पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२४४

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61 पारस- बादी- मेरे काहे को होंग जिसके होंग उसके होंगे। मैं तो तुम्हारे काम का ख्याल करके उन्हें अपने यहा आने देती हूँ नहीं तो मुझे गरज ही क्या पड़ी है ? पारस -- उनकी गरज तो कुछ नहीं मगर रूपये की गरज ता है ? यादी-जी नहीं, मुझे रुपये की भी लालच नहीं, मैं तो मुहवत की भूखी हूँ सो तुम्हारे सिवाय और किसी में देखती नहीं। तो अव हरनन्दन से मेरा क्या काम निकलेगा? वादी - वाह वाह क्या खूब ? इसी अक्ल पर सरला की शादी दूसरे के साथ करा रहे हो ? पारस-सो क्या? बादी-आखिर दूसरी शादी करने के लिए सरला को क्योंकर राजी किया जायेगा? और तीवों के साथ ही साथ एक तर्कीव यह भी होगी कि हरनन्दन के हाथ की लिखी हुई चिट्ठी सरला को दिखाई जायेगी जिसमें सरला से घृणा और उसकी निन्दा होगी। पारस-(बात काट कर ) ठीक है ठीक है अब मैं समझ गया | शाबाश बहुत अच्छा सोचा ! सरला हरनन्दन के अक्षर पहिचानती भी है। ( उठता हुआ ) अच्छा तो मेरे जाने का रास्ता ठीक कराओ, वह कम्यख्त मुझे देखन न पावे। बादी-बस तुम सीढी के बगल वाले पायखाने में घुस कर खडे हो जाओ जब वे ऊपर आ जायें तव तुम नीचे उत्तर जाना और गली के रास्ते बाहर हो जाना क्योंकि सदर दर्वाजे पर उनके आदमी होंगे। पारस- (मुस्कुराते हुए) बहुत खूब ! रडियों के यहॉआने का एक नतीजा यह भी है कि कभी-कभी पायखान का आनन्द भी लेना पड़ता है। इसके जवाब में बादी ने मुस्कुराकर एक चपत (थप्पड़) से पारसनाथ की खातिर की और मटकती हुई नीचे चली गई। जब तक हरनन्दन बाबू को लेकर वह ऊपरन गई तब तक पायखाने का विमल अथवा समल आनन्द पारसनाथ को भोगना पड़ा। दसवां बयान यादी की अम्मा पारसनाथ से मन-मानता पुर्जा लिखवाकर नीचे उतर गई और अपने कमरे में न जाकर एक दूसरी कोठरी में चली गई जिसमें सुलतानी नाम की एक लौंडी का डेरा था। यह सुलतानी लौडी पुरानी नहीं है बल्कि चाँदी के लिये बिल्कुल नई है। आज चार ही पाँच दिन से इसने बादी के यहाँ डेरा जमाया है। इसकी उम्र चालीस वर्ष से कम न होगी। बातचीत में तेज चालाक और बडी ही धूर्त है। दूसरे कोअपने ऊपर मेहरवान बना लेना तो इसके बाएं हाथ का करतय है। यद्यपि उमू के लेहाज से लोग इसे बुढिया कर सकते है मगर यह अपने को बुढिया नहीं समझती । इसका चेहरा सुडौल और रंग अच्छा होने के सवब से बुढापे का दखल जैसा होना चहिए थान हुआ था और अब भी यह खूबसूरतों के बीच में बैठ कर अपनी लच्छेदार बातों से समों का दिल खुश कर लेने का दावा रखती है। इसने वादी के घर पहुँच कर उसकी अम्मा को खुश कर लिया और उसकी लाँडी या मुसाहय बन कर रहने लगी। इसके बदन पर जेवर और एक हजार रूपया नक्द भी था जो उसने बॉदी के पास यह कह कर अमानत में रख दिया था कि 'एक नजूमी (ज्योतिषी) के कहे मुताबिक मे समझती हूँ कि मेरी उम्र बहुत कम है. अब मैं और चार-पांच साल से ज्यादे इस दुनिया में नहीं रह सकती, साथ ही इसके मेरा न तो कोई मालिक है न वारिस, एक लडकी थी वह भी जाती रही, अस्तु इस एक हजार रुपये को जो मेरे पास है,अपनी आकवत सुधारने का जरिया समझकर तुम्हारे पास अमानत रख देती हूँ और उम्मीद करती हूँकि इससे मेरे मरने के बाद मेरी आकबत ठीक करके कब वगैरह बनवा दोगी। रूपये वाले की कदर सब जगह होती है. अस्तु बादी की माने भी खुशी-खुशी उसे साये सहित अपने घर रख लिया ओर लौडी के बदले में उसे अपना मुसाहव समझा। बस इस समय बादी की माने जो कुछ पारसनाथ से लिखवाया वह इसी की सलाह का नतीजा था। वादी की अम्मा को देखकर सुलतानी खडी हुई और बोली, “कहिये क्या रंग है ? बादी की अम्मा - सब ठीक है जो कुछ मैने कहा उसन बेउजू लिख दिया देखो यह उसके हाथ का पुर्जा है। सुलतानी-(पुरजा पढ कर) बस इतने ही से तो मतलब था आइय चैठ जाइये गहने के बारे में उसने क्या कहा बादी की अम्मा-(बैठकर) गहना आधा तो उसने बेच खाया, बाकी आधा कलले आवेगा । जो कुछ करना है तुम्ही को करना है क्योंकि तुम्हारे कहे मुताबिक और तुम्हारे ही भरोसे पर यह कार्रवाही की गई है। सुल- आप किसी तरह का तरदुद न करें सरला को राजी कर लेना मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं है, इस काम के लिये केवल हरनन्दन बाबू के हाथ की एक चिट्ठी उसी मजमून की चाहिये जैसा कि मैं कह चुकी हूँ, बस और कुछ नहीं। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२४६