पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२७

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लालसिह - क्या यह काम तुम्हारे किये हा सकता है ? पारस -- वशक मगर खर्च बहुत ज्यादा होगा। लाल- यद्यपि मैं तुम पर विश्वास और भरोसा नहीं रखता पर इस बारे में अन्धा और बवकूफ बनकर भी तुम्हारी मार्फत खर्च करन का तैयार है। मगर तुम यह तो बताआ कि हरनन्दन सरला के साथ दुश्मनी करके अपना नुकसान केस कर सकता है। पारत-इसका बहुत बड़ा सबब है जिसके लिए हरनन्दन ने ऐसा किया वह बडे आन-बान का आदमी है। लाल - आखिर यह सवय क्या है सो साफ-साफ क्यों नहीं कहते? पारस - ( इधर-उधर दखकर ) में किसी समय एकान्त में आपस कहूगा। लाल-- अभी इसी जगह एकान्त हा जाता है जो कुछ कहना है तुरन्त कहो क्या तुम नहीं जानत कि इस समय मेरे दिल पर क्या बीत रही है? इतना कह कर लालसिह न चारों तरफ देखा और उसी समय व लोग उठकर थाडी देर के लिए दूसर कमरे में चल गए। उस समय पुन पूछे जाने पर पारसनाथ न कहा- हरनन्दन अपनी बुद्धि और विद्या के आगे रुपय की कुछ भी कदर नहीं समझता। वह आपक रुपयों का लालची नहीं है बल्कि अपनी तबीयत का वादशाह है। उसका बाप बशक आपकी दौलत अपनी किया चाहता है मगर हरनन्दन को सरला के साथ ब्याह करना मजूर न था क्योंकि वह अपना दिल किसी और को द.चुका है जो एक गरीब लड़की है और जिसके साथ शादी करना उसका बाप पसन्द नहीं करता । इसीलिए उसन इस ढग स सरला को बदनाम करक अपना पीछा छुड़ाना चाहा है। इस सम्बन्ध में और भी बहुत सी बातें हैं जिन्हें में आप सामन मुँह से नहीं निकाल सकता क्योंकि आप बड है और वात छोटी है। लाल - (ताज्जुध के साथ) क्या तुम य सब बातें सच कह रह हो? पारस-मरी बातों में रत्ती बराबर भी झूठ नहीं है। मैं छाती ठोक क दाव के साथ कह सकता हूँ कि यदि आप खर्च की पूरी-पूरी मदद देंग तो थोडे ही दिनों में य सब वा सिद्ध करक दिखा दूंगा। लाल-इस बारे में क्या खर्च पडगा? पारस - दस हजार रूपये। अगर जीती जागती सरला का भी पता लग गया और उस छुडा कर अपन घर ला सका ता पच्चीस हजार रुपै स कम खर्च नहीं पड़ेगा। लान --- ( अपनी छाती पर हाथ रख क) मुझे मजूर है। पारस-ता में भी फिर अपनी जान हथेली पर रख कर उद्याग करन के लिए तैयार हूँ। लाल - अच्छा अब उन लागों को बुला लेना चाहिए जो दूसरे कमरे में चले गए हैं। पारस - जा आज्ञा मगर ये बातें सिवाय मरे और आपक किसी तीसरे को मालूम न हो। चौथा बयान. रात दा घण्टे से ज्यादे नहीं गई है। दरभगा के याजारों की रौनक अभी मौजूद है,हॉ उस बाजार की रौनक कुछ दूसरे ही ढग पर पलटा खा रही है जो रडियों की आपादी से विशेष सम्बन्ध रखती है अर्थात् उनक निचले खण्ड की रोनक सज्पर वाले खण्ड की रोनक ज्याद हाती जा रही है। इस उपन्यास के इस बयान में हमको इसी बाजार से कुछ मतलब है क्योंकि उस बोंदी रडी का मकान भी इसी बाजार में है जिसका जिक्र इस किस्से के पहिले और दूसरे वयान में आ चुका है । यॉदी का मकान तीन मरादिव का है और उसमें जाने के लिए दो रात है एक तो वाजार की तरफ से दूसरा पिछवाडे वाली अन्चेरी गली में से। पहिली मरतिव में बाजार की तरफ एक बहुत बड़ा कमरा और दोनों तरफ दो कोठडियाँ तथा उन काठडियो स दूसरी कोठडियों में जाने का रास्ता बना हुआ है और पिछवाडे की तरफ केवल पाँच दर का एक दालान है। दूसरी मरातब पर चारों कोनों में चार काठड़ियाँ और बीच में चारों तरफ छोटे-छोटे चार कमर है। तीसरी मरातब पर केवल एक बॅगला और बाकी का मैदान अर्थात् खुली छत है। इस समय हम बॉदी को इसी तीसरी मरातब वाले गले में बैठ दखत हैं ।उसके पास एक आदमी और भी है जिसकी उम्र लगभग पचीस वर्ष क होगी। कद लम्बा रग गोरा चहरा कुछ खूबसूरत बडीबडी ऑखें. (मगर पुतलियों का स्थान स्याह होने के बदले कुछ नीलापन लिए हुए था) भवे दोनों नाक के ऊपर स मिली हुई पशानी सुकडी सर के बाल बडे-बडे मगर धुंघराल है। यदन के कपड़ पायजामा,चपकन, रूमाल इत्यादि यद्यपि मामूली ढग के है मगर साफ है हॉ सिर पर कलायत्तू कोर का बनारसी दुपट्टा बाँध है जिससे उसकी ओछी तथा फैलसूफ तवीयत का पता लगता है । यह शख्त बॉदी के पास एक बडे तकिए के सहारे झुका हुआ मीठी-मीठी बातें कर रहा है। इस बंगले की सज्मट भी विल्कुल मामूली और साद ढग की है। जमीन पर खुरदुरा फर्श और छोटे-बड़े कई रग के यीस-पचीस तकिए पड़े हुए है। दीवार में केवल एक जोडी दीवारगीर की लगी है जिसमें रंगीन पानी के गिलास की राशनी 43 काजर की कोठडी १२२९