पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८५

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Jaxt उनक छोटे लडके सूरजसिंह की है। महाराज के रज और गम का कोई ठिकाना न रहा। वे फूट-फूट कर रोने लगे और उनके साथ-साथ और लोग भी हाय-हाय करके रोने और सर पीटने लगे। हम उस समय के गम की हालत और महल में रानियों की दशा को अच्छी तरह लिखकर लेख को व्यर्थ बढाना नही चाहते केवल इतना लिख देना बहुत हागा कि घण्टे भर तक दिन चढने तक सिवाय रोने धोने के महाराज का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि कुँअर साहब की मौत का सदव पूछे या यह मालूम करें कि उनकी लाश कहाँ पाई गई। आखिर महाराज ने अपने दिल को मजबूत किया और कुँअर साहब की मौत के बारे में वीरसिंह से बातचीत करने लगे। महा०-हाय मेरे प्यारे लडके का किसन मारा? वीर०-महाराज अभी तक यह नहीं मालूम हुआ कि यह अनर्थ किसने किया । महाराज ने उन दोनों मुसाहबो में स एक की तरफ दखा जो बीरसिह का लेने क लिए खिदमतगारों के साथ बाग में गये थे। महा०-क्यों हरीसिंह तुम्हें कुछ मालूम है ? हरीo-जी कुछ भी नहीं हॉ इतना जानता हूँ कि जब हुक्म के मुताबिक हम लोग वीरसिंह को बुलाने गय तो इन्हें घर पर न पाया लाचार पानी वरसते ही में इनके बाग में पहुचे और इन्हें वहाँ पाया। उस समय ये नगे बदन हम लोगों के सामने आये। इनका बदन गीला था इससे मुझ मालूम हो गया कि ये कहीं पानी में भीग रहे थे और कपडे बदलने का हो थे कि हन लाग जा पहुच ! खैर हम लोगों ने सारी हुक्म सुनाया और य भी जल्द कपडे पहिन हम लोगों के साथ हुए। उस समय पानी परसना बिल्कुल बन्द था । जब हम लोग बाग के बीचो-बीच अगूर की टट्टियों के पास पहुंचे तो यकायक इस लाश पर नजर पडी !! महा-(कुछ साचकर ) हम कह ता नहीं सकत क्योंकि चारों तरफ लागों में वीरसिह नेक ईमानदार और रहमदिल मशहूर है, मगर जैसा कि तुम क्यान करत हा,अगर ठीक है तो हमें वीरसिह के ऊपर शक हाता है। हरी०-तावेदार की क्या मजाल कि महाराज के सामने झूठ बोले 'वीरसिंह मौजूद है पूछ लिया जाय कि मैं कहाँ तक सच्चा हूँ। वीर०-(हाथ जोडकर) हरीसिह ने जो कहा वह बिल्कुल सच है-मगर महाराज यह कब हो सकता है कि अपने अन्नदाता और ईश्वर-तुल्य मालिक पर इतना बडा जुल्म कल ! महा०-शायद ऐसा ही हा मगर यह ता कहो कि मैने तुमको ता मुहिम पर जाने के लिए हुक्म दिया था और ताकिद कर दी थी कि आधी रात बीतन के पहिले ही यहाँ से रवाना हो जाना फिर क्या सबब है कि तीन पहर रात बीत जाने पर भी तुम अपने वाग ही में मौजूद रहे और तिस पर भी वैसी हालत में जैसा कि हरीसिंह ने बयान किया? इसमें कोई भद जरूर है। पीर०-इसका सबब केवल इतना ही है कि चारी तारा के ऊपर एक आफत आ गई और वह किसी दुश्मन के हाथ में पड गई जब तक मैं ढूँढता रहा पानो वरसता रहा इसीसे मेरे कपडे भी गील हो गए और मै उस हालत में पाया गया। जैसा कि हरीतिहन बयान किया है। महा०-ये सब बाते बिल्कुल फजूल है अगर तारा का गायव हो जाना ठीक है तो कोई ताज्जुब की बात नहीं क्योंकि वह बदकार औरत है वेशक किसी के साथ कहीं चली गई होगी उसका ऐसा करना तुम्हार लिए एक बहाना हाथ लगा। "तारा बदकार औरत है" यह वात वीरसिंह को गोली के समान लगी क्योंकि वे खूब जानते थे कि तारा पतिव्रता है और उन पर उसका प्रेम सच्चा है। मारे क्रोध के वीरसिंह की ऑखें लाल हो गई और बदन कॉपने लगा मगर इस समय ोध करना सभ्यता के बाहर जान चुप हो रह और अपने को सँभाल कर बोले बीरo-महाराज तारा के विषय में एसा कहना अनर्थ है । हरो०-महाराज ने जो कुछ कहा ठीक है (महाराज की तरफ दख कर) वीरसिह पर शक करने का तावेदार को और भी मौका मिला है। महा०-वह क्या? हरी०-कुंअर साहय जिन तीन आदमियों के साथ यहाँस गये थे उनमें से दो आदमियों को वीरसिंह ने जान से मार डाला और सिर्फ एक भाग कर बच गया। जब हम लाग वीरसिंह को बुलाने के लिए उनके घर की तरफ जा रहे थे उस . वीरेन्द्र वीर ११८७