पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१४१

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lart कतकी-(कुछ साय कर) घूमत-फिरते एक साधू जगल में आ गय। उन्हीं की बदौलत मरी जान बची इसके बाद आपस मुलाकात हुई। अवता जो कुछ थोडा बहुत शक नरेन्दसिह के मन में था वह भी जाता रहा पिर कतकी स कोई सवाल न किया केतकी के पूछन पर कुछ झूठ नच अपना नाम पता आदि बता कर ऊपर का दिल न आध घण्ट भर तक उसस बातचीत करत रह! नब तक श्यामा और भामा नी आ गई। तब नरन्द्रसिह उट कर करपाई पर जल गया केतकी चारपाई क नीच उनके पास जा येठी श्यामा पैर दवान और मामा पखा झलन लगी। नरन्द्रसिह थाडी देर तक कतको महँसी दिल्लगी करत रह इसक याद सा रह) नरेन्दरिह न जान बूझ कर आखे बन्द कर ली। कतकी ममझी कि इन्हें नींद आ गई। थाडी दर बैठ कर चली गई तब इन्होंन अपनी ऑखें खाली और हँत कर श्यामा की तरफ देखा। श्यामा-(मुस्कुरा कर ) आपका ता खूब नींद आई। नरन्द्र -- क्या कहें उसस ता यात फन्न का भी जी नहीं चाहता अब ता मुझ मागन की फिक्र पड़ी है। श्याना- हाशियार रहिय कतकी का अगर जरा नी शक हा जायगा कि आप भागा चाहत है ता बिना आपकी जान लिय न छोडगी ! वह हमशा से ऐसा ही करती आई है न मालूम कितन बचारे इसी कमरे में अपनी जान दे चुके हैं। नरन्द - उसके उस्ताद का तो पता लगगा ही नहीं ! श्यामा-दखिये मरा ख्याल रखियगा!कहीं एसा नहा कि आप मुझ यहीं छाड जाय ओर मै पीछे कुत्तों स नुचवाई जाऊ ॥ नरेन्द - वाह वाह ! क्या तुमन मुझ एसा वमुरोक्त समझ लिया है ! श्यामा -- आपके येमुरौवत होने में काई शक है ? नरेन्द्र - (जाश में आकर ) क्या दा हो घण्ट की जान पहिचान में मुझे वनुरोवत भी समझ लिया ? श्यामा-जी नहीं मगर मैं आपकी तारीफ सब सुन चुकी हूँ। मरो मोसी आप ही के शहर में रहती है और उनकी चीठी पत्री वरावर आया करती है इस सवव स आपका कोई हाल मुझसे छिपा हुआ नहीं है। नरेन्द्र - ता क्या तुम्हारी मौसी न लिखा है कि नरन्द्र नालायक है ? श्यामा -- नहीं मगर उन्होंने रम्भा का हाल जलर लिखा है। नरेन्द्र - रम्मा कौन? श्यामा - जिससे आपने शादी की है। नरन्द्र -- मरो शादी ता हुई ही नहीं | मैं जा बारात में से ही निकल भागा था श्यामा-आपजा चाह समझें मगर आपके निकल मागने से हाता ही क्या है। रम्भा तो समझ चुकी कि आपक साथ शादी हो गई अब क्या वह दूसरी शादी करेगी ! नन्द्र - क्या उसका बाप उसकी दूसरी शादी न करगा? श्यामा - उत्सक याप न तो बहुत कोशिश की थी कि उसकी दूसरी शादी कर मगर रम्भा न साफ इन्कार कर दिया और कह दिया कि 'मेर पति तो नरन्द हो चुके !! नरेन्द्र - फिर क्या हुआ? श्यामा - उसके बाप न यहुत काशिश की और कई आदमियों स उस कहलाया कि नन्द बडा ही बदमाश और बदसूरत था क्या हुआ जा चला गया पण्डित लोग कहत है दूसरी शादी करन में कोई हर्ज नहीं है मगर रम्भा ने एक न मानी और वाली कि नरन्द्र चाहे कैत ही खराय से खराब क्यों न हों मगर मर लिए बहुत अच्छह जव लागों न उसे बहुत तग किया तब वह अपनी एक सखी और चचेरे भाई अर्जुन को साथ ले आपको खाजन निकली। अव न मालूम वह कहा कहा टक्करें मारती और मुसीवत झलती हागी। उस औरत का दखिय कि अपने धर्म का उस कैसा खयाल रहा और बिना दख आपक प्रम मे कैसी उलझ गई इसके खिलाफ आप अपन का दखिये कि कहाँता यह शेखी कि शादी ही न करूँगा कहाँ माहिनी का देख एसा मस्त हुए कि बस उस रग ढग को जहाँ किसी का दखा माहिनी ही समझ लिया और इश्क का पिशाच आपके सिर पर सवार हा गया । अब कहिये आपके बेमुरौवत होने में कोई शक है । आप मेरी बातों से खफान हाइयगा मुझस साफ साफ कहे बिना नहीं रहा जाता, मैं क्या करूँ । नरन्द्र -- नहीं नहीं खफा क्यों हान लगा मगर श्यामा तुम तो गजब की औरत हा! न मालूम कहाँ कहाँ की बातें तुन्हें मालूम है। अगर सचमुच रम्मा न एस्प किया जैसा तुम कहती हो तो जलर मुझे उसके आगे शर्मिन्दा होना पड़ेगा। श्यामा-जी हा मै जा कुछ कहती हूँ बहुत सही कह रही हूँ। अब उसके बाप न बहुत स आदमी उसकी खोज में इघर उधर रवाना किय है। मेरी मौसी न जब बचारी रम्भा का हाल लिखा तो पढ़ कर मुझे बडा हो रज हुआ! मैन अपनी मौती से उसकी तस्वीर मॉग भजी उसने बडी काशिश कर क उसकी तस्वीर उसके घर से लाकर मुझ भजी है उसी के साथ आपकी तस्वीर भी आई थी अभी परसों ही तो वह तस्वीर मुझ मिली है। हाय उसके देखने से कितना रम्ज नरेन्द्र मोहिनी ११४३