पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१७

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हजान बिदा हुआ दा खिदमतगार युलाए गए दावाली न उसी समय सिर मल के स्लान किया और उनक लिए जा कपडखडगसिंह न मॅगवाए थ उन्हें पहिर कर निश्चिन्त हुए मगर इस बीच में नाहरसिह के दिल की क्या हालत थी सा वह जाना हाना मुश्किल से उत्सन अपने आपका राका और मौक का इन्तजार करता रहा जब इन कामास वावाजी न छुट्टो पाई तीनों आदमी एकान्त में बैंड और यात करन लग। न मालूम घण्ट भर तक काठरी के अन्दर दंठ उन तीनों में क्या-क्या यातें हुई हॉ बावाजी नाहरतिह और खडगनिह तीनों के सिसक सिसक कर रान की आवाज नाठरी कथाहर कई दफ आई जिस हमने भी सुना और स्वप्न की तरह आज तक याद है। कोठरी जवाहर निकल कर साधू महाशय मुंह पर नकाब डाल विदा हुए और नाहरसिंह तथा खडगसिंह उस दालान में सापेठ जिसमें बाकी के सरदार नाग देठे हुए थे। सदारों ने पूछा कि 'वायाजी कहाँ गए और उनकी ताज्जुब भरीवानों का क्या नतीजा निकला? इनक जवाब म्खडगसिंह ने कहा कि चायाजी इस समय तो चल गए मगर कह गए हैं कि भर पट में जा-जो बातें भद के तौर पर जमा है वे कल दर्वार में जाहिर हा जायेंगी इसलिए मर साथ आप लाम का भी उनका हाल क्ल ही मालूम होगा। आधी गत तक य लाग बैठ बातचीत करते रह इसक बाद अपन अपन घर की तरफ रवाना हुए। पन्द्रहवॉ बयान हरिपुर के राजा करनसिह राट् का बाग बडी तैयारी से सजाया गया राशनी के सबब दिन की तरह उजाला हा रहा था बाग की हर एक रविश पर राशनी की गई थी बाहर की राशनी का इन्तजाम भी बहुत अच्छा था। वाग के फाटक से लेकर किले तक जा एक कार के लगभग हागा तडक के दानों तरफ गल की रोशनी थी हजारों आदमी आ जा रह थ! शहर में हर तरफ इस दवार दी धूम थी ! काई कहता था कि आज महाराज नेणल की तरफ स राजा का पदवी दी जायंगी कोई कहता था कि नहीं नहीं महाराज को यहाँ की रिआया चाहती है या नहीं इस बात का फैसला किया जायेगा और इस राजा को गद्दी से उतार कर दूसर को राजतिलक दिया जायगा। अच्छा ता यही हागाकि वीरत्तिह का राजा बनाया जाय, हन लोग इसके लिए लडेंगे धूम मचावंग और जान दन क लिए तैयार रहेंग। इसी प्रकार तरह-तरह के चर्चे शहर में हो रहे य शहर भर वीरसिह का पक्षपाती मालूम हाता था मगर जा लाग बुद्धिमान थे उनके मुँह से एक बात भी नहीं निकलती थी और प लाग मन ही मन में न मालूम क्या सोच रह थे। आज के दार में जो कुछ होना है इसकी खबर शहर के बडबड रईसों और मर्दारों का भी जन्तर थी मगर व लोग जुयान से इस शार में एक शब्द भी नहीं निकालत था , चागन एक आलीशान बारहदरी थी उसी में दरवार का इन्तजाम किया गया। उसकी सजावट हद्द रु ज्यादै बढी हुई थी। खडगसिंह ने राजा का कहला मजा था कि दबार में एक तिहासन भी रहना चाहिए जिस पर पदवी देने के बाद आप बैठाए जायेंग इसलिए बारहदरी के बीचोबीच में त्ताने का एक सिहासन रिछा हुआ था उत्तक दाहिनी तरफ राजा क लिए और बाई तरफनपाल के सेनापति खडगर्तिह के लिए चॉदी की कुर्सी रक्खी गई थी और सामने की तरफ शहर क इसों और सर्दारों के लिए दुपट्टी मखमली गद्दी की कुरिया लगाई गई थीं। सजावट का सामान जो राजदार के लिए मुनारिय था सब दुत्स्त किया गया था। चिराग जलते ही दवार ने लागों को आवाई शुरु हा गई और पहर रात जात-जात दर्शार अच्छी तरह भर गया राजा करनत्तिह और खडगसिह नो अपनी-अपनी जगह बैठ गए। नाहरसिह चौरसिह और बाबू साहब भी दार ने बैठ हुए थ नगर बालाजो अपने मुंह पर नकाब डाले एक कुर्सी पर विराज रहे थे जिनको देखकर लाग ताज्जुब कर रह थे और राजा इस विद्यार में पड़ा था कि य कौन है? राजा या राजा क आदमी नाहरत्तिह का नहीं पहिचानतथ पर वीरमिह को बिना हथकडीवेडी के स्वतन्त्र देखकर राजा की ऑचं क्राच न लाल हो रही थीं मगर यह मौका योलने का न था इसलिए चुप रहा. हो राजा की दो हजार फौज चारों तरफ से याग का घर हुए थी और राजा के मुसाहब लोग इत्त दर्वार में कुतियों पर न वैठ क न मालून कित्स धुन में चारों तरफ घूम रहे था सेनापति खडगसिंह के भी चार सौ महादुर लडाक जो नपाल से साथ आए थवाग के बाहर चारा तरफ बटकर फैले हुए थे और नाहरसिह क सौ आदमी भी भीड में मिलजुले चारों तरफ घूम रहे थे,बाग के अन्दर दो हजार स ज्यादे वीरेन्द्र वीर १२१९