पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३१

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ग्देन रात उसो क यहा बैठे रहत है ऐन आदमी को हमारी लड़की क गायव हा जान का भला क्या रजहागा? मर पिता पहिले तो चुपचाप बैठ दर तक एसी बातें सुनत रहे मगर जब उनका हद्दते ज्यादे गुस्सा चढ आया तब उत्त आदमी से डपट कर वाल 'तुम जाकर लालसिह का मरी तरफ ने कह दा कि अगर मेरा लडका हरनन्दन एवाश है तो तुम्हार थाप काश्या लेता है ? तुम्हारी लड़की जाय जहन्नुम में और अब अगर वह मिल भी जाय ता मैं अपने लड़के की शादी उसन नहीं कर सकता। जा नौजवान औरत इस तरह बहुत दिनों तक घर से निकलकर गायब रहे वह किसी मल अग्दनी के घर में व्याहुता बनकर रहने लायक नहीं रहती ! अब सुन लो कि मेरे लड़के ने खुल्लमखुल्ला बादी रण्डी का रस लिया है और उसे बहुत जल्द यहा ले आवगाविस तुम तुरन्त यहाँ से चले जाओ मैं तुम्हारा मुंह देखना नहीं चाहता ॥ इतना सुनते ही दह आदमी उठ कर चला गया और तब मेर बाप ने मुझसे कहा 'बटा ! अगर तुम अभी तक यादी से कुछ वास्ता न भी रखते थता अव खुल्लमखुल्ला उत्तके पास आना-जाना शुरू कर दी और अगर तुम्हारी ख्वाहिश हो तो तुन उसे नौकर भी रख ला या यहा ल आओ। मैं उसक लिए पाच सौ रुपये महीने की आमदनी का इलाका अलग कर दूंगा बल्कि थोडे दिन बाद वह इलाका उसे लिख भी दूंगा जिसमें वह हमेशा आराम और चैन स रहे। इसके अलाव और कुछ तुम्हारी इच्छा हो उसे दो. मै तुम्हारा हाथ न रोदूंगा देखें तो सही लालसिंह हमारा क्या कर लेता है ।। बाँदी- (बड़े प्यार से हरनन्दन का पजा पकड़ कर ) सच कहना ! क्या हकीकत में ऐसा हुआ? हरनन्दन -(बादी के सर पर हाथ रख क ) तुम्हारे सर की कसम भला मै तुमसे झूठ बोलूंगा तुमसे क्या मैने कभी और किसी से भी आज तक कोई यात भला झूठ कही है ? वादी-(खुशी स) नहीं नहीं इस बात को तो मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ कि आप कभी किसी से झूठ नहीं बोलते हरनन्दन-और फिर इस बात का विश्वास तो और लोगों को भी थोड़ी ही देर में हो जाएगा क्योंकि आज मै किसी से लुकाछिप के यहां नहीं आया हूँ बल्किखुलमखुल्लाआया हूँ। मेरे साथ एक सिपाही और एक नौकर भी आया है जिन्हें में नीचे दरवाजे पर इसलिए छोड आया हूँ कि बिना मेरी मर्जी के किसी को ऊपर न आने दे। बाँदी - (ताज्जुब से ) हाँ ! हुरनन्दन-(जोर देकर) हाँ ! और आज मै यहां बहुत देर तक यैलूंगा बल्कि तुम्हारा मुजरा मी सुनूंगा। डेरे पर मैं सभों को कह आया हूँ कि में बॉदी के यहाँ जाता हूँ, अगर कोई जरूरत आ पड़े तो वहीं मुझे खवर दना। मैं तो बाप का हुक्म पात ही इस तरफ को रवाना हुआ और यहाँ पहुँच कर बडी आजादी के साथ घूम रहा हूँ।आज से तुम मुझ अपना ही समझो और विश्वास रक्खो कि तुम बहुत जल्द अपन को किसी और ही रग-ढग में देखोगी। बॉदी-(खुशी से हरनन्दन के गले में हाथ डाल क) यह तो तुमन बडी खुशी की बात सुनाई मगर रूपये पैसे की मुझे कुछ भी चाह नहीं है, मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहने में खुश हूँ,चाहे तुम जिस तरह रक्खो। हरनन्दन- मुझे भी तुमसे एसी ही उम्मीद है।अक् जहाँ तक जल्द हो सके तुम उस काम को ठीक करके पारसनाथ का जवाबददा और इस मकान को छोडकर किसी दूसरे आलीशान मकान में रहने का बन्दोबस्त करा ।अब मुझ सरला का पता लगान की कोई जरूरत तो नहीं रही मगर फिर भी मैं अपने बाप को सच्चा किए विना नहीं रह सकता जिसने मेहरयानी करके मुझे तुम्हारे साथ वास्ता रखने के लिए इतनी आजादी दे रक्खी है और तुम्हें भी इस बात का खयाल जरूर हाना चाहिये। वे चाहते है कि सरला लालसिह के घर पहुँच जाय और तय लालसिह देखें कि हरनन्दन सरला के साथ शादी न करके बादी के साथ कैसे मजे में जिन्दगी बिता रहा है। बॉदी-जरूर ऐसा होना चाहिए ! मै आपसे वादा करती हूँ कि चार दिन के अन्दर ही सरला का पता लगा के पारसनाथ का मुंह काला करुंगी ॥ हरनन्दन-(बादी की पीठ पर हाथ फेर के) शायाश ।। याँदी- यद्यपि आपको अब किसी का डर नहीं रहा और विल्कुल आजाद हो गए है मगर मै आपको राय दती हू कि दो-तीन दिन अपनी आजादी को छिपाए रखिए जिसमें पारसनाथ से मैं अपना काम बखूबी निकाल लें। हरनन्दन-खैर जैसा तुम कहोगी वैसा ही करूँगा मगर इस बात को खूब समझ रखना कि आज स तुम हमारो हा चुकी, तुम्हारा बिल्कुल खर्च में अदा करूँगा और तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने का मौका न दूंगा। आज से मैं तुम्हारा मुशाहरा मुकर्रर कर दता हूँ और भी गैरों के लिए अपने घर का दरवाजा बन्द कर दी चाँदी - जो कुछ आपका हुक्म होगा मैं वही करूंगी और जिस तरह रक्खोग रहूंगी। मेरा तो कुछ ज्याद खचनहीं है और न मुझे रूप से की लालच ही है मगर क्या करूँ अन्मा के मिजाज से लाचार हूँ और उनका हाथ भी जरा शाहखर्च है। हरनन्दन - तो हर्ज ही क्या है जब रूपये-पैसे की कुछ कमी हो तो ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए। जब तक में मौजूद हूँ तब तक कित्ती तरह की फिक्र तुम्हार दिल में पैदा नहीं हो सकती और न कोई शौक पूरा हुए बिना रह सकता है अच्छा जरा अपनी अम्मा का तो चुला लाआ। काजर की कोठड़ी १२३३