पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६५

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चौबीसवां बयान - माहिनी न अपन जी में जा कुछ ठान लिया हे उस हमार पाठक अच्छी तरह जानत है। इसक पहिल जो कुछ हाल लिखा गया है उत्तक पढ़ने स ता आपका यही मालूम हुआ होगा कि इस उपन्यास के पात्रों में कतकी बडी ही बदकार और बुरी नायिका है मगर अब कुछ कार्रवाई माहिनी की दिखाया चाहत है जिस इस उपन्यास का असल पात्र कहना बहुत ही मुनासिब होगा। श्यामा और भामा ( रम्मा और तारा) क छिन जान और मकान क लुट जान के बाद जब कतकी भागी ता सीधे अपन जन्मस्थान खास गयाजी में पहुंची और एक छाट से मकान में जिसभ कभी उसका याप रहा करता था रहन लगी। पहिली सी भीड-भाइ अब उसके यहाँ नहीं है सिर्फ पोंच-सात आदमी जा उनका साथ किसी तरह छाड़ नहीं सकत थे मौजूद है। तपम्पैस की तरफ से चाह उस किसी तरह की तकलीफ न हा मगर फिर भी उसका दिल किसी तरह खुश नहीं है। यह जानकर कि माहिनी और गुलाब की जान नरेन्द्रसिंह की बदौलत वच गई उस बडा ही कष्ट हुआ। उसन समझ लिया कि अब मेरी जान किसी तरह नहीं बच सकती क्योंकि मोहिनी और गुलाम बदले लिए बिना कभी नहीं छोड़ेगी। दिन-रात इसी सोच में पड़ी है कि अब क्या किया जायाथाडे ही दिन बाद उसे जब यह खबर मिली कि मोहिनी एशमहल में पहुच गई तो वह और भी घपडाई और अपनी दातीन सखियों को पास बैठाकर सलाह करने लगी मगर इस बात का निश्चय किसी तरह न कर पाई कि मोहिनी के साथ क्या बताव करना चाहिये। जिस मकान में कतकी रहती थी उसक पाछ एक वाग था। आज वह चाह कैसी ही बुरी अवस्था में क्यों न हा मगर उत्तके याप की जिन्दगी में वह वाग बहुत ही दुरुस्त रहता था। इस बाग क बीचोंबीच में एक छाटा सा बगला भी था जा इस समय केतकी का वैठक बन रहा था। अपन समय का बहुत ज्याद हिस्सा इसी बगल में अकले देठ कर वह बिताती थी। इस बगल में किसी तरह की सजावट न थी सिर्फ फर्श चिछा हुआ था और एक तरफ ऊँची गद्दी पर गाव तकिर्य के अलाव कई छोट-छाट तकिए भी मौजूद थ। कान में चौकी के ऊपर जल स भरी गगाजमनी सुराही और चॉदी का गिलास हर वक्त मोजूद रहता था। आज आधी रात स ज्याद बीत जान पर भी कतकी अकली उस वगले में गददी घर लटी हुई कुछ साच रही है। थाडी-थाडी दर पर उसी से ल ल कर और आखिर म आफ करक रह जाती है। गले क चारा तरफ वाल बाग में एक दम सन्नाटा है । अधरी रात को स्याही न पूरी तरह अपना दखल जमा रक्खा है वायक सामन का टवाजा खुला और मर्दान टाढ में कमर क अन्दर आती हुई एक ओरत दिखाई पडी जिस पर नजर पडत ही कतकी न पहिचान लिया और वह चाक कर उठ बैठी। यह ओरत माहिनी थी जा हाथ में एक बड़ा सा चमकता हुआ छूरा लिये कतकी क सामन जा खडी हुइ और बोली अब क्या इगदा है? इस समय माहिनी की भयानक सूरन दखकर कतकी का कलजा धक-धक करन लगा ! पुरान पाप न उसकी रग रग ढीली कर दी। डर के मारे चारों तरफ दसन लगी और यहाँ तक घबडाइ कि माहिनी की बात का कुछ भी जवाव नद सकी माहिनी न फिर ललकार कर पूछा क्यों चुप क्या है । कुछ वाल ता सही तिन क्या सोच कर मुझ पर इतना बडा जुल्म किया था? केतकी कुछ भी जवाब न द सकी और सिर्फ एक टक माहिनी के हाथ में मौजूद छुर की तरफ देखती रही। आखिर माहिनी यह कहती हुई कि 'दख जय मरी यारी है, सभल बैठ | उसके पास जा पहुंची ओर छाती पर सवार हो छूरा उनक कलजे में मकदानीन दफ अच्छी तरह हिलाया। दस पॉच दफ हाथ पैर पटक कर केतकी न दम ताड़ दिया और उसकी सुन्दर दह मुदा की गिनती में गिन जान लायक हा गई। माहिनी न छूरा उसक कलज से निकाल लिया और उसी की साडी स पाछ कर वहा स चल खडी हुई। बॅगल क बाहर निकल वह याग क पूरब और दक्खिन कान की तरफ गई जिधर की दीवार कुछ टूटी हुई थी ओर पेर अडा कर पार हा जान का सुवीता था। वह बखटक दीवार के पार हो गई और वहा अपन्न वफादार सिपाही लालसिह को दा घाडों की बागडोर थाम मौजूद पाया । माहिनी का देखते ही लालसिह न पूछा काम हा गया ? 'हाँ कह कर माहिनी एक घाड पर सवार हा गई और दूसर घाड पर लालसिह चढ़ बैठा। दानों न तेजी के साथ मैदान का रास्ता लिया। सुबह होन क घण्ट भर पहिल ही दानों आदमी एशमहल म जा पहुच जिस माहिनी का घर कहना चाहिए। घर पहुँचकर भी मोहिनी न आराम नहीं किया बल्कि सीध नीच क उस कमरे में पहुंची जिसमें तहखान का रास्ता था और जिसक बार में हम ऊपर खुलासा लिख आय है। यहाँ आकर उसन चारों तरफ से दर्वाजा बन्द कर लिया। मोहिनी न वही आलमारी खाली जिस तहखान का दर्वाजा कहना चाहिये और हाथ में राशनी लकर नीच अर्थात् तहखान में उतरी। पहिले थोड़ी नक उस लाश के पास खडी रही जा उस तहखाने में मौजूद थी और जिसका कुछ सिरहाने की तरफ से बिछावन का काना उल्टा ओर लपेटा हुआ जिक्र हम कर मोहिनी ११६७