पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३४

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e सूरज - (मुस्कुराते हुए ) यदनभीय काई दूसरा ही कम्बख्त हागा मे ता इस समय एक खुशनसीब और बुद्धिमान आदमी के बगल में बैठा हुआ यात कर रहा हूँ जिसस मिलने के लिए आज चार दिन से सोच विचार में पड़ा हुआ था लाल - (कुछ चोक कर) ताज्जुन है कि आप एक एस आदमी का खुशनसीब कहत है जिसकी एकलौती लडकी ठीक व्याह वाले दिन इस देदर्दी क साथ मारी गई कि जिसके कैफियत सुनने से दुश्मन को भी रज होता हो. और साथ ही इसके जिराक समधी तथा दामाद की तरफ स ऐसा बर्ताव हुआ हा जिसक बर्दाश्त की ताकत कमान स कमीना आदर्भ भी न रख सकता हो । सूरज - यह सब आपका भ्रम है और जो कुछ आप कह गए है उसमें से एक बात भी सच नहीं है। लाल - (आश्चर्य स )सा केस? क्या सरला मारी नहीं गई? और क्या उस समय आपक हरनन्दन गावादी रण्डी के साथ खुशियाँ मनात हुए सूरज-(धात काट के ) नहीं नहीं नहीं यिदाना यात झूठ है और आज यही सावित करन के लिए में आपके पास आया भी हूं। लाल --कहन के लिए ता मुझ भी लोगों ने यही कहा था कि सरला के मरन म शक है मगर बिना किसा नरह का सबूत पाए एसी बातों का विश्वास कर हो सकता है ! सूरज – ठीक है मगर मैं किसी तरह का सबूत पाए एसी वाता पर जोर देने वाला आदमी भी ता नहीं हूँ। लाल- तो क्या किसी तरह का सबूत इस समय आपके पास मौजूद भी है जिससे मुझे विश्वास हो जाए कि सरला मारो नहीं गई और हरनन्दन ने जो कुछ किया वो उचित था? सूरज-जी हा। इतग कहकर सूरजसिह ने एक पुर्जा निकाल कर लालसिह के आग रख दिया। लालसिह न उस पुर्जे का बड गौर स पढ़ा और ताज्जुब में आकर सूरजसिह का मुह देखन लगा। सूरज- कहिए इन हरूफों का आप पहिचानत है? लाल - वेशक । बहुत अच्छी तरह पहिचानता हूँ। सूरज और इस आप मरी याता का सबूत मान सकते है या नहीं? लाल - मानना ही पड़ेगा मगर सिर्फ एक बात का सबूत । सूरज- दूसरी बात का सबूत भी आप इसी को मानग मगर उसके बार में मुझे कुछ जुवानी भी कहना हागा । लाल - कहिये कहिये मै आपकी बातों पर विश्वास करूँगा क्योंकि आप प्रतिष्ठित पुरुष है और नि सन्दह आपका मरी भलाई का खयाल है। इस समय यह पुजा दिखाकर आपने मेरे साथ वैसा ही सलूक किया जैसा समय की वर्षा का सूखी हुई खती के साथ होता है। सूरज- यह सुनकर आपको ताज्जुब होगा कि बॉदी के पास हरनदन क वेदने का कारण यही पुर्जा है । इस तत्व को विना जाने ही लोगों न उसे बदनाम कर दिया। यों तो आपको भी उसक मिजाज का हाल मालूम ही है मगर ताज्जुध है कि आप भी चिना साच-विचारे दुश्मनों की बातों पर विश्वास कर बैठ । लाल-वेशक ऐसा ही हुआ और लोगों ने मुझे धोखे में डाल दिया। तो क्या यह पुर्जा हरनन्दन के हाथ लगा था? सूरज-जी हा जिस समय महफिल में नाचने के लिए बॉदी तैयार हो रही थी उसी समय उसके कपड़े में से गिरे हुए इस पुर्जे को हरनन्दन के नौकर न उठा लिया था। यह नौकर हिन्दी अच्छी तरह पढ़ सकता है अस्तु उसने जब यह पुर्जा पढाता ताज्जुब में आ गया। यह पुर्जा तो उसन फोरन लाकर अपने मालिक को द दिया और उसी समय महफिल का रगवदरग हो गया जैसा कि आप सुन चुके है। अब आप ही बताइए कि इस पुर्ज को पढ़के हरनन्दन को सबसे पहिले क्या करना उचित था? लाल- (कुछ सोचकर ) ठीक है उस समय बाँदी के पास जाना ही हरनन्दन का उचित था क्योंकि वह नीति-कुशल लडका है इस बात का मै खूब जानता हूं। सूरज - केवल उसी दिन नहीं बल्कि जब तक हमारा मतलव न निकले तब तक हरनन्दन को बॉदी से मेल रखना - चाहिए। लाल- ठीक है मगर यह काम तो हरनन्दन के अतिरिक्त काई और आदमी भी कर सकता है ॥ सूरज-वेशक कर सकता है मगर वहीं जिस उतनी ही फिक्र हो जितनी हरनन्दन को। इसके अतिरिक्त बाँदी को जा आशा हरनन्दन से हो सकती है वह किसी दूसरे से कैसे हो सकती है ? इस बात का जवाब ता लालसिह ने कुछ न दिया मगर सूरजसिह का पजा उम्मीद भरी खुशी और मुहब्बत से पकड के वोला 'मेरे मेहरबान सूरजसिहजी । आज आपका आना मेरे लिए बड़ा ही मुबारक हुआ। यदि आप आकर इन सब भेदों को न खोलते तो न मालूम मरी क्या अवस्था होती और मेरे नालायक भतीजे किस तरह मेरी हड्डियों चचाते। उडती हुई खयरों और भतीजे की रगीन वातों ने तो मुझे एक दम से उल्लू बना दिया और बेचारे हरनन्दन की तरफ से भी देवकीनन्दन खत्री समग्र १२३६