पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२२

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QY वीरेन्द्र-अच्छा तो अब हम लोगों का एक तो किशोरी के पता लगाने का दूसरे यहा के तहखाने में जो बहुत सी बात जानने और विचारने लायक हैं उनके मालूम करने का, तीसरे इन्द्रजीतसिह के खाजने का बन्दोवस्त सबसे पहिले करना चाहिये। ( तेजसिह की तरफ देख कर ) तुमने कहा था कि इन्दजीतसिह का कुछ हाल मालूम हो चुका है ? तेज-जी हा वेशक मैंने कहा था और उसका खुलासा हाल इस समय आपको मालूम हुआ चाहता है मगर इसके पहले मैं दो-चार वाने राजा साहब से (दिग्विजयसिह की तरफ इशारा करके } पूछा चाहता हू जो बहुत जरूरी हैं इसके बाद अपने मामले मेंबातचीत करूँगा। वीरेन्द्र-कोई हर्ज नहीं। दिग्विजय-हा-हा पूछिये। तेज-आपके यहा शेरसिह *नाम का कोई ऐयार था? दिग्विजय-हा था, बेचारा बहुत ही नेक ईमानदार और मेहनती आदमी था और ऐयारी के फन में पूरा ओस्ताद था रामानन्द और गोविन्दसिह उसी के चेले है। उसके भाग जाने का मुझे बहुत रज है। आज के दो-तीन दिन पहिले दूसरे तरह का रज था मगर आज और तरह का अफसोस है। तेज-दो तरह के रज और अफसोस का मतलब मेरी समझ में नहीं आया कृपा कर साफ साफ कहिय। दिग्वि-पहिले उसके भाग जाने का अफसास क्रोध के साथ था मगर आज इस बात का अफसोस है कि जिन बातों को सोच कर वह भागा था वे बहुत ठीक थीं, उसकी तरफ से मेरा रज होना अनुचित था यदि इस समय वह होता तो बड़ी खुशी से आपके काम में मदद करता। तेज-उससे आप क्यों रज हुए थे और वह क्यो भाग गया था ? दिग्वि-इसका सबब यह था कि जब मैने किशोरी को अपने कब्जे ने कर लिया तो उसन मुझे बहुत कुछ समझाया और कहा कि आप ऐसा काम न कीजिए बल्कि किशारी को राजा वीरेन्द्रसिह के यहा भेज दीजिये । यह बात मैने मजूर न की बल्कि उससे रज होकर मैने इरादा कर लिया कि उसे कैद कर लू। असल बात यह है कि मुझसे और रणधीरसिह से दोस्ती थी शेरसिह मेरे यहा रहता था और उसका छोटा भाई गदाधरसिह जिसकी लड़की कमला है आप उसे जानते होंगे। तेज-हा-हा हम सब कोई उसे अच्छी तरह जानत है। दिग्वि-खैर तो गदाधरसिंह रणधीरसिह के यहा रहता था। गदाघरसिंह को मर बहुत दिन हो गय इसी बीच में मुझसे और रणधीरसिह से कुछ बिगड गई इधर जब मैन रणधीरसिह की नतिनी किशारी को अपन लडके के साथ व्याहने का बन्दोबस्त किया तो शेरसिह को बहुत बुरा मालूम हुआ। मेरी तबीयत भी शेरसिह से फिर गई। मैंने सोचा कि शेरसिह की भतीजी कमला हमारे यहाँ स किशोरी को निकाल ले जाने का उद्योग करेगी और इस काम में अपने चाचा शेरसिह से मदद लेगी। यह बात मेरे दिल में बैठ गई और मैने शरसिह का कौद करने का विवार किया। उसे मेरा इरादा मालूम हो गया और वह चुपचाप न मालूम कहा भाग गया। तेज-तव आप क्या सोचते है ! उसका कोई कसूर था या नहीं। दिग्वि-नहींनहीं वह बिल्कुल बेकसूर था बल्कि मेरी ही भूल थी जिसक लिए आज मै अफसोस करता हू, ईश्वर करे उसका पता लग जाय तो मै उससे अपना कसूर माफ कराऊ । तेज-आप मुझ कुछ इनाम दें तो मै शेरसिह का पता लगा दू दिग्वि-आप जो मागगे मैं दूंगा और इसके अतिरित आपका भारी अहसान मुझ पर होगा। तेज बस में यही इनाम चाहता है कि यदि शेरसिह को दूढ कर ल आऊ तो उसे आप हमारे राजा वीरेन्द्रसिह के हवाले कर देंहिम उसे अपना साथी बनाना चाहते है। दिग्वि-मै खुशी से इस बात को मन्जूर करता हूँ, वादा करने की क्या जरूरत है जब कि मैं स्वय राजा वीरेन्दसिह का तावेदार है। इसके बाद तेजसिह ने उस नकाबपोश की तरफ देखा जो उनके पास बैठा हुआ था और जिसे वह अपने साथ इस कमेटी में लाये थे। नकाबपोश ने अपने मुँह पर से नकाब उतार कर फेंक दिया और यह कहता हुआ सजा दिग्विजयसिह

  • शेरसिह कमला का चाचा जिसका हाल इस सन्तति के तीसरे भाग के तेरहवें बयान में लिखा गया है।

देवकीनन्दन खत्री समग्र २९६