पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१५

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दि ज्यादे घबराने का सबब यह था कि उसके हरये छीन लिये गए थे और वह इस लायक न रह गया कि दुश्मनों के हमला करने पर उनका मुकाबला करे या किसी तरह अपने को बचा सके। हॉ हाथ-पैर खुले रहने के सवय नानक इस ख्याल से भी चेफिक्र न था कि अगर किसी तरह भागने का मौका मिल तो भाग जाय। बाहर ही से मालूम हुआ कि इस मकान में रोशनी बखूबी हो रही है। बाहर के सहन में काई दीवारगीरे जल रही थीं और चोचदार हाथ में सोने का आसा लिये नौकरी अदा कर रहे थे। उन्हीं के पास नानक खड़ा कर दिया गया और वे आदमी जा उस गिरफ्तार कर लाए थे और गिनती में आठ थे मकान के अन्दर चले गय मगर चोचदारों से यह कहते गए कि इस आदमी से होशियार रहना हम सरकार से खबर करने जाते है । नानक को आधे घण्टे तक वहाखडा रहना पड़ा। जब व लाग जो इसे गिरफ्तार कर लाय थे और खयर करने के लिए अन्दर गये थे,लौट तो नानक की तरफ दस कर बोल इनिला कर दी गई अब तू अन्दर चला जा। नानक-मुझे क्या मालूम है,कहाँ जाना होगा और रास्ता कौन है ? एक-यह मकान तुझे आप ही रास्ता बतावेगा पूछने की जरूरत नहीं । लाचार नानक ने चौखट के अन्दर पैर रक्खा और अपने को तीन दर के एक दालान में पाया पिार कर पीछे की तरफ देखा तो वह दर्वाजा बन्द हो गया था जिस राह से इस दालान में आया था। उसने सोचा कि वह इसी जगह में कैद हा गया और अब नहीं निकल सकता यह सब कारवाई केवल इसी के लिए थी। मगर नहीं उसका विघार ठीक न था क्योंकि तुरत ही उसके सामने का दर्वाजा खुला और उधर राशनी मालूम होने लगी। उरता हुआ नानयः आगे बढ़ा और चौकठ के अन्दर पैर रक्खा ही था कि दो नौजवान औरतों पर नजर पड़ी जो साफ और सुथरी पोशाक पहिरे हुए थी दानो न नानक के दोनों हाथ पकड लिये और ले चली। नानक डरा हुआ था मगर उसने अपने दिल को काबू में रक्खा तो भी उसका कलेजा उछल रहा था और दिल में तरह-तरह की बातें पैदा हो रही थीं। कभी तो वह अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो जाता कभी यह सोच कर कि मैने कोई . कसूर नहीं किया ढाढस होती और कभी सोचता जो कुछ होना है यह तो हायेहीगा मगर किसी तरह उन बातों का पता तो लग जिनके जाने बिना जी बैचैन हो रहा है ! कल से जो-जो बातें ताज्जुब की देखने में आई है,जब तक उनका असल भेद नहीं खुलता,मरे हवास दुरूस्त नहीं होते। ये दोनों औरतें उसे कई दालानों और कोठरियों में घुमाती-फिराती एक वारदरी में ले गई जिसमें नानक ने कुछ अणय ही तरह का समा देखा। यह बारहदरी अच्छी तरह से सजी हुई थी और यहा रोशनी बखूबी हो रही थी। दरबार का यिन्कुल मामान यहाँ मौजूद था। बीच में जडाऊ सिहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढग की बेशकीमत पोशाक पहिरे सिर से पैर तक जडाऊ जेवरों से लदी हुइ वैदी थी। उसकी खूबसूरती के बारे में इतना ही कहना बहुत कि अपनी जिन्दगी में नानक ने ऐसी खूबसूरत औरत कभी नहीं दखी थी। उसे इस बात का विश्वास होना मुश्किल हो गया कि यह औरत इस लोक की रहने वाली है। उसके दाहिने तरफ सोने की चौकी पर मृगछाला बिछाए हुए वहीं साधू बैठा था जिसे सनक ने शाम को नहर वाले कमरे में देखा था। साधू के बाद गोलाकार वीस जडाऊ कुसिया और थीं जिन पर एक स एक बढ के खूबसूरत औरतें दक्षिणी ढग की पोशाक पहिरे ढाल तलवार लगाये बैठी थी। सिहासन के वाई तरफ जडाऊ छोटे सिहासा पर रामभाली को उन्हीं लोगों की सी पोशाक पहिरे ढाल तलवार लगाये बैठे देख नानक के ताज्जुब का काई हद्द न रहा मगर साथ ही इसके यह विश्वास भी हो गया कि अब उसकी जान किसी तरह नहीं जाती। रामभोली के बगल में जडाऊ कुर्सी पर वह औरत बैठी थी जिमन नानक के सामन से रामभोली को भगा दिया था उसके बाद धीस जडाऊ कसियों पर यीस नौजवान औरतें उसी ठाठ से बैठी हुई थी जैसी सिहासन के दाहिने तरफ थी। सामने की तरफ बीस औरतें ढाल तलवार लगाये जलाऊ आसा हाथ में लिये अदय से सिर झुकाए पर हुक्म बजाने के लिए तैयार दुपट्टी खड़ी थी जिनके बीच में नानक को ले जाकर खड़ा कर दिया गया। इस दवार को दखकर नानक की आँखों में चकाचौध सी आ गई। वह एक दम घबडा उठा और अपने चारो तरफ देखने लगा। इस बारहदरी की जिस चीज पर उसकी नजर पर पड़ती उसे लासानी *पाता। नानक एक बडे अमीर वाण का लडका था और बड़े-बड़े राजदारों को देख चुका था मगर उसकी आँखों ने यहाँ जैसी चीजें देखी वैसी स्वप्न में भीन देखी थीं! आलो (ताको ) पर जो गुलदस्त सजाए हुए थे वे बिल्कुल यनायटी थे और उनमें फूल-पत्तियों की जगह बेशकीमत जवाहिरात काम में लाय गये थे। केवल इन गुलदस्तों ही को देख कर नानक ताज्जुब करता था कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहा से आई । इसके अतिराि और जितनी चीजें सजावट की मौजूद थी सभी इस योग्य थीं के जिनका मिलना मनुष्यो को बहुत ही कठिन समझना चाहिए। उन औरतों की पोशाक और जेवरों का अन्दाज करना

  • अनुपम

देवकीनन्दन खत्री समग्र २८८