पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३०

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दि बॉदी की मॉ--(मुस्कुरा कर) अर हमलोग बड़-बडे जतियों का मुरुण्डा कर लेती है हरनन्दन है क्या चीज? अगर मेरी तालीम का असर तुझ पर पड़ता रहेगा तो यह कोई बड़ी बात न होगी। बॉदी-काशिश तामै जहाँ तक हो सकेगा करूँगी मगर सुनने में बराबर यही आता है कि हरनन्दन बाबू का गान- बजाने का या रडियों से मिलने का कुछ भी शोक नहीं है बल्कि वह रडियों के नाम से चिढ़ता है। चॉदी की माँ - ठीक है, इस मिजाज के सैकड़ों आदमी होते है और है मगर उनके खयालों की मजबूती तभी तक कायम रहती है जब तक वे किसी न किसी तरह हम लोग के घर में पैर नहीं रखते, और जहाँ एक दफे हम लोगों के ऑचल की हया उन्हें लगी तहाँ उनके खयाला की मजबूती में फर्क पड़ा ! एक दो की कौन कहे पचासों जती और ब्रह्मचारियों की खवर तो में ले चुकी हूँ । हाँ अगर तेर किए कुछ हा न सके तो बात ही दूसरी है। इसी किस्म की बातें हो रही थी कि लाडी ने हरनन्दन यायू के आने की खबर दी। सुनते ही यादी घबराहट के साथ उठ खडी हुई और बीस-पचीस कदम आगे बढ़कर बडी मुहब्बत और खातिरदारी का बर्ताव दिखाती हुई उसी काटरी के दजे तक ले आई जिसमें बैठ कर अपनी मा से बातें कर रही थी और जहां उसकी माँ सलाम करने की नीयत से खड़ी थी। अस्तु बाँदी की माँ ने हरनन्दन बाबू को झुक कर सलाम करने के बाद बॉदी से कहा बाँदी । आपको यहाँ मत । बैठाआ जहाँ अकसर लोग आते-जाते रहते है बल्कि ऊपर बंगले में ले जाओ क्योंकि यह आप ही के लायक है और आपको पसन्द भी है। इतना कह कर बाँदी की मा हट गई और यादी हा एसा ही करती हू कह कर हरनन्दन दाबू का लिए ऊपर वाल उसी गले में चली गई जिसमें थोड़ी दर पहिले पारसनाथ बैठ कर वादी के साथ चारा-बदलौअल कर चुका था । हरनन्दन वायू वडी इज्जत और जाहिरी मुहब्बत के साथ बैठाए गए और इसके बाद उन दोनों में यो बातचीत होने लगी बोंदी -- कल ता आपने खूव ही छकाया । दो बजे रात तक मै धरावर बैठी इन्तजार करती रही, आखिर बडी मुश्किल से नींद आई. सो नींद में भी बराबर चकिती रही। हरनन्दन - हाँ एक एसा टेढा काम आ पड़ा था कि मुझे कल बारह बजे रात तक बाबूजी ने अपने पास स उठन न दिया उस समय और भी कई आदमी बैठे हुए थे। बोंदी-तभी एसा हुआ !में भी यही सोच रही थी कि आप बिना किसी भारी सवव क वादाखिलाफी करने वाले हरनन्दन-- में अपन वादे का बहुत बडा खयाल रखता हूँ और किसी को यह कहन का मौका नहीं दिया चाहता कि हरनन्दन वादे के सच्चे नहीं है। चॉदी- इस बारे में ता तमाम जमाना आपकी तारीफ करता है। मुझे आप ऐसे सच्चे सर्दार की साहवत का फरख है। अभी कल मेरे यहाँ ची इमामी जान आई थी। बात ही यात में उन्होंने मुझे कह ही तो दिया कि 'हों वादी, अब तुम्हारा दिमाग आसमान के नीचे क्यों उतरने लगा। हरनन्दन वायू ऐसे सच्चे सार को पाकर तुम जितना घमण्ड करो थोडा है !, में समझ गई कि यह डाह से ऐसा कह रही है। हरनन्दन-(ताज्जुब की सूरत बनाकर) इमामीजान को मेरा हाल कैसे मालूम हुआ? क्या तुमने कह दिया था? यॉदी - (जोर देकर) अजी नहीं, मैं भला क्यों कहने लगी थी? यह काम उत्ती दुष्ट पारसनाथ का है।उसी ने तुम्हें कई जगह बदनाम किया है। मै तो जय उसकी सूरत देखती हू मारे गुस्से के आखों में खून उतर आता है यही जी चाहता है कि उस कच्या ही खा जाऊं मगर क्या करू, लाचार हूँ, तुम्हारे काम का खयाल करके रुक जाती हूँ। कल वह फिर मेरे यहाँ आया था, मैने अपने क्रोध को बहुत रोका मगर फिर भी जुबान चल ही पड़ी यात ही बात में जली-कटी कह गई। हरनन्दन- लेकिन अगर उससे ऐसा ही सूखा वर्ताव रक्खोगी तो मेरा काम कैसे चलेगा? चॉदी- आप ही के काम का ख्याल तो मुझे उससे मिलने पर मजबूर करता है, अगर ऐसा न होता तो मै उसकी वह दुर्गति करती कि वह भी जन्म भर याद करता । मगर उसे आप पूरा घेहया समझिये तुरन्त ही मेरी दी हुई गालियों को बिल्कुल भूल जाता है और खुशामद करने लगता है। कल मैने विश्वास दिला दिया कि मुझर्स और आप (हरनन्दन) से लडाई हो गई और अब सुलह नहीं हो सकती, अब यकीन है कि दा-तीन दिन में आपका काम हो जायेगा हरनन्दन - अरे हा परसो उसी कम्बख्त की बदौलत एक बडी मजेदार बात हुई। चाँदी - (और आग खिसक कर और ताज्जुब के साथ ) क्या क्या ? हरनन्दन --उसी के सिखान-पढ़ाने से परसों लालसिह ने एक आदमी मेरे बाप के पास भेजा। उस समय जब कि उस आदमी से मेरे याप में बातें हो रही थीं इत्तिफाक से मैं भी वहा जा पहुँचा । यद्यपि मेरा इरादा तुरत लौट पड़ने का था मगर मेरे बाप ने मुझे अपने पास बैठा लिया लाचार में उन दोनों की बातें सुनने लगा। उस आदमी ने लालसिह की तरफ से मेरी बहुत सी शिकायतें की और वात-बात में यही कहता रहा कि हरनन्दन चावूतो वादी रण्डी को रक्खे हुए है और देवकीनन्दन खत्री समग्र १२३२