पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२३

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के पैरों पर गिर पड़ा कि आप मेरा कसूर माफ करें । राजा दिग्विजयसिह न शरसिह का पहियाना वडीयुशी से उठा कर गले लगा लिया और कहा नहीं-नहीं तुम्हारा कोई कसर नहीं बल्कि मेरा कसूर है जा मै तुमस क्षमा कराया चाहता शरसिह तेजसिह के पास जा बैठे। तेजसिह ने कहा "सुनो शरसिह अब तुम हमार हो चुके । शेर-पेशक मै आपका हो चुका हूं, जब आपने महाराज स वचन ले लिया तो अब क्या उज्ज हो सकता है? राजा वीरेन्द्रसिह ताज्जुब से ये बातें सुन रहे थे अन्त में तेजसिह की तरफ देख कर बोले 'तुम्हारी मुलाकात शेरसिह से कैसे हुई ?" तेज-शेरसिह ने मुझसे स्वय मिल कर सब हाल कहा, असल तो यह है कि हमलोगों पर भी शरसिह ने भारी अहसान किया है। बीरेन्द-वह क्या? तेज-फेअर इन्द्रजीतसिह का पता लगाया है और अपने कई आदमी उनकी हिफाजत के लिए तैनात कर चुके है इस बात का भी निश्चय दिला दिया है कि कुँअर इन्द्रजीतसिह को किसी तरह की तकलीफ न होने पावेगी। वीरेन्द-( खुश होकर और शेरसिह की तरफ देखकर ) हा । कहा पता लगा और किस हालत में है? शेर-यह सब हाल जो कुछ मुझे मालूम था मे दीवान साहय (तेजसिह) से कह चुका हूं वह आपसे कह देगे आप उसके जानने की जल्दी न करे। मैं इस समय यहा जिस काम के लिए आया था मेरा वह काम हो चुका अब मै यहा . ठहरना मुनासिब नहीं समझता। आप लोग अपने मतलव की बातचीत करें क्योंकि मदद के लिए में बहुत जल्द कुँअर इन्दजीतसिह के पास पहुचा चाहता हूँ। हा यदि आप कृपा करके अपना एक ऐयार मेरे साथ कर दें तो उत्तम हो और काम भी शीघ हो जाय। बीरेन्द-(खुश होकर ) अच्छी बात है आप जाइये और मेरे जिस ऐयार को चाहे लेते जाइय। शेर-अगर आप मेरी मर्जी पर छोडते है तो मैं देवीसिह को अपने साथ के लिए मागता है। तेज-हा आप खुशी से उन्हें ल जाय। ( देवीसिह की तरफ देख कर ) आप तैयारी कीजिए। देवी-मैं हरदम तैयार ही रहता हू।( शेरसिह से) चलिए अब इन लोगों का पीछा छोडिए । देवीसिह को साथ लेकर शेरसिह रवाना हुए और इधर इन लोगों में विचार होने लगा कि अब क्या करना चाहिए। घण्टे भर में यह निश्चय हुआ कि लाली से कुछ विशेष यूछने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह अपना हाल ठीक-ठीक कभी न कहेगी हा उसे हिफाजत में रखना चाहिए और तहखाने को अच्छी तरह देखना और वहा का हाल मालूम करना चाहिए ग्यारहवां बयान अब तो कुन्दन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कण्ठित हो रह होंगे। हमने कुन्दन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुन्दन इस फिक्र में लगी रहती थी कि किशोरी किसी तरह लाली के कब्जे में न पड़ जाय । जिस समय किशोर को लेकर सीध की राह लाली उस घर में उतर गई जिसमें से तहखाने का रास्ता था और यह हाल कुन्दन को मालूम हुआ तो वह बहुत घबराई। महल भर में इस बात का गुल मचा दिया और सोच में पड़ी कि अब क्या करना चाहिये। हम पहिले लिख आये है कि किशोरी और लाली के जाने वाद धरो-पकड़ा की आवाज लगात हुए कई आदमी सीध की राह उसी मकान में उतर गये जिसमें लाली और किशोरी गई थी। उन्ही लोगों में मिल कर कुन्दन भी एक छोटी सी गउरी कमर के साथ वाध उस मकान के अन्दर चली गई और यहा घराहट और गुलशोर में किसी को मालूम न हुआ। उस मकान के अन्दर भी बिल्कुल अधेरा था। लाली ने दूसरी कोठरी में जाकर दर्वाजा बन्द कर लिया इस लिये लाचार होकर पीछा करने वालों को लौटना पड़ा और उन लोगों ने इस वात की इतिला महराज से की मगर कुन्दन उस मकान से न लौटी बल्कि किसी कोने में छिप रही । हम पहिल लिख आये है और अब भी लिखते है कि उस मकान के अन्दर तीन दर्वाजे थे एक तो वह सदर दर्वाजा था जिसके बाहर पहरा पड़ा करता था दूसरा युला पड़ा था तीसरे दवाजे को खोलकर किशोरी का साथ लिये लाली गई थी। जो दर्वाजा खुला था उसके अन्दर एक दालान था. इसी दालान तक लाली और किशोरी की योजफर पीछा करने पाल लौट गये थे क्योंकि कही आगे जाने का रास्ता उन लोगों कोन मिला था। जब वे लोग मकान के बाहर निकल गये चन्द्रकान्ता मन्तति भाग ४