पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८६

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६ समय यह हाल उसी की जुबानी मालूम हुआ था। इस समय वह आदमी जिसका नाम रामदाम हे ड्योढी पर मौजूद है। महा०-हॉक्या ऐसी बात है? हरीo-मै महाराज के कदर्मों की कसम खाकर कहता हूँ कि यह हाल खुद रामदास ने मुझसे कहा। जिस समय हरीसिह ये बातें कर रहा था महाराज कि निगाह कुँअर साहब की लाश पर । यकायक कलेजे में कोई चीज नजर आई महाराजा ने हाथ बढाकर देखा तो मालूम हुआ छुरी का मुट्ठा है जिसका फल बिलकुल कलेजे के अन्दर घुसा हुआ था। महाराज न छुरी को निकात लिया और पोंछ कर देखा । कय्जे पर राजकुमार वीरसिह खुदा हुआ था। अव महाराज की हालत बिल्कुल बदल गई शाक क बदले क्रोध की निशानी उनके चेहरे पर दिखाई देने लगी और होठ कॉपने लगे। वीरसिंह ने चौंक कर कहा “वेशक यह मेरी छुरी है आज कई दिन हो गये चोरी गई थी मैं इसकी खोज में था मगर पता नहीं लगता था। महा०-बस चुप रह नालायक अव तू किसी तरह अपनी बेकसूरी सावित नहीं कर सकता हाय, क्या इसी दिन के लिए मैंने तुझे पाला था ? अब में इस समय तेरी बातें नहीं सुनना चाहता (दाजे की तरफ देखकर) कोई है ? इस हरामजादे को अभी ले जाकर फैदखाने में बन्द करो हम अपने हाथ से इसका और इसके रिश्तेदारों का सिर काटकर कलजा ठडा करेंग ( हरीसिह की तरफ देख कर ) तुम सो सिपाहियों को लेकर जाओ इस कम्यख्त का घर घेर लो ओर ओरत-मदों को गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दा। फौरन महाराज के हुक्म की तामील की गई और महाराज उठ कर महल में चले गये। चौथा बयान ऊपर लिखी वारदात के तीसर दिन आधी रात के समय वीरसिंह के बाग में उसी अगूर के टट्टी के पास एक लॉब कद का आदमी स्याह कपड पहिरे इधर से उधर टहल रहा था। आज वाग में रोनक नहीं बारहदरी में लौडियों और सखियों की चहल-पहल नहीं सजावट की ताजाने दीजिय कहीं एक चिराग तक नहीं जलतामालियों की झोपड़ी में भी अँधेरा पड़ा है। वह लॉये कद का आदमी अगूर की टट्टिया से लेकर बारहदरी और उसके पीछे तोशेखाने तक जाता है और लौट आता है मगर अपने को हर तरह छिपाये हुए हे जरा सा भी खटका होने से या एक पत्ते के भी खडकन से वह चौकन्ना हो जाता है और अपने को किसी पेड या झाड़ी की आड में छिपा कर देखने लगता है। इस आदमी को टहलते हुए दो घण्टे बीत गये मगर कुछ मालूम न हुआ कि किस नियत से चक्कर लगा रहा है या किस धुन में पड़ा हुआ है। थाडी देर और बीत जान पर बाग में एक आदमी के आने की आहट मालूम हुई। लाये कद पाला आदमी एक पड की आड में छिप कर दखने लगा कि यह कोन है और किस काम क लिए आया है। वह आदमी जो अभी आया है,सीधे वारहदरी में चला गया। कुछ दर वहाँ ठहर कर पीछ वाले ताशेखाने में गया और ताला खोलकर तोशेखाने में अदर घुस गया। थोड़ी ही देर बाद एक छोटा सा डिव्या हाथ में लिए हुए निकला और ताला बन्द करके वाग के बाहर की तरफ चला। वह थाडी ही दूर गया था कि उस लॉचे कद के आदमी ने जो पहिल ही से घात में लगा हुआ था,पास पहुँच कर पीछे से उसके दोनों बाजू मजबूत पकड लिये और इस जोर से झटका दिया कि वह सम्हल न सका और जमीन पर गिर पड़ा। लोवे कद का आदमी उसकी छाती पर बढ बेटा और बोला सच चता तू कोन है तरा नाम क्या है यहाँ क्यों आया और क्या लिय जाता है? यकायक जमीन पर गिर पड़ने और अपने को बेबस पान से वह आदमी बदहवास हो गया और सवाल का जवाब न दे सका। उस लॉवे कद क आदमी ने एक घूसा उसके मुंह पर जमाकर फिर कहा 'जो कुछ मैने पूछा है उसका जवाय जल्द दे नहीं अभी गला दया कर तुझे मार डालूंगा ! आखिर लाचार हा और अपनी मौत को छाती पर सवार जानकर उसने जवाब दिया "मै वीरसिह का नोकर हूँ, मरा नाम श्यामलाल है मुझे मालिक ने अपनी मोहर लाने के लिये यहाँ भेजा था सो लिए जाता हूँ। मैने कोई कसूर नहीं किया, मालूम नहीं आप मुझे क्यों इसस ज्यादा वह कहने नहीं पाया था कि लॉये कद के आदमी ने एक घुसा और उसके मुंह पर जमा कर कहा "हरामजादे के बच्चे अभी कहता है कि मैंने कोई कसूर नहीं किया मुझी से झूठ बोलता है ? जानता नहीं की मैं कौन हूँ? - ! देवकीनन्दन खत्री समग्र ११८