पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८०

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दि मुझे यहाँ से चले जाने की आशा दे देते तो मै जन्म भर तुम्हारा असान मानता ! रामदास-कभी नहीं, कभी नही ! सुजन-तो क्या मुझे अपने हाथ से अपनी लड़की तारा का यून करना पड़ेगा। रामदास०-वेशक,अगर वह मजूर न करेगी तो। सुजन०-नहीं नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है अभी से भेरा हाथ काप रा और पीटार फिर पती ।। रामदास-मय मार कर तुम्हे ऐसा करना होगा ! सु-नि0-मेर हार्यों की ताकत तो अभी सजा की मछ न कर सकूगा। रामदास-तो क्या वह कटोरा भर पा पाली बात मुझे याद दिलानी पड़ेगी? सुजन-(कापकर) ओफ गजव है !(रामदास को पैरों पर गिरकर) यस बस माफ करा व पिर उसका नाम न लो मैं करूंगा और बेशक वही करूगा जो तुम होगाअगर मजूर न करता अपन हाय स अपनोलको तारा का मगरन के लिए तैयार है, मगर अब उस बात का नाम न ल !ाय, लाचारी इस कहत!! रामदास०-अच्छा हम लोगों का यहां से निकल कर फाटक की तरफा स्तना चाहिए। सुजन-जोएबम । रामo-मगर नहीं क्या जाने य लोग उधर 7 जाय । विदोनो उठा में वीरसिंह के पीछे जागा सारा सारे हवाले की जाती है। इधर वगले में बैठे हुए धीरसिंह और सारा की बातचीत समाप्त हुई। इस जगा इन यह नहीं कहा भारत कि उन दोनों में चुपके चुपके क्या यातें हुई मगर इतना जरूर कहा कि सारा प्रसन्न मामता सायद धीरसिंह नकार चात उसके मतलब की कही हो या जो कुछ तारा चाहती थी उसे उमजूर किया ! धीरसिंह और तारा 4६f से उठे और एक तरफ जा के लिए तैयार हुए। पीर-तो अब में तुम्हारी लोडिया को बुलाता और तुम्हे उनके हवाल परा है। तारा०-नही मै आपको फाटक तक पहुंचा कर लौटूंगी कि उन लोगों से निपूगी। पीर-सी तुम्हारी मर्जी । साथ नाथ दिये दानो यहाँ से रवाए और बाग के पूरब तर जिधर फाटक या गले । अब फाटक पर पहुक्तो दीरासंह ने तारा से कहा यस अब तुम लौट जाओ। तारा०-अब आप कितनी देर में आग चीर०-में ठीक नहीं कह सकता मगर पहर गर के अन्दर आने की आशा कर सकता है। तारा०-अच्छा जाइये मगर महाराज सेन मिलिया। वीर०-नहीं, कभी नहीं। चौरसिंह आगे की तरफ रवाना हुआ। और तारा भी वहा से लोटी मगर कुछ दूर उसी बगले की तरफ मुली और दाक्सिन तरफ घूमी जिधर एक रंगीन राजी हुई वारदरी थी और dst आपुस में कुछ बाते करती हुई कई नौजवान औरते भी धी और जो शायद तारा की लोडिया संगी। धीरे-धीर चलती हुई तारा उस अगूर की टट्टी के पास पहुंची। उसी समय उस राक्षा में से एक आदमी निकाला जिसने लपक कर तारा को मजबूती से पकड़ लिया और उसे जमीन पर पटक छाती पर सवार हो बोला बस सारा मुझे इस समय रान या चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं और न इससे कुछ फायदा।निगा तेरी जान लिए अपने किसी तरह नहीं रह सकता !! तारा०-(डरी हुई आवाज में) क्या ने अपने पिता सुजनसिह की आवाज सुन रही है? सुजन-हा, मै ही कम्बखातेरा बाप हूँ । तारा०-पिता क्या तुम स्वय मुझे मारने को तैयार हो ? सुजन०-नहीं में स्वयम् तुझे मार कर कोई लाभ नहीं उठा सकता मगर क्या कर्म लाचार हूँ। तारा०-हाय !क्या कोई दुनिया में ऐसा है जो अपने यो से अपना प्यारी लड़की को मारे। सुजन०-एक अभागा तो मैं ही तारा लेकिन अब तू कुछ मत बोला तेरी प्यारी बाते सुनकर भरा कलेजा कापता है, रूलाई गला दबाती है. हाथ से कटार छूटा जाता है। बेटी तारा !यस तू चूप रह में लाचार देवकीनन्दन खत्री समग्र ११२