पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६३

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Jaxi कामिनी-( हाथ का इशारा करके ) उन्हीं लोगों में से एक यह भी है जिसे तुमने बाध रक्खा है। भैरो-( उस आदमी से ) घता तू कौन है ? आदमी यतान को तो में सब कुछ बता सकता हूँ परन्तु मेरी जान किसी तरह नहीं बचेगी। भैरो-क्या तुझे अपने मालिक का डर है ? आदमी-जी हाँ। भैरो-मैं वादा करता हूँ कि तेरी जान बचाऊँगा और तुझे बहुत कुछ इनाम भी दिलाऊँगा। आदमी-इस वाद से मेरी तबीयत बिल्कुल भी नहीं भरती क्योंकि मुझे तो आप लोगो ही के चचने की उम्मीद नहीं। हाय क्या आफत में जान आ फंसी है। अगर कुछ कहें तो मालिक के हाथ स मारे जाय और न कहें तो इन लोगों के हाथ से दुख भोगें। भैरो-तेरी यातों स मालूम होता है कि तेरा मालिक यहुत जल्द यहा आया चाहता है ? आदमी-पशक एसा ही है। यह सुनते ही भैरोसिह ने तारासिह के कान में कुछ कहा और उनका ऐयारी का बटुआ लेकर अपना बटुआ उन्हें दे दिया जिस ले थे तुरन्त दहाँ से रवाना हुए और तहखाने के बाहर निकले। तारासिह ने जल्दी जल्दी खडहर के बाहर हाकर उस एन ने एक लुटिया पानी खींचा और यदुए में से काई चीज निकाल कर पत्थर पर रगड जल में घोल कर पीया फिर एक लूटिया जल निकाल कर वही चीज पत्थर पर घिस उस पानी में मिलाई और बहुत जल्द तहखाने में पहुंचे जल की लुटिया भैरोसिह के हाथ में दी नैरोसिह ने बटुए से कुछ खाने की चीज निकाली और कामिनी से कहा 'इसे खाकर यह जल पी लो। कामिनी मला खान और जल पीने का यह कौन सा मौका है ? यद्यपि मै कई दिनों से भूखी हूँ परन्तु क्या कुमार की लाश के सिरहाने चैट कर खा सकूगी क्या यह अन्न मेरे गले के नीचे उतरेगा? भैरो-हाय इस बात का मैं कुछ भी जवाब नहीं दे सकता: खैर इस पानी में से थोडा तुम्हें पीना ही पड़ेगा। अगर इससे इन्कार करापी तो हम सब लोग मारे जायँगे (धीरे से कुछ कह कर ) यस देर न करो। कामिनी-अगर एसा है तो मे इन्कार नहीं कर सकती। भैरो सिह ने उस लुटिया में से आघा जल कामिनी का पिलाया और आधा आप पीकर लुटिया तारा सिह के हवाले कर दी। तारासिह तुरन्त तहखाने में से बाहर निकल आए और जहाँ तक जल्द हो सका इधर उधर से सूखी हुई लकड़ियाँ और कण्ड बटोर कर खण्डहर के बीच में एक जगह रक्खा तय बटुए में से चकमका पत्थर निकाला और उसमें से आग झाड कर गोठों और लकड़ियों को सुलगाया। तारातिह यह सब काम बडी फुर्ती से कर रहे थे और घडी घडी खण्डहर के बाहर मैदान की तरफ देखते भी जाते थे। आग सुलगान के बाद जय तारासिह ने मैदान की तरफ देखा तो बहुत दूर पर गर्द उडती हुई दिखाई दी। वह अपने काम में फिर जल्दी करने लगा बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें किसी प्रकार का तेल था वह तेल आग में डाल दिया आग पर दो तीन दर्फ पानी का छोटा दिया फिर मैदान की तरफ देखा। मालूम हुआ कि दस पन्द्रह आदमी घोड़ों पर सवार चडी तेजी से इसी तरफ आ रहे हैं। उस समय तारासिह के मुँह से यकायक निकल पड़ा- ओफ अगर जरा भी दर हाती ता काम विगड ही चुका था खैर अब ये लोग कहाँ जा सकते है। आग मे से बहुत ज्यादे घूओं निकला और राडहर भर में फैल गया। इसके बाद तारासिह खडहर के बाहर निकले और कूए के पास जा कर नीम के पड पर चढ गये तथा अपने को घन पतों की आड़ में छिपा लिया। वह पेड इतना ऊँचा था कि उत्त यर स खडहर के भीतर का मैदान साफ नजर पडता था। वे सवार जिन्हें तारासिह ने दूर से देखा था अब खडहर के पास आ पहुँच तारासिह ने पेड पर चढे चढे गिना तो मालुम हुआ कि बारह सवार है। उनमें सब के आगे एक साधु या जिसकी दाढी नाभी तक पहुंच रही थी। पाटक यह वही घायाजी है जिन्होंने राहतासगढ़ में राजा दिग्विजयसिह के पास रात के समय पहुँच कर उन्हें भडकाया और राजा चौरेन्दसिह वगैरह को कैद कराया था। खडहर के पास पहुंच कर वे लोग रुके। घोडो की बागडोरे पत्थरों से अटका कर दस आदमी तो खडहर के अन्दर घुस और दा आदमी घोड़ों की हिफाजत के लिए बाहर रह गय । खडहर के अन्दर धूआ देख कर घुडढे साधु ने कहा 'यह धूआ कैसा है। एक-किसी मुसाफिर न आकर रसोई वनाई होगी। दूसरा-मगर चूँआ बहुत कडुआ है। तीत्तरा-ओफ ऑख नाक से पानी यहने लगा। साधु-अगर किसो मुसाफिर ने यहाँ आकर रसोई पकाई हाती तो हॉडी पत्तल और पानी का वतन इत्यादी कुछ और भी तो यहाँ दिखाई देता । (एक आदमी की तरफ देख कर ) हमें इस धूऐं का रंग बेढग मालूम होता है इसकी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६