पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६२

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3 बाईसवां बयान हाजीपुर के राजकुमार प्रतापसिह को डरा-धमका कर हमारे बहादुरसिह जो भागे सो फिर किसी को पता भी न लगा कि कहाँ गए और क्या हुए मगर भगेडी महाशय घूमाफिर कर अपने दोस्त बजाज की दुकान पर पहुँच ही गए। कई दिनों की सोहबत में गेपालदास बजाज उनका दोस्त तो हो गया था मगर अपने काम की तरफ खयाल कर के और यह सोच कर कि हमारी वजह से बजाज बेचारे पर कोई आफत न आवे बाद में वहादुरसिह ने उसके यहाँ रहना भी छोड दिया और अब काई भी नहीं कह सकता कि वह कहा रहता हे या क्या करता है। लेकिन बहादुरसिह चाहे जहाँ भी रहता हो मगर वह चमेलादाई से रोज ही मिल कर मॉ के रिश्ते को मजबूत करता रहा। पॉचचार दिन की मुलाकात में भी बहादुरसिह ने चमेलादाई से अपने मतलय की बात नछेडी जब तक कि उसे यह निश्चय न हो गया कि चमेलादाई का लडका रामदास हाजीपुर से चला गया बल्कि बहुत दूर निकल गया होगा। एक दिन दोपहर के सन्नाटे में चमेलादाई अपने सपूत लडके बहादुरसिह को उस घर में ले गई जिसमें उसका कम्बख्त लडका रामदास रहा करता था और बहुत सी अच्छी-अच्छी खाने की चीजें वहादुरसिह के आगे रक्खीं जो रनवास से छिपा-लुका के इसी काम के लिए लाई थी। बटेर के बराबर खाने वाले बहादुरसिह ने भोजन करना शुरू किया और समय पाकर अपने मतलब की बात भी छेड़ दी। सुना है कि तुम्हारे राजकुमार की शादी होने वाली है ? चमेला - हॉ बेटा शादी तो जरूर होने वाली है मगर लडकी बडी ही कम्बख्त है। बहा-सो क्या? चमेला - यही कि दिन-रात रोया-पीटा करती है। बहादुर - वह तो पटन के जिमींदार गुलावसिह की लड़की है न ? चमेला - हा गुलाबसिह की लडकी है। यहा – उसकी शादी तो हमारे राजकुमार नरेन्द्रसिह से होने वाली थी ? चमेला- सो तो नहीं मालूम कि किसके साथ होने वाली थी मगर इतना देखी हूँ कि वह दिन-रात नरेन्द्र नरेन्द्र कह कर रोया करती है और यहा होने वाली शादी को बिल्कुल पसन्द नहीं करती। बहा- मॉ अगर तुम अपने साथ उसे अपने घर ले चलो तो बडा ही मजा हो !हम उसे अपने राजा के यहाँ भेज दें और बहुत सा रूपया इनाम मिले। चमेला - अरे राम राम ऐसा खयाल भी न करना जिस रोज ऐसा सोचेंगे उसी रोज हमारी-तुम्हारी दोनों की जान चली जायेगी। बहा- हम तो अपनी जान रात दिन हथेली पर लिए रहते हैं मगर अफसोस है कि तुम बुढ़िया होकर मरने से इतना डरती हो? चमेला -- तो क्या तुम मुझे मारने ही के लिए यहाँ आये हो और इसी लिए बेटा बने हो? बहा- उभर मेरी बहुत कम है तो क्या हुआ मै कभी किसी का बेटा नहीं बनता अगर बनता भी हूँ तो बस पॉचसात दिन नहीं हमेशा सब का बाप ही बना रहता हूँ, आज तुम्हारा भी बाप बनने का जी चाहता है। बहादुरसिह की बात सुन कर बुढिया धबडा गई बल्कि कहना चाहिये कि बदहवास हो गई और समझ गई कि वहादुरसिह बडा भारी मक्कार और धूर्त है। बहुत देर तक बहादुरसिह का मुंह देखती रही आखिर बोली- चमेला – तुम बडे भारी बदमाश मालूम पडते हो? बहा -- शाबाश, तुमने खूब पहिचाना । अब तुम भी मेरे साथ लुच्ची व मक्कार बनो तो काम चले ! चमेला-खबरदार लौंडे मुंह सम्हाल कर बात कर, मक्कार कहीं का निकल जा यहा से, नहीं तो कान पकड कर उखाड लूगी ॥ बहा - येशक मगर मुझमें एक बड़ा भारी गुण यह है कि जिससे मैं कोई काम लिया चाहता हूँ पहिले उसे अपने कब्जे में कर लेता हूँ जिसमें नाकर-नूकर करने न पावे। इसी तरह तुम्हें भी मैने पहिले ही अपने कब्जे में कर लिया है। चमेला - मैं क्योंकर तेरे कब्जे में आ सकती हूँ ! मैं जब चाहूँ तुझे फॉसी दिला हूँ ! बहा - (हसफर) में तो फॉसी पड़ नहीं सकता मगर कहीं तुम्हारा लडका ही फॉसी न पड़ जाय । में सच कहता हूँ कि तुम्हारी नकेल मैने अपने हाथ में कर ली है। अब तुम झख मारोगी और मेरा काम करोगी। चमेला --तें पागल तो नहीं हो गया है। बहा - क्या यह पागलों का काम है कि अस्सी बरस की खन्नास बुढिया को काबू में कर ले? चमेला - फिर वही बके जाता है । बहा-- अब तो तुम्हें साफ कह के समझाना पडा।लो सुनो मै कहता हूँ- पहिले तो मैने तुम्हे जो सिकरी दी है उसे देवकीनन्दन खत्री समग्र ११५४