पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८७

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देशक औरगजेय का दिल उदयत्तिह की तरफ से ताफ नहीं हुआ था। यहारे भरया ने बहुत भरत बनाई मगर औरगजेब को विश्वास नहीं हुआ था और वह यही समझता था कि हमार लश्कर में उदयरिहका जनकनयली के साथ नहीं हुआ बल्कि कित्ती मतलब से है नगर उदयत्तिह की चल-फिरतो और बहादुरी से नरी हुई बातें सुनकर वह दग हा गया और उत्ते कुछ विश्वास हो गया कि यह जो कुछ कहता है सच है। गजल औरगजेब को फौजी रहे और बहादुरों की सख्त जरूरत थी और वह अपनी ताकत बढ़ाना चाहता था साथ हो इसके वह मतलगी भी हद दर्ग का जैत्ता कि ऊपर के बयान से मालूम हुआ होगा. था अतएत अब उसकी बातचीत का डग बिलकुल हो पदल. पहिले यह बात भी उसके दिल में पैदा हुई थी कि उदयतिह को हिफाजत में कर ले मगर अब यह बात सुनकर सहम गया कि उसका बाप दो हजार सवारों का मालिक है जिसकी बहादुरी दह पहिले से जान्ता था। उदयक्तिह का चालाकी क ताय बात करना और साथ ही नरथसिह का हामी भर देना कि हा हम सुन चुके हैं असर रखता था। इस समर उदयसिह की चालाकी पर भरथसिह ने भी दिल में तारीफ की और पुन उदयसिह से कहा- भरथ- मरे प्यार नतीजे तुम बहुत जल्द गुस्से में आ जाते हो और यह बात तुममें लडकपन ही से है मगर यह नहीं सोचते कि मेर कहने का असल मतलय क्या है। उदय- आप जा कुछ कहें ठीक है और मैं तो आपका लडका ही हू, आप जो हुक्म देंगे नानूहीगा मगर औरग- नहीं नहीं उदयसिह तुम किसी बात की चिता मत करो जो कुछ भरतसिह तुम्हारे साथ वादा करेंगे नै उसे दिलाजान समजूर करंः । भरय - (औरगजेब स) हुजूर !अगर यह पहर दो पहर तक मेरी बातें सुनते तो मेरा मतलय समझ जाते और इतनी बातें न करते मगर इनकी मुलाकात को घटे भर से ज्यादे नहीं हुआ था कि हुजूर ने तब फर्माया और हम लोग हाजिर हुए खैर रातभर में मैं इनको दिलजमई कर दूंगा। औरग - ठीक है अच्छा अब तुम लोग जाओ आराम करो । मेरे भी दोआ का वक्त हो गया। दाना आदमी उठे और अपने डेरे की तरफ रवाना हुए। आधी दूर से ज्यादे न गये होंगे कि औरंगजेब ने फिर भरथसिह को अपने पास जुलवा भेजा और जब वे आ गये तो औरगजेब ने अपने पास बैठा कर धीरे से कहा- औरग [~ क्या तुम कह सकते हो कि उदयसिह तुम्हारी बातों को कबूल करेगा? भरथ-- मुझ ता ऐसी ही उम्मीद है। औरग-मैं समझता हू कि अगर वह तुम्हारी बात न माने तो उसे यहा से जाने न देनाचाहिये । क्यों तुम क्या सोचते हो? भरथ-(दबी जुबान से) मैं तो इस बात को पसन्द नहीं करता यही अच्छा समझता हू कि चाहे वह मेरी बात कबूल करे या न करे, दोनों हालातों में जहा तक जल्द हो सके यहा से उसे विदा कर देना चहिये। औरग - सो क्यों? मरथ- अव्वल तो यह कि उसे कैद कर लेने से हुजूर को कुछ फायदा न होगा बल्कि कुछ न कुछ नुक्सान ही हो सकता है क्योंकि उसका बाप बडा ही बहादुर आदमी है। दूसरे यह कि अगर वह रूठ कर चला जायेगा तो मैं उसे फिर भी बुलवा सकता हू, उसको क्या उसके बाप को भी बुलवा सकता हू और समझा-बुझाकर अपना साथी बना सकता है। तीसरे अभी तक उसको उस औरत का हाल मालूम नहीं है, अस्तु काम हो जाने के पहिले ही अगर वह हमारी बात मजूर कर ले तब भी उस यहा से चले जाना चाहिये। फिर उसके लौट कर आने तक देखा जायेगा। औरग -- तुम ठीक कहते हो अच्छा जाओ। जैसा भुनासिब समझना करना । मरथसिह सलाम करके चला गया और बहुत जल्द उदयसिह के पास आ पहुचा ओर औरगजेब ने पुन बुला लेने का सबब बयान किया। ' औरगजेब की चालाकी और होशियारी के बारे में कुछ मामूली बातचीत होने के बाद पुन उन दोनों में या बातें होने लगीं- भरथ-बेशक मै औरगजेब का साथ छोड देता क्योंकि मुझे भी ऐसे धूर्त और युदगरज के साथ रहना पसन्द नहीं है मगर क्या करू दो बातों का ख्याल कारके अभी तक पड़ा हूँ। उदय-बेशका भरथ-दूसरे यह कि इनको छोड़ के अगर मै खुद बादशाह सलामत की तरफ जा मिलू तो वहा भी तो इसी तरह वईमानी और चालाकियो का बाजार गरम रहता है, फिर जाऊ तो कहा जाऊ? और बिना फौजी नौकरी किये जी भी नहीं मानता। इतना होने पर मोमेयह कहने सेवाजना समय आदमी से सब कुछ करा लेता है, ताज्जुब नहीं कि कोई ऐसा समय आ जासिना पुछ सोधे एका पम इस नौकरी को तिलाजुली दे दूं उदय -- (स और जब किसी बहादुर का साथ हूँ। सकता है। उदय--१ salokild! औरत के विषय में आपकी क्या राय है? . भरथ-( पुस्तगोदना १२८९