पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४९

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६ २ हम ऊपर कई जगुह इशारा कर आए है कि भैरोसिह कमला को चाहते थे और वह भी इनसे मुहब्बत रखती थी। इस समय कमला को एक राक्षसी के सामने देख उसकी मदद न करना भैरोसिह से कब हो सकता था? वे लपक कर कमला के पास पहुँचे। दो ऐयारों को साथ लिए भैरोसिंह को अपने पास मौजूद देखकर कमला का जी ठिकाने हुआ और उसने जल्दी से भैरोसिह का हाथ पकड़ के कहा- 'खूब पहुंचे। भैरो-तुम यहाँ क्यों खड़ी हो और तुम्हारे सामने यह औरत कौन है ? कमला-मैं इसे नही पहिचानती। राक्षसी-मेरा हाल कमला से क्यों पूछते हो मुझसे पूछो। इस समय तुम्हें देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुई में भी इसी फिक्र में थी कि किसी तरह भैरोसिह से मुलाकात हो । मैरो तुमने मुझे क्योंकर पहियाना क्योंकि आज तक मैने तुम्हें कभी नहीं देखा। इतना सुनकर वह औरत बडी जोर से हँसी और उसने नेजे को हिलाया। हिलाने के साथ ही नेजे में चमक पैदा हुई और उसकी डरावनी हॅसी से कविस्तान गूंज उठा इसके बाद उस औरत ने कहा- राक्षसी-ऐसा कौन है जिसे मैं नहीं पहिचानती होऊँ? खैर इन बातों से कोई मतलब नहीं यह कहो कि अपने मालिकों के छुडान की क्या फिक्र कर रहे हो? दिग्विजयसिह दो ही तीन दिन में तुम्हारे मालिक को मार कर निश्चिन्त हुआ चाहता भैरोसिह उस राक्षसी से बातें करने का तैयार थे परन्तु यह नहीं जानते थे कि वह इनकी दोस्त है या दुश्मन और उससे अपने भेदों को छिपाना चाहिए कि नहीं। यह सोच ही रहे थे कि इसकी बातों का क्या जवाब दिया जाय कि इतने में कई आदगियों के आने की आहट मालूम हुई। उस औरत ने घूम कर देखा तो चार आदमियों को इसी तरफ आते पाया। उन पर निगाह पडते ही वह क्रोध में आकर गरजी और नेजे को हिलाती हुई उसी तरफ लपकी। नेजे की चमक ने उन चारों की ऑखें बन्द कर दी। औरत ने बडी फुर्ती से उन चारों को नेजे सघायल किया। हिलाने के साथ की साथ उस नेजे भे गजब की चमक पैदा होती थी मालूम होता था कि आँखों के आगे बिजली दौड गई। वे वेवारे देख भी न सके कि उनको मारने वाला कोन या कहाँ पर है। मालूम हाता है कि वह नेजा जहर में बुझाया हुआ था क्योंकि वे चारों जख्मी हाकर जमीन पर ऐसा गिर कि फिर उठन की नौबत न आई। इस तमाशे को देखकर भैरोसिह डरे और सोचने लगे कि इस औरत के हाथ में तो बडा विचित्र नेजा है। इससे तो गह बात की बात में सैकडो आदमियों का नाश कर सकती है कहीं ऐसा न हो कि हम लोगों को भी सतावे । उन चारों का जभी करने के बाद वह औरत फिर भैरोसिह की तरफ लौटी। अब उसने अपने नेजे को आडा किया अर्थात उसे इस तरह थामा कि उसका एक सिरा बाई तरफ और दूसरा दाहिनी तरफ रहे तब तीनों ऐयारों और कमला को नेजे का धक्का देकर एक माथ पीछे की तरफ हटाना चाहा। यह नेजा एक साथ चारों के बदन में लगा उसके छूते ही बदन में एक तरह की झनझनाहट पैदा हुई और सब आदमी बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़े। जब उन चारों अर्थात् भैरोसिह रामनारायण चुन्नीलाल और कमला की आँखें खुली तो उन्होंन अपने को किल के अन्दर राजमहल के पिछवाडे की तरफ एक दीवार की आड में पड़े पाया। उस समय सुबह की सफेदी आसमान पर धीरे धीरे अपना दखल जमा रही थी। आठवॉ बयान बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम नहुआ आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिह से मिलने के लिए उजाड़खडहर और तहखाने में गई थी तो वहाँ से विदा होते समय शेरसिह ने कमला से कहा था कि कामिनी को मै ले जाता हूँ अपन एक दोस्त के यहॉरख दूंगा जवसवतरह का फसाद मिट जायगा तब यह भी अपनी मुराद को पहुँच जायगी। अब हम उसी जगह से कामिनी का हाल लिखना शुरु करते है। गयाजी से थोड़ी दूर पर लालगज नाम से मशहूर एक गाँव फलमू नदी के किनारे ही पर है। उसी जगह के एक नामी जमींदार के यहाँ जो शेरसिह का दोस्त था कामिनी रक्खी गई थी। वह जमीदार बहुत ही नेक और रहमदिल था तथा उसन कामिनी को बड़ी हिफाजत से अपनी लड़की के समान खातिर करके रक्खा मगर उस जमीदार का एक नौजवान और खूबसूरत लडका भी था जो कामिनी पर आशिक हो गया। उसके हाव भाव और कटाक्ष को देख कर कामिनी को उसकी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३२५