पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१२

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३ JAN उसकी लाश एक कम्बल में बाँध और लडके को एक लोडी की गोद में दे और उसे साथ ले तहखाने के बाहर निकला और मैदान में पहुंचा। यहाँ नाहरसिह के दो आदमियों से मुलाकात हुई। मुझे नाहरसिंह तथा वीरसिंह से मिलने का बहुत शौक था और उन लोगों ने भी मुझे अपने साथ ले चलना मजूर किया। आखिर हरीसिंह की लाश गाड़ दी गई लौडी वापस कर दी गई और मै लडके को लेकर उन दो आदमियों के साथ नाहरसिंह की तरफ रवाना हुआ। उसी समय राजा के कई सवार भी वहाँ आ पहुँचे जो नाहरसिंह की खोज में घोड़ा फेंकते उसी तरफ जा रहे थे हम लोगों को तो डर हुआ कि गिरफ्तार हो जायेंगे, मगर ईश्वर ने बचाया । एक पुल के नीचे छिप कर हम लोग वच गए और नाहरसिंह और वीरसिंह से मिलने की नौबत आई। खडग०-लडका अब कहाँ है? बाबू साहय०-(नाहरसिंह की तरफ इशारा कर के) इनके आदमियों के सुपुर्द है। खडग०-तुम लोगों का हाल बडा ही दर्दनाक है सुनने में कलेजा कापता है। लेकिन अभी तक यह नहीं मालूम हुआ कि बेचारी तारा कहाँ है और उस पर क्या बीती? नाहर०-तारा का हाल मुझे मालूम है मगर मैने अभी तक वीरसिंह से नहीं कहा। एक सर्दार०-तो इस समय भी उसका कहना शायद आप मुनासिब न समझते हों। नाहर०-कहने में कोई हर्ज भी नहीं। खडग०-तो कहिए। नाहर-ऊपर के हाल से आपको इतना तो जयर मालूम हो गया होगा कि बेईमान राजा ने तारा के बाप सुजनसिह को इस बात पर मजबूर किया था कि वह तारा का सिर काट लावे। खडग०-हॉ, इसलिए कि सुजनसिंह ने दीवानखाने की छत पर से लौडियों को तो गिरफ्तार किया मगर तारा को छोड़ दिया था। नाहर-ठीक है राजा यह भी चाहता था कि तारा यदि राजा के साथ रहना स्वीकार करे तो उसकी जान छोड़ दी जाय। इस काम के लिए समझाने बुझाने पर हरीसिह मुकर्रर किया गया था, मगर तारा ने कबूलन किया। जिस समय बीरसिह के बाग में सुजनसिह अपनी लडकी तारा की छाती पर सवार हो उसे मारना चाहता था में भी वहा मौजूद था उसी समय एक साधू महाशय भी वहाँ आ पहुंचे और उन्होंने मेरी मदद से तारा को छुड़ाया। इस समय तारा उन्हीं के यहाँ खडग०-आपने एक साधू फकीर की हिफाजत में तारा को क्यों छोड दिया? उस साधू का क्या भरासा? नाहर०-उस साधू का मुझे बहुत भरोसा है। वे बडे ही महात्मा है। यह तो में नहीं जानता कि वे कहाँ के रहने वाले है मगर वे किसी से बहुत मिलते-जुलते नहीं निराले जगल में रहा करते है मुझ पर बड़ा ही प्रेम रखते हैं मैंने सब हाल उनसे कह दिया है और अक्सर उन्हीं की राय से सब काम किया करता हूँ, उनके खाने-पीने इन्तजाम भी मैं ही करता हूँ। खडग०-क्या मैं उन से मिल सकता हूँ? नाहर०-इस बात को शायद वह नामजूर करें। (आसमान की तरफ देखकर) अब तो सवेरा हुआ ही चाहता है मेरा शहर में रहना मुनासिब नहीं। खडग०--अगर आप मेरे यहाँ रहें तो कोई हर्ज भी नहीं है। नाहर०-ठीक है मगर ऐसा करने से कुछ विशष लाभ नहीं है घीरसिंह को मैं आपके सुपुर्द करता हूँ और बाबू साहब को अपने साथ लेकर जाता हूँ फिर जब और जहाँ कहिए हाजिर होऊँ। खडग०-खैर ऐसा ही सही मगर एक बात और सुन लो । नाहर०-वह क्या? खडग०-उस समय जब मै बीरसिंह को छुडाने के लिए राजा के पास गया था तो समयानुसार मुनासिब समझकर उसी के मतलय की बातें की थी मैं कह आया था कि कल एक आम दर्यार करूँगा और तुम्हारे दुश्मनों तथा बीरसिंह को फॉसी का हुक्म दूंगा. उसी दर्वार में महाराज नेपाल की तरफ से तुमको अधिराज की पदवी भी दी जायेगी। यह बात मैने कई मतलबों से कही थी। इस बारे में तुम्हारी क्या राय है ? नाहर०-चात तो अच्छी है। इस दर्वार में बडा मजा रहेगा, कई तरह के गुल खिलेंगे मगर साथ ही इसके फसाद भी देवकीनन्दन खत्री समग्र १२१४