पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२४

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R लो कुन्दन ने अपनी कमर से गठरी खोली और उसमें से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाने बाद चारो तरफ देखने लगी। यह एक छोटा सा दालान था मगर चारो तरफ से बन्द था। इस दालान की दीवारों में तरह-तरह की भयानक तस्वीरे बनी हुई थीं मगर कुन्दन ने उन पर कुछ ध्यान न दिया। दालान के बीचोचीच में चित्ते भर के ग्यारह डिव्य लोहे के रक्खे हुए थे और हर एक डिब्बे पर आदमी की खोपड़ी रक्खी हुई थी। कुन्दन उन्हीं डिव्यों को गौर से देखने लगी। ये डिब्बे गोलाकर एक चौकी पर सजाए हुए थे, एक डिव्ये पर आधी खोपड़ी थी और बांकी डिव्यों पर पूरी-पूरी। कुन्दन इस बात को दखकर ताज्जुय कर रही थी कि इसमें से एक खोपड़ी जमीन पर क्यों पड़ी हुई है औरों की तरह उसके नीचे डिव्या नहीं है ? कुन्दन ने उस डिब्बे से जिस पर आधी खोपड़ी रखी हुई थी गिनना शुरू किया। मालूम हुआ कि सातवें नम्बर की खोपडी के नीचे डिव्या नहीं है। यकायक कुन्दन के मुंह से निकला ओफ ओह. येशक इसके नीचे का डिव्या लाली ले गई क्योंकि ताली वाला डिव्या वही था मगर यह हाल उसे क्योंकर मालूम हुआ ?' कुन्दन ने फिर गिनना शुरू किया और टूटी हुईखोपड़ी से पाचवे नम्बर पर रुक गई.खोपड़ी उठाकर नीचे रख दी और डिव्ये को उठा लिया तब अच्छी तरह गौर से देखकर जोर से जमीन पर पटका। डिव्ये को चार टुकड़े हो गए गाना चार जगहों से जोड़ लगाया हुआ हो। उसके अन्दर से एक ताली निकली जिसे देख कुन्दन इसी और खुश होकर आप ही आप बोली, 'देखो तो लाली को मै कैसा छकाती हु ! कुन्दन ने उस ताली से काम लेना शुरू किया। उसी दालान में दीगर के साथ एक आलमारी थी जिसे कुन्दन न उस ताली से खोला। नीचे उतरने के लिए सीदिया नजर आई और वह बेखौफ नीचे उतर गई। एक कोठरी में पहुंची जहा एक छोटे सिहासन के ऊपर हाथ भर लम्बी और इससे कुछ कम चौड़ी ताब की एक पट्टी रक्खी हुई थी। कुन्दन ने उसे उठाकर अच्छी तरह देखा मालूम हुआ कि कुछ लिखा हुआ है, अक्षर खुदे हुए थे और उन पर किसी तरह का चिकना या तेल मला हुआ था जिसके सदव से पटिया अभी तक जग लगने से बची हुई थी। कुदन ने उस लेख को बड़े गौर से पढा और हस कर चारो तरफ देखने लगी। उस कोठरी की दीवार में दो तरफ दो दर्वाजे थे और एक पल्ला जमीन में था! उसने एक दर्वाजा खोला, ऊपर चढने के लिए सीदिया मिली, वह बेखौफ ऊपर चढ़ गई और एक ऐसी तग कोठरी में पहुची जिसमें चार पाच आदमी से ज्यादे के बैठने की जगह न थी, मगर इस कोठरी के चारो तरफ दीवार में छोटे-छोटे कई छेद थे जलती हुई वत्ती युझा कर उन छेदों में से एक छेद में आख लगा कर कुन्दन ने देखा। कुन्दन ने अपने को ऐसी जगह पाया जहा से वह भयानक मूर्ति जिसके आगे एक औरत की बलि दी जा चुकी थी और जिसका हाल ऊपर लिख आये हैं साफ दिखाई देती थी। थोड़ी देर में कुन्दन ने महाराज दिग्विजयसिह तहखाने के दारोगा लाली किशोरी और बहुत से आदमियों को वहा देखा। उसके देखते ही देखते एक औरत उस मूरत के सामने बलि दी गई और कुँअर आनन्दसिह ऐयारों सहित पकड़े गये। इस तहखाने में से किशोरी और कुँअर आनन्दसिह का भी जो कुछ हाल हम ऊपर लिख आये है वह सब कुन्दन ने देखा था। आखीर में कुन्दन नीचे उतर आई और उस पल्ले को जो जमीन में था उसी ताली से खोल कर तहखाने में उतरने के बाद बत्ती बालकर देखने लगी। छत की तरफ निगाह करने से मालूम हुआ कि वह सिहासन पर बैठी हुई भयानक मूर्ति जो कि भीतर की तरफ से बिल्कुल (सिहासन सहित) पोली थी उसके सिर के ऊपर है। कुन्दन फिर ऊपर आई और दीवार में लगे हुए दूसरे दर्याजे को खोलकर एक सुरग में पहुची। कई कदम जाने बाद एक छोटी खिडकी मिली। उसी ताली से कुन्दन ने उस खिड़की को भी खोला। अब वह उस रास्ते में पहुच गई जो दीवानखाने और तहखाने में आने-जाने के लिए था और जिस राह से महाराज आते थे तहखान से दीवानखाने में जाने तक जितने दाजे थे सभी को कुन्दन ने अपनी ताली से बन्द कर दिया ताले के अलावे उन दर्वाजों में एक एक खटका और भी था उसे भी कुन्दन ने चढ़ा दिया। इस काम से छुट्टी पाने बाद फिर वहा पहुची जहा से भयानक मूर्ति और आदमी सय दिखाई दे रहे थे। कुन्दन ने अपनी आँखों से राजा दिग्विजयसिह की घबड़ाहट देखी जो दर्वाजा बन्द हो जाने से उन्हें हुई थी। मौका देख कर कुन्दन वहा से उतरी और उस तहखाने में जा उस भयानक मूर्ति के नीचे आ पहुची। थोड़ी देर तक कुछ बकने के बाद कुन्दन ने ही वे शब्द कहे जो उस भयानक मूर्ति के मुह से निकले हुए राजा दिग्विजयसिह और लोगों ने सुने थे और जिनके मुताबिक किशोरी बारह नम्बर की कोठरी में बन्द कर दी गई थी। असल मेंधे शब्द कुन्दन ही के कहे हुए थे जो सब लोगों ने सुने थे। कुन्दन वहा से निकलकर यह देखने के लिए कि राजा किशोरी को उस कोठरी में बन्द करता है या नहीं, फिर उस छत पर पहुंची जहा से सब लोग दिखाई पडते थे। जब कुन्दन ने देखा कि किशोरी उस कोठरी में बन्द कर दी गई तो वह नीचे तहखाने में उतरी। उसी जगह से एक रास्ता था जो उस कोठरी के ठीक नीचे पहुचता था जिसमें किशोरी बन्द की देवकीनन्दन खत्री समग्र