पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५७

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किनार बैठ गया और किले के अन्दर से आते-जात औरत मर्दो का तमाशा दखन लगा। जैसे-जैस दिन बीतता जाता था लोगों की आमदरफ्त कम होती जाती थी यहाँ तक कि शाम हाते हात सिर्फ दो लौडियों को साथ लिए हुए एक बूढी औरत घाट पर रह गई और चारों तरफ सन्नाटा हा गया। इस बूढी औरत की उम्र साठ साल से कम न हागी ता भी यह बदन में बहुत स साने के गहने पहिने हुए थी और इसके साथ वाली दानों लौडियों का बदन भी सोने के गहनों से खाली न था। वहादुरसिंह ने समझ लिया कि यह बुढिया वेशक रानी साहेबा की खास लौडी बल्कि लौडिया की सर्दार हागी। वह बहुत दर तक छिफेछिप इन तीनों का दखता रहा। जव बुढिया नहा चुकी और साडी बदल दोनों औरतों को साथ ले किले में जाने के लिए सीढियाँ चढ़ने लगी तय बहादुरसिह दौडकर उसके पास पहुंचा और पैर पर गिर कर रोने लगा- 'हाय माँ तु कहाँ चली गई थी मैनें तेरा क्या बिगाडा था जा मुझ अकेला छाड कर चली गई। अब तरी सी मॉ में कहाँ स लाऊ तू दिन में चास्चार पाँच-पाँच दफ मुझे प्यार करक और जिदद करके खिलाया करती थी अब कोई दा दफे भी खिलान वाला न रहा खुद अपने हाथ से चूल्हा फूकता और खाने का पकाता हूँ। इसमें सन्दह नहीं कि तू लाखों रूपयमेरे लिये घर में छोड़ गई मगर अव वह किस काम का है। तेरी पतोहू भी मर गई अब वह सब धन कौन भोगगा। मैं जानता हूँ कि तू मेर बाप से लड और लाखों जपय ओर जड़ाऊ गहनों पर लात मार कर चुपचाप चली गई थी मगर अप तो बाप राम भी चल बसे घर में सिवाय मेरे और दूसरा कोई न रहा। मॉ मुझसे इतना धन-दौलत सभाला नहीं जाता जिमींदारी का बन्दोवस्त किसी तरह नहीं हाता माँ अब में न मानूगा जरूर तुझ घर ल चलूगा I मा मैन तो तेरा कुछ नहीं विगडा था फिर तू मुझसे क्यों खफा हो गई ? हाय मॉ हाय मॉ 11 अब-जीत जी मै तुझ कभी न छोडूंगा! तैने जिद्द करके मरे लिय जो सिकरी बनवा दी थी ले मैं उतार कर तरे आग फेंक देता हूँ, अब इसे कभी न पहिरूगा !(गल स सिकरी निकालकर और उसक अगि फेंक कर ) तू अगर न चलगी ता में सब धन-दौलत फकीरों को बॉट साधू हो जगल में चला जाऊगा। मै तेरी खोज म वर्षा एक शहर से दूसर शहर मारा फिरा। माँ तू, कहीं न मिली | आज राम ने तुझस मिलाया अब मैं तुझे कभी न छोडूगा चाहे जो हो और विना घर ले गये कभी न मानूगा। मैन सुना था कि मेरे दो तीन भाई बहिन मी थ जिन्हें तू अपने साथ ल गई थी हाय अब व कहाँ है ? मुझ जल्द दिखा जा कुछ दौलत घर में है में उनके हवाले कगा। वे ही गॉव-गिरॉव का भी वन्दोवस्त किया करेंगे सुझसे अब किसी बात से सरोकार नहीं। मुझे धन-दौलत की परवाह नहीं मैं तो दिन-रात भग में मस्त रहना चाहता हूँ, यस पाव भर भग और आधा सर चीनी चाहिए और कुछ नहीं । माँ अब तुझ घर चलना ही होगा मैं किसी तरह न मानूगा। इसी तरह की बहुत सी बातें कहता हुआ बहादुरसिह दर तक बुढिया का पेर पकड कर रोता आर गिडगिडाता रहा। पहिले तो बुढिया धरडाई कि यह कहाँ की बला पीछ पड़ी मगर जय बेशुमार धन-दौलत और गाँव-गिरॉव का नाम सुना तो मुँह में पानी भर आया। साचने लगी कि यहाँ जितना माल दस जन्म म पैदा करूगी,उतना एकदम बात की बात में यह पगला देने को तैयार है। मालूम हाता है कि इसकी मॉ ठीक मेरी सूरत-शक्ल की थी। यह कहता है मेरी बहिन और मेरे भाई का भी तूलती गई थी चलो यह भी अच्छा ही है मेरी एक लड़की और एक लड़का ता हुई है वही इसके भाई-बहिन बनें !फिर इतनी दौलत छोड बैठना नादानी नहीं तो क्या होगा? मेरी समझ में तो यही आता है कि इसके साथ चली चलूँ, मगर इस बार में पहिल अपने लड़के से सलाह कर लेना मुनासिब है। इसी तरह की बातें बुदिया वडी दर तक साचती रही। दोनों अपन-अपने मतलव की धुन में थे। आखिर बुढिया न कहा र्खर जब तू कहता है ता मैतर घर चलूँगी मगर पहिले तेरे भाई से सलाह कर लूँ। दहा - क्या मरा भाई भी इसी शहर में है ? वह क्या काम करता है? बुढिया - महाराज के यहाँ सवारों में नौकर है यहा - और बहिन? युढिया - तेरी बहिन तो अपने ससुराल में है। बहा- हाय ता मै उसकी सूरत आज न दख सकूँगा ! माँ हजार दो हजार रूपया उसके पास भेज दे और घर चल के तुरन्त अपने यहाँ बुलवा भज भाई का भी साथ लेती चल मैं उसकी अपने राजा से मुलाकात कराऊगा। बुडिया -तरा राजा कौन है? बहा- उदयसिह । युढिया - कौन उदयसिह ? बिहार का राजा? यहा-हॉ वही। विहार के राजा उदयसिह का नाम सुन बुढिया थोडी दर तक कुछ साच में पड गई मगर फिर सम्हल गई और बहादुरसिह से बोली अच्छा अब देर हाती है इस समय तो मै जाती हूँ लेकिन कल इसी समय इसी जगह तू मुझसे मिलियो फिर जैसी राय होगी कलॅगी। वहादुर - राय-वाय मैं कुछ नहीं जानता तुझ चलना ही होगा। - नरेन्द्र मोहिनी ११५९