पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६५

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क्योंकि सुनते ही ये लोग अधमरे हो जाते और किसी काम लायक न रहते और वीरेन्द्रसिह की तो न मालूम क्या हालत होती सिवाय इसके यह भी मालूम हो ही चुका था कि कुँअर इद्रजीतसिंह मरे नहीं है। ऐसी अवस्था में इन लोगों को बुरी खबर सुनाना बुद्धिमानी के बाहर था इस लिए तारासिह ने इन्द्रजीतसिंह के बारे में बहुत सी बातें बना कर कहीं जैसा कि आग चल कर मालूम होगा। कुँअर आनन्दसिह ने जब तारासिह की जुबानी यह सुना कि कामिनी भी इसी तहखाने में कैद है तो बहुत ही खुश हुए और सोचने लगे कि अब थोड़ी देर में माशूका से मुलाकात हुआ ही चाहती है, ईश्वर ने बड़ी कृपा की कि टूढने और पता लगाने की नौबत न पहुंची। उन्होंने सोचा कि बस अब हमारे दुखान्त नाटक का अन्त हुअर ही चाहता है। बीरेन्द्रसिह ने फिर तारासिह स पूछा, क्या तुमने अपनी आँखों से उन लोगों को इस तहखाने में कैद देखा है ? ' तारा--जी हाँ कुँअर इन्द्रजीतसिह और कामिनी से तो हम दोनों आदमी मिल चुके हैं और भैरोसिह उन दोनों के पास ही है मगर किशोरी को हम लोग न देख सके कामिनी की जुबानी मालूम हुआ कि जिस तहखाने में वह हे उस के बगल घाली कोठरी में किशोरी भी कैद है। पर कोई तीब ऐसी न निकली जिससे हम लोग किशोरी तक पहुँच सकते। वीरेन्द्र-क्या यहाँ की कोठरियों और दर्वाजों में किसी तरह का भेद है ? तारा-भेद क्या मुझ तो यह एक छोटा तिलिस्म ही मालूम होता हे। वीरेन्द्र-भला तुम और भैरोसिह इन्द्रजीतसिह के पास तक पहुंच गए तो उसे तहखाने के बाहर क्यों न ले आए? तारा-(कुछ अटक कर } मुलाकात होने पर हम लोग उसी तहखाने में बैठ कर बातें करने लगे। दुश्मन का एक आदमी उस तहखाने में कैदियों की निगहबानी कर रहा था। कैदी हथकडी और बेडी के सबब से बेवस थे। जब हम दोनों वे उस आदमी को गिरफ्तार किया और हाल जानने के लिए बहुत कुछ मारा पीटा तब वह राह पर आया। उसकी जुयानी मालूम हुआ कि हम लोगों का दुश्मन अर्थात् उसका मालिक बहुत से आदमियों को साथ ले यहाँ आया ही चाहता है। तब भैरोसिह ने मुझे कहा कि इस समय हम लोगों का इस तहखाने से बाहर निकलना मुनासिब नहीं है, कौन ठिकाना बाहर निकल कर दुश्मनों से मुलाकात हो जाय। वे लोग बहुत होंगे और हम लोग केवल तीन आदमी हे। ताज्जुब नहीं कि तकलीफ उठानी पड़े इससे यही बेहतर है कि तुम बाहर जाओ और जब दुश्मन लोग इस खंडहर में आ जायें तो उन्हें किसी तरह गिरफ्तार करो। उन्हीं की आज्ञा पाकर मे अकेला तहखाने के बाहर निकल आया और मैने दुश्मनों को गिरफ्तार भी कर लिया। तेज-(खुश होकर और हाथ का इशारा करके) मालूम होता है कि वे लोग जो उस पेड के नीचे पड़े है और कुछ खडहर के दर्वाजे पर दिखाई देते हैं सब तुम्हारी ही कारीगरी से बेहोश हुए है उन्हें किस तरह बेहोश किया ? तारा-खडहर के अन्दर आग सुलगाई और उसमें बेहोशी की दवा डाली जब तक वे लोग आयें तब तक धूआं अच्छी तरह फैल गया ऐसी कडी दवा से वे लोग क्योंकर बच सकते थे जरा सा धूआं आख में लगना बहुत था। दुश्मनों के केवल दो आदमी बच गये (घोडों की तरफ देखकर) हे मालूम होता है आपको आते देख वे लोग भाग गए यह क्या हुआ। तेज-(चारो तरफ देखकर ) खैर जाने दो क्या हर्ज है हॉ तो अब हम लोगों को तहखाने में चलना चाहिए। तारा-शायद अब हम लोग तहखाने में न जा सके। कमला-क्यों ? तारा-उन लोगों में एक साधु भी था वह यडा ही चालाक ओर होशियार था। आख में धूआ लगते ही समझ गया कि इसमें बेहाशी का असर है अब दम के दम में हम लोग बेहोश हो जायेंगे। उसी समय एक आदमी ने जो पहिले हम लोगों को देख कर भाग गया था और छिप कर मेरी कार्रवाई देख रहा था पहुँच कर उन्हें हम लोगों के आने की खबर देदी और यह भी कह दिया कि अभी तक कामिनी किशोरी और इन्द्रजीतसिह तहखाने में है बल्कि राजा वीरेन्दसिह का ऐयार भी तहखाने में है। यह सुनते ही यह कुछ खुश हुआ और याला अब हम लोग तो बेहाश हुआ ही चाहते है धोखे में पड़ ही चुके हैं मगर अब हम यहाँ के शाहदर्वाजे को बन्द कर देते है फिर किसी की मजाल नहीं कि तहखाने में जा सके और उन लोगों को निकाल सके जो तहखाने के अन्दर अभी तक बैठे हुए है। इस बात को सुनकर उस जासूम ने कहा कि हम लोगों का एक आदमी भी उसी तहखाने में है। साधु ने जवाब दिया कि अब उसको भी उसी में घुट कर मर जाना चेहतर होगा। फिर न मालूम क्या हुआ और उस साधु ने क्या किया अथवा शाहदर्वाजा कौन है और किस तरह खुलताया बन्द होता है। तारासिह की इस बात ने सभी को तरदुद में डाल दिया और थोडी दर तक वे लाग सोच विचार में पड़ रहे इसके वाद कमला ने कहा पहिले खडहर में चल कर तहखाने का दरवाजा खोलना चाहिए देखें खुलता है या नहीं अगर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६ ३४१