश्वर न मुझे दिया मैं इसकी लौडी नहीं हूँ मगर वक्त को क्या करूँ? यह सब आपकी इतना कहत कहत आँखों स टपाटप ऑसू की यूद गिरन लगीं कण्ट भर आया और आवाज बन्द हा गई। नरन्द-(हाथ थाम कर) हॉ हॉ यह क्या । राती क्यों हो? मै वादा करता हूँ कि जहाँ तक होगा तुम्हारा दुख दूर करन स बाज न आऊँगा। श्यामा- आपके तो जरा सा निगाह ही कर दन स मेरा जन्म भर का दुख दूर हा जायगा नहीं मरी हुई तो हई हूँ। नरेन्द्र- इसके लिए भी में वही कसम खाता हूँ कि अगर मरे किये तुम्हारा दुख दूर हा जायगा तो मैं कभी मुँह न फेरूगा। श्यामा-(आसू पोंछ कर और अपने को खूब सम्हाल कर ) अव ध्यान दकर सुनिए । पहिले ता यही बता देना ठीक हागा कि यह मोहिनी नहीं है जिस आप मोहिनी समझे हुए है। नरेन्द-(चौक कर ) है । क्या यह माहिनी नहीं है ? श्यामा--नहीं। नरेन्द-खैर यह सब जाने दो और यह बताओ कि अगर यह मोहिनी नहीं तो कौन है ? क्या यह अपनी सूरत बदले श्यामा-यह मोहिनी की बडी बहिन है। नरेन्द्र - हाय हाय ! नालायक न तो पूरा धोखा दिया । पहिले ही भरा जी इससे खटका था। औरतें भी क्या ही आफत होती हैं । ऐसा ही की शैतानी और बदकारी कितावों में दख दख कर और लोगों से सुन सुनकर मैंने दिल में निश्चय कर लिया था कि कभी शादीन कलॅगा। इसी सबब से मैन अपना देश छाडना मजूर किया फिर भी मोहिनी की मुहव्यत में फंस गया और दुख उठाना ही पड़ा। श्यामा-नहीं आपका ऐसा साचना मुनासिब नहीं है। सभी औरतें एसी बदकार और नालायक नहीं होती एक के सव से सौ का बदनाम करना धर्म विरुद्ध है। नरेन्द्र - इसके बार में जा कुछ तुमको मालूम हे खुलासा कहो। श्यामा - सुनिये मैं सब कुछ कहती हूँ। इन्हीं कई दिनों में जब से मैं यहाँ आई इन लागों का पूरा इतिहास जान गई हूँ। इसका नाम कतकी है। गुलाब मोहिनी और केतकी तीनों एक ही माँ के पेट स पैदा हुई है। गुलाय को सात महीने की छाड इनकी माँ मर गई थी।ये तीनों अपने बाप के बडे लाड प्यार से पली है जिसका नाम हजारीसिह था और जो गया के बहुत बडे जमींदारों में गिना जाता था। नरेन्द्र - अच्छा फिर? श्यामा - केतकी जब जवान हुई तब इसने बदचलनी पर कमर वाधी जिससे इसके बाप का बहुत रज हुआ और उसने एक अच्छे खानदान केलडके से इसकी शादी कर दी, मगर इस हरामजादी ने उसे जहर देकर मार डाला। यह दख इसके बाप का और भी रज हुआ और उसने कतकी को मार डालने का पूरा पूरा इरादा कर लिया। यह खवर केतकी को लग गई और उसने रसोई बनाने वाले ब्राह्मण से मिल कर जिसके साथ यह फंसी हुई थी अपने बाप को जहर दिलवा दिया और उसके मरने के बाद कुल जायदाद की मालिक बन बैठी नरन्द-ईश्वर ऐसी औरत से बचावे | अच्छा फिर क्या हुआ श्यामा- कुछ दिन में माहिनी और गुलाब भी हाशियार हुई और इसका चालचलन दख देख चिढ उठी। मोहिनी और गुलाव दोनों बहुत ही नेक और सूधी थी, दोनों में प्रेम भी बहुत था इसलिए दोनों ने अपने बाप के माल में अपना 7 नरेन्द्र मोहिनी ११४१