पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६२

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cy निकालना चाहता है. तथापि उदयसिह ने अपने विचार में किसी तरह की कमी न होने दी और नकाबपोश के पास पहुंचने की धुन में लगा ही रहा। थोड़ी ही देर में उदयसिह ने अपने नेजे से तीन आदमियों को काम करके जमीन पर गिरा दिया और उसी समय उसे नकाबपोश के पास जा पहुंचने का मौका भी मिल गया। जब नकाबपोश और उदयसिह का सामना हो गया तो उदयसिह ने नकाबपोश की छाती में एक नेजा ऐसा मारा कि वह पीठ की हड्डी फोड कर पार निकल गया और नकाबपोश बेदम होकर जमीन पर गिर पड़ा । नकाबपोश के गिरते ही उसके मददगारों की हिम्मत टूट गई और वे मैदान खाली छोड कर भाग गये। उदयसिह ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और नकाबपोश का चेहरा खोल कर उसकी सूरत पर गौर करने लगा जो इस समय दम तोड रहा था। यद्यपि चन्द्रमा की रोशनी उसक चहरे पर बखूबी पड़ रही थी मगर उदयसिह उस किसी तरह भी पहिचान न सका और यह कह कर पीछे हट गया कि "मैने इसे आज के पहिले कभी नहीं देखा। इस लड़ाई में यद्यपि उदयसिह ने फतह पाई मगर उसके बदन पर भी कई जख्म लग चुके थे जिसमें से बहुत ज्यादे खून निकल जाने के कारण उसके सर में चक्कर सा आने लग गया। यह सोच कर कि यहा ठहरने से पुन किसी दुश्मन से मुकाविला न हो जाय उदयसिह ने अपने को सम्हाला और वहाँ से तुरन्त एक तरफ को रवाना हो गया परन्तु उसमें ज्यादे दूर तक जाने की ताकत न थी इसलिए थोडी दूर जाकर एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गया और फिर लेटन के साथ ही बेहोश हो गया। पॉचवॉ बयान दूसर दिन पहर भर दिन चढने के बाद जब उदयसिह होश में आया तो अपने पास अपन मित्र रविदत को बैठे पाया और यह भी देखा कि उसके ( उदय के ) जख्मों पर गीली पट्टी बॅधी हुई है। उदयसिह चौक कर बैठा हुआ आर अपने मित्र की तरफ देख कर बोला है तुम यहा कैसे आ पहुच? यह आशा तो विल्कुल न थी कि तुमसे इतनी जल्द मुलाकात होगी! रविदत्त - बात भी एसी ही थी में स्वय आपक दर्शन की आशा से हाथ धो बैठा था मगर धन्यवाद है उस सर्वशक्तिमान जगदीश्वर को जिसन आशा क विरुद्ध एक अनूठ ढग से मुझे बचा लिया और पुन आपस मिलने का मौका दिया। उदय - कहा ता सही कि तुम किस मुसीबत में गिरफ्तार हो गये थ और क्योंकर यहा तक पहुचे 7 रविदत्त - में अपना हाल बयान करने के पहिल आपका हाल सुनूगा मगर इस जगह न ता मै कुछ सुनने के लिये तैयार है और न कुछ कहने के लिये। उदय - बेशक हमलोगों को यहा अटक न रहना चहिये मगर अब ता दिन का समय है। रविदत्त - क्या हुआ अगर दिन का समय है तो मालूम होता है आपको अपने दुशमनों का हाल कुछ मालूम नहीं हुआ। उदय - क्यों नहीं मालूम हुआ ? मे उन दानों को बखूबी जान गया जिन्होंने तुम्हें धोखा दिया था। रविदत्त - उन्हें तो मैं भी जानता हू, वही मुलेठी वाले न? उदय - हा हा वही। रविदत्त- में खूब जान गया हू, मगर इस जगह न ता कुछ कहगा और न कुछ सुनूगा आपमें यदि चलने की ताकत है तो उठिये या नहीं तो कहिये में कोई सवारी का बन्दोबस्त करू । उदय - में बखूबी चल सकता हूं मगर यह बताआ कि तुम मुडा कितनी दूर और कहा ले जाओगे? रविदत्त - बस में आध कोस स ज्याद दूर चलने की आपको तकलीफ न दूगा। दानों मित्र वहा स उठ खडे हुए और आधे घटे तक सफर करने के बाद एक ऐसे स्थान में पहुंचे जहा घना जगल और जानवरों का भय रहने के कारण आदमियों का आना-जाना बहुत कम हो सकता था। उस जगह एक पुराने और टूटे हुए मकान का कुछ हिस्सा बचा हुआ मौजूद था। उदयसिह का साथ लिए हुए रविदत्त उसी टूट मकान (या खेडहर) के अन्दर घुस गया। जिसमें इस समय भी दो कोठरिया मजबूत और रहने योग्य बची हुई थी और उस खंडहर के पास हीस एक पानी का नाला पश्चिम से आकर पूरव की तरफ बहता हुआ चला गया था। दानों मित्रों को मामूली कामोसे छुटटी पान और आराम का धन्दायरत करने में दो घटे से कुछ ज्यादे वीत गए और इसके बाद एक साफ जगह पर बैठ कर यों बातचीत करने लग - उदय - हा तो तुम हमसे जुदा हो कर कहा गये और क्या हुआ रविदत्त – सो नहीं पहिले अपना हाल कह जाइये तब मेरा हाल सुनिये। . ? देवकीनन्दन खत्री समग्र १२६४