पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८८

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दि भरथ -- उस औरत के विषय में मेरी वही राय है जो पहिले थी अर्थात् उसे किसी तरह अवश्य छुडाना चाहिये। उदय - कुछ आपको इस बात का भी पता लगा कि वह औरत कौन और कहाँ की रहने वाली है। भरथ-- ठीक-ठीक नहीं मालूम हुआ मगर गुमान होता है कि वह जरूर किसी आपुस ही वाले की लडकी है। ऐसा मौका भी नहीं मिला कि उससे कुछ दरियाफ्त किया जाय और बिना विश्वास हुए वह किसी से कुछ कहेगी भी नहीं। उदय - सो तो ठीक है अच्छा यह आपको जरूर मालूम हुआ होगा कि उसे यहा लाया कौन ? भरथ- हा यह तो मालूम है, उसे देवीसिह और हरिदत्तसिह यहा लाए थे और जब वह किसी तरह भाग गई तो पुन उन्हीं दोनों ने गिरफ्तार भी करा दिया । उदय - (ताज्जुब के साथ) देवीसिह और हरिदत्त? भरथ-हा। उदय- और इन्हीं दोनों कम्बख्तों ने मेरे दोस्त रविदत्त के साथ भी दुश्मनी की थी। भरथ - हा यह भी मुझे मालूम हो चुका है मैं बहुत ही खुश होता अगर उन दोनों को आप या आपके दोस्त गिरफ्तार कर लेते क्योंकि मैं उनके साथ जाहिर में किसी तरह दुश्मनी का बर्ताव नहीं कर सकता ! 'उदय-- बेशक ऐसा ही है मुझे उन दोनों के साफ निकल जाने का बड़ा रज है। इस समय न मालूम वे दोनों कहा और किस फिक्र में होंगे। खैर अब हमें उस औरत के विषय में बातचीत करनी चहिये और इस बात का भी निश्चय कर लेना चहिये कि इस काम के लिये हम लोगों को कहा तक कर गुजरने की हिम्मत बाध लेनी चहिये। भरथ-मै तो इस नेक काम के लिये नौकरी तो क्या जान तक देने के लिये तैयार हू। हम लोगों के देखते-देखते एक क्षत्री की सूधी सादी लडकी क्या इस तरह मुसल्मानों के हाथ से बेइज्जत हो सकती है ? उदय - शाबाश शाबाश अच्छा तो मुझे आप अपने से भी ज्यादे मुस्तैद पावेंगे। इसके बाद बहुत देर तक उन लोगों में धीरे-धीरे बातें होती रही और जब रात थोडी सी बाकी रह गई तब रविदत्त और उदयसिह वहा से बिदा हुए और लश्कर के बाहर हो जगल की तरफ चल निकले। सोलहवां बयान उपर लिखी वारदात के दूसरे दिन हम पुन अपने पाठकों को औरगजेब के लश्कर में ले चल कर उस खेमे के अन्दर का कुछ तमाशा दिखाते हैं जिसमें वह चेचारी औरत हिफाजत के साथ रक्खी गई है जिसे छुडाने के लिये हमारे बहादुर नौजवान और भरथसिह ने बीडा उठा लिया है। रात का समय है। एक छोटे से मगर खूबसूरत खेमें के अन्दर बहुत ही साफ सुथरा फर्श विछा हुआ है और एक तरफ बेशकीमत काश्मीरी गलीचे के ऊपर किमख्वाब की ऊची गद्दी लगी हुई है, जो बेशक उसी दुखिनी चालिका के लिये होगी जो एक तार पर उस खेमे में कैद की गई है, जिसने वहा अपना नाम कुन्द बतलाया है और जिसे छुडाने के लिये हमारे उदयसिह और भरथ तैयारिया कर रहे है। मगर वह बेचारी दुखिनी कुन्द उस खूबसूरत गद्दी पर बैठना पसन्द नहीं करती इसलिये गद्दी की बगल में फर्श पर एक तकिये के सहारे सिर झुकाये बैठी गर्म-गर्म आसू बहा रही है। यद्यपि यह सफर का मुकाम है मगर तो भी यह छोटा सा खूबसूरत खमा एक तौर पर अच्छे ढग से सजा हुआ है सभी तरह का जरूरी सामान यहा मौजूद है और खूबसूरत शीशों में मोमबत्तिया जल रही है, तथा दस खूबसूरत और अच्छे गहने कपड़ों से सजी हुई लौडिया कमर में कटार लगाये कुन्द की खिदमत के लिये-फुसलाने और बहकाने के लिये वहा मौजूद है जो कुन्द को चारों तरफ से घेर कर तरह-तरह की बातों से उसका दिल खुश किया चाहती है मगर कुन्द इन सब बातों की तरफ कुछ भी ध्यान नहीं देती और वह सर नीचे किये बराबर आसू गिरा रही है। यकायक कुन्द ने सर उठाया और एक लवी सास छोडकर धीरे से कहा, "हाय ।कहा वह उदय और कहा यह अस्त। इसके जवाब में एक लौंडी ने तैश में आकर कुन्द से कहा। लौंडी--फिर वे ही शब्द रानी साहेबा आप अपनी तरफ कुछ भी ध्यान न देती और इस यात को कुछ भी है। सोचती कि आप कितनी बडी दौलत और हश्मत को लात मार रही है और साथ ही इसके कम्बख्ती और बेइज्जती का अपने लिये बुला रही है। जिस नाम से हमारे सरकार को रज होता है वही नाम आप अपने मुंह से निकालती है और जरा भी नहीं कुन्द -(चिढकर) मै ऐसी दौलत और हश्मत को लाख बार लानत भेजती हू, मुझे अपने धर्म की इज्जत बहुत ही प्यारी है चाहे उसके लिये कैसी ही तकलीफ क्यों न उठानी पडे, साथ ही इसके मै उस प्यारे नाम को कभी नहीं भूल सकती जिसकी उम्मीद में अभी तक जी रही हू नहीं तो मुझे जान देते क्या देर लगती है ? यद्यपि तुमने मेरे हर्वे छीन लिये है, यद्यपि तुम हर तरह से मुझे बेइज्जत करने पर तैयार हो मगर फिर भी मैं देवकीनन्दन खत्री समग्र १२९०