पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७२

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खडा हो कान लगाकर सुनने लगा। अब साफ मालूम हो गया कि शिवकुअरी किसी से बातें कर रही है। पहिली बात जो मैंने सुनी यह थी- जो कुछ तुमने कहा मुझे मन्जूर है मै खूब चिल्लाऊँगी जिसमें मुझ पर काई शुबहा न हो, फिर तुम्हारे साथ इसी महल में ऐश करूँगी इससे ज्यादे में कुछ भी सुनने न पाया--गुस्से से कॉपने लगा एकदम किवाड खोल अन्दर जा घुसा और अपने पलग पर एक आदमी को लेटे और शिवकुअरी को उसके सिर में तेल लगाते देखा । मगर मैं उस दृश्य को अच्छी तरह देख न सका। मै नहीं जानता था कि मेरे लिये यहाँ बहुत सामान इकट्ठे हो चुके है। चौखट के अन्दर पैर रक्खा ही था कि पीछे से आकर किसी ने मेरे गले में कपड़ा डाल दिया और एक झटका देकर इस तरह बँचा कि मैं बदहवास होकर पीठ के बल गिर पडा। घबराहट और चोट के सदमे से एक दम बेहोश हो गया और जब होश में आया अपने को एक तहखाने में बन्द पाया। मैं नहीं कह सकता कि वह समय रात का था या दिन का। 'इस तहखाने की दीवारें सगीन थीं ओर इसकी महराबी छत बहुत नीची थी। एक तरफ आले में चिराग जल रहा था। मेरे हाथ-पैर खुले थे। मैं घबडाकर उठखडा हुआ और धीरे-धीरे टहलने लगा। इस कोठरी में दोतरफ दो दर्वाजे थे जिन्हें खोल कर बाहर निकलने का इरादा किया। पहिले एक दर्वाजे की तरफ गया और खोलने की कोशिश की, मालूम हुआ कि बाहर से बन्द है क्योंकि अन्दर की तरफ कोई जजीर या सिटकिनी बन्द करने के लिये न थी, लाचार लौट आया और दूसरे दवाजे की तरफ गया। "यह दर्वाजा अन्दर से बन्द न था जिससे मै आसानी से खोल सका मगर उस तरफ झाकने से बिल्कुल अन्धेरा पाया लाचार फिर लौटा और हाथ में चिराग लेकर उसको अन्दर गया। छोटी सी कोठड़ी नजर पड़ी जिसमें नीचे उत्तर जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई थी। मैं नीचे उतर गया मगर वहाँ की कैफियत देख एक दम काप उठा और थोड़ी देर के लिए बदहवास हो दीवार से ढासना लगा के बैठ गया। थोड़ी देर बाद अपने को सम्हाल कर फिर उठा और घूम घूम कर देखने लगा। यह कोठड़ी बहुत लम्बी-चौड़ी थी चारों तरफ हड्डियों के ढेर लगे हुए थे. बीच में एक सगमर्मर का चबूतरा था जिसके ऊपर लोहे की एक मूरत आदमी के कद से बडी बनी हुई थी। उसके दोनों हाथ अन्दाज से भी ज्यादे लम्बे थे यह मूरत बडी भयानक थी और इसके चेहरे की तरफ निगाह करने से डर मालूम होता था। इस मूरत के तमाम बदन में दोरुखे धारवाले नुकीले चाकू लगे हुए थे। मुझे विश्वास हो गया कि यह जरूर ऐसी जगह है जहा आदमी बडी बेदर्दी के साथ मारा जाता है। इस ख्याल के साथ ही मेरा सिर घूमने लगा और में सोचने लगा कि क्या मै भी यहा इसीलिये लाया गया हू ! बेशक ऐसा ही होगा। इसमें कोई शक नहीं कि यह काम शिवकुअरी के लगाव से किया गया है । इसके साथ ही मैं उस समय की बातों को सोचने लगा जब अपने मकान पर जबर्दस्ती और बेबस करके गिरफ्तार किया गया था। 'इन्ही सब बातों को बैठा सोच रहा था कि सामने वाला दर्वाजा खुला और दो आदमियों के साथ शिवकुअरी आती दिखाई पड़ी। उन दोनों आदमियों की सूरत से बदमाशी और बेदर्दी साफ मालूम होती थी। उनका काला रग, स्थाह चढी मूछे सुर्ख आँखें और उलझे हुए घने बाल उनकी दुष्टता का परिचय दे रहे थे। ऊपर लिखी बातों के सिवाय कमर का जॉघिया और हाथ की भुजाली उन्हें साक्षातु काल रूप ही बनाए हुए थी। 'भगर आश्चर्य यह है कि ऐसे समय में उन दोनों आदमियों के साथ रहने पर भी शिवकुअरी के चेहरे पर डर घबराहट या उदासी का कोई निशान नहीं पाया जाता था बल्कि वह एक तरह पर खुश मालूम होती थी तीनों आदमी मेरे सामने आकर बैठ गए और शिवकुअरी मुझसे बातें करने लगी। शिव-अफसोस कि मैंआपको एसी अवस्था में देख रही हू ! में - मगर तुम्हारी सूरत से किसी तरह का रम्ज नहीं पाया जाता। शिव - ठीक है मैं आपको इस कैद से छुडा सकती हूँ, मगर एक शर्त पर । मै-वह क्या? शिव - तुम्हारे बाप का लिखा हुआ जो वसीयतनामा है वह मुझे दे दो और अपने हाथ से एक वसीयतनामा दूसरा मेरे नाम का लिख कर मुझे दे दो जिसके जरिये मै तुम्हारी कुल जायदाद की मालिक बन सकू, क्योंकि तुम्हारे याप ने जो वसीयतनामा लिखा है उसके जरिये से तुम्हारे बाद तुम्हारा लड़का और लडका न हो तो तुम्हारा चचेरा भाई मालिक बन सकता है तुम्हारी औरत या तुम्हारी लड़की को सिवाय खाने-पीने के और कुछ नहीं मिल सकता है मैं – (क्रोध से ) क्या तुमने इसी मतलय से मुझे ऐसी हालत में डाल दिया है ? शिव-बेशक। मैं – हाय, मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद कभी न थी। मैं तुझे अपना समझता था | अफसोस !! शिव - रडियों या सुरैतिनों को अपना समझना विल्कुल नादानी है और उनसे किसी तरह की भलाई की उम्मीद रखने वाला पूरा बेवकूफ है ! मैं - (जोश में आकर ) चाहे मेरा सिर काट लिया जाय मगर मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता | साथ ही अगर जिन्दगी है तो जरूर तुझसे इसका बदला लूगा !! शिव – (हस फर ) अभी जिदगी की उम्मीद तुम्हें बाकी है | मेरा कहना न मान कर तुम कभी जिन्दा नहीं रह देवकीनन्दन खत्री समग्र ११७४